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Showing posts from 2007

हम फिर मिलेंगे

फिर मिला देना हमें ऐ आसमान, अगर मिल जाए तुझको वक्त कहीं, कि अब उन्हें जाने से कैसे रोक लें हम, कि उनके आँसुओ पर भी हमारा हक नहीं । मेरी अनछुई हसरतें बन गई एक हसीन भ्रम तो क्या, ये दुरियाँ, मज़बुरियाँ फैली दूर तक सही, पर मुझे होश में आने से रोक ले कोई, कि अभी तक पहुँचे ख्वाबों के दहलीज तक नहीं । जो देखा सुना उसे सच मान बैठे,क्या करें, भला अपनी आँखों पर तो करता कोई शक नहीं, उसकी हँसी को नाम देने में अनमोल पल खो दिए, हर रिस्ते का कोई नाम हो,इसकी जरुरत तो नहीं । प्रेम की एक भींगी किरण ह्रिदय में मचलती तड़पती रह गई, खुद से थोड़ा नाराज़ और दुखी हूँ मैं क्यों लब मेरे खुले आज तक नही, छुरियों की धार से हाथ की रेखाएँ नही बदली जाती, जहाँ भी हो खुश रहो अगर फिर मुझे किसी से कोई शिकायत नही । Nishikant Tiwari

हम वो गुलाब है

हम वो गुलाब है जो टूट कर भी मुस्कान छोड़ जाते हैं, दुसरों के रिश्ते बनाते फिरते हैं और खुद तन्हा रह जाते हैं । दुनिया के प्रेम प्रसंगो में हम गुलाबों को टूटना हीं पड़ता है, और हमे देने वाले हर प्रेमी को झुकना हीं पड़ता है, कभी हमे फरमाइश कभी नुमाइश बना दिया, जी चाहा ज़ुल्फों में लगाया,जी चाहा सेज़ पे सज़ा दिया, मेरे तन को छेड़ कर , दीवाने कैसे मचल जाते हैं, दुसरों के रिश्ते बनाते फिरते हैं और खुद तन्हा रह जाते हैं । बात अभी इतनी होती तो क्या बात थी, पर अभी और भी काली होने वाली रात थी, मेरे अरमानों को कुचल कर इत्र बना दिया, और दिखावटी शिशियों में भर कर सजा दिया, हम मर कर भी साँसों में महक छोड़ जाते है, दुसरों के रिश्ते बनाते फिरते हैं और खुद तन्हा रह जाते हैं । Nishikant Tiwari

नई सोच

पानी के कुछ बुलबुलों में दुनिया जहान को डूबते देखा है, सभ्यता की नई गलियों में इन्सान को मिटते देखा है, गूँज वही है पर साज़ नए हैं, आँसू वही हैं पर बहने के अंदाज नए है, कितने अनजाने आए और मित्र बन गए, और कुचले हुए गुलाब भी ईत्र बन गए, पर आने वाले वक्त को किसने देखा है, सभ्यता की नई गलियों में इन्सान को मिटते देखा है । जिन सवालों को लेकर चले थे, जब उनके जवाब हीं बेमाने हो गए, तो खुद ब खुद बंद होने लगीं खिड़कियाँ, लोग कितने सयाने हो गए, दिल हो गए पत्थर के जब से, मैने खुद को दीवारों से बातें करते देखा है, सभ्यता की नई गलियों में इन्सान को मिटते देखा है । ना वैसे कभी चली थी ,ना वैसे कभी चलेगी, जैसा हम दुनाया के बारे में सोचते है, फिर क्यों कभी खुद को कभी दुनिया को कोसते है, अगर मीरा जैसे बनेंगे दीवाने , फिर लोग तो मारेंगे हीं ताने, पर वक्त ने उसी दुनिया को उसके पैरों पर गिरते देखा है, सभ्यता की नई गलियों में इन्सान को मिटते देखा है । Nishikant Tiwari

Is Love Blind ?

I was there on window seat, I prayed, I wished, the seat next to me May be occupied by a girl, a beautiful one Sometimes God is too pleased with you, You get more than what you ask for, I realized this when a great beauty entered the bus, My wish, my prayer picked their peak with multiple pleases to God God was kind, he heard me, And there she was just beside me. You can’t ask for anything more, it is crime. Honey dipped lips, dazzling face with locks like running water Oh dear just look at her eyes, I am lost, Can I believe it? Is she sitting with me? Why so, thanks God you are so merciful. My heart pounced; it had got more than enough, You can’t ask for anything more, it is crime. Really I mean it when I say it. For two hours, it was tour of heaven, I wished I could ask her name and could tell her mine, My heart melted at each attempt Dear I was lost, totally Really I mean it when I say it. The ecstasy casted spell on me, There was turmoil in my heart, I wished I could see her smile,

जीवन दर्शन समाज

परिवर्तन क्यों करे हम शिकवा एक और मैं आगे ही आगे यह कैसा विकास है ज़ज़बात की निलामी इन्सान की मजबूरियाँ स्वाभीमान दीपक से उजाला करते है घर जलाए नही जाते नई सोच मुश्किलों का हल ढूंढता हूँ मैं अकेला कब था !

मुश्किलों का हल ढूंढता हूँ

तेरी बेवफाई से बिखर गया मैं हज़ार टुकड़ो में , जिस टुकड़े में मेरा दिल था वो टुकड़ा आज भी ढूंढता हूँ, रह के मेहफिलों में भी खामोश , अपनी मुश्किलों का हल ढूंढता हूँ । . कुछ जिद है ऐसी की तन्हाइ में जिना सुहाना लगता है, और यहाँ तो सभी अपने अपने में जिए जा रहें हैं, यह शहर भी मेरी तरह दीवाना लगता है, सब ने बाग से फूल तोड़ कर घर के गुलिस्ते सजा डाले, उजड़ा उजड़ा सा है चमन फिर भी सुहाना लगता है । . टूट जाता है इन्सान कभी प्यार में कभी टकरार में पर जिन्दगी चलती रहती है अपनी मस्ती ,अपनी रफ्तार में, खुद को चाहे बाँध लो जंजीरों से, फिर भी मन भागता चला जाता है , और उसके पीछे मज़बूर इन्सान हँफता चला जाता है . हाँ कहीं धूप है तभी तो छाँव है , दो पल की खुशी के लिए सारी जिन्दगी का लगा दाव है , पर रख के गिरवी जिन्दगी को और कया माँगे जिन्दगी से , दो आँसू हीं सही पर खरिदे है खुशी से । Nishikant Tiwari

दीपक से उजाला करते है घर जलाए नही जाते

दीपक से उजाला करते है घर जलाए नही जाते पुराने रिश्तों को तोड़ कर नए बनाए नही जाते और झूट की बुनियाद के महल होते है रेत के दुसरो के घर बसाए नही जाते अपना घर बेच के । . छोटे छोटे बातों पर आंगन बाँट नहीं दिए जाते, जिन पेड़ो पर फल ना हो काट तो नहीं दिए जाते, दोस्ती तुम तुफान से भी कर लो मगर, रास्ते घर के बताए नहीं जाते । . कुछ ज़ख्म ऐसे है जो शौक से ढोए जा रहे हैं, तोड़ कर दिल अपना दुसरों के सपने सँजोए जा रहे हैं, कुछ राज़ ऐसे भी है जो सिर्फ एक से हैं बताए जाते, पर उन्हें भी वो ज़ख्म दिखाए नहीं जाते । Nishikant Tiwari

ये कहाँ आ गए हम

आए थे जहाँ से जाना वही है , सफर है लम्बा सुहाना नहीं है दो बातें हमसे भी कीजिए , यहाँ कोई बेगाना नहीं है । . साँसों को आराम चाहिए,होठो को गुनगुनाने के लिए नाम चाहिए जाने कब से धूप में जलते रहें हैं अब जो हो चुकी शाम तो छाँव मिली है बस कुछ यादें हीं रह गईं है,हवाओं में ठंडक नहीं है । . ये कहाँ आ गए हम ये कैसी ज़मीन है जहाँ घर है सैकड़ो पर गाँव एक भी नहीं है जाए उस पार कैसे पोखर तट है नाव नहीं है दिल ने समझाया जाना कहीं था आ गए कहीं है आज हम है कहाँ और ज़माना कहीं है । . घर के सामने एक बुढ़िया रो रही थी मर गए सब यहाँ एक भी आदमी नहीं है फट जाए धरती और समा जाए उसमें यहाँ हर कोई सीता नहीं है । . पानी पिला दो अम्मा बड़ी प्यास लगी है न देखो मुझे,देखो नीले आसमान को बरसात कसी होगी जब बादल नहीं है तेरी अम्मा भी कब से प्यासी बैठी है मेरी आँखो के सिवा और कहीं पानी नहीं है । Nishikant Tiwari

झाँकी हिन्दुस्तान की

सर पर जूता पाँव में टोपी, खोपड़ी ऊलटी हर जवान की, सफेदपोश में काला काम करे हम, नीयत हर बेईमान की, माता-पिता बेघर हुए, बेटा रुप धरा शैतान की, कदम कदम पर चोर लुच्चके, ये झाँकी हिन्दुस्तान की । . हर साधु में चोर बसा है, बस नज़र चाहिए पहचान की, मित्र बन चल दिखाए, शराबे समा हैवान की, शैतानों की भीड़ लगी है, सुरत दिखे नहीं इन्सान की, ये झाँकी हिन्दुस्तान की । . नगर पालिका की गाड़ी नहीं, किस्मत कचड़ा बनी हर कदरदान की, सच के मुँह पर ताला पड़ा, झुठे कौवे शान बढाए न्यायिक संस्थान की, पाड़ा भी अब पण्डित बना, बात सुनाए वेद पुराण की, ये झाँकी हिन्दुस्तान की । . नेताजी सब नर्तक बने, खिंची टाँग हर सुर गान की, पठन पाठन संग प्रेम की शिक्षा , नीति हर विद्वान की, अब याद आए कैसे मुझे मुस्कान की, जब ऐसी झाँकी हिन्दुस्तान की, जब ऐसी झाँकी हिन्दुस्तान की । Nishikant Tiwari

फुलझड़ियाँ

1.एक दिन रेस्टुरेंट में मुझे एक दोस्त मिल गया देखकर मुझे उसका चेहरा एक्दम से खिल गया पास आकर बोला -यार जेब में हैं थोड़े से पैसे कहती है खाएगी पीज़ा ना की समौसे मैने कहा- कोई बात नहीं सभी मुश्किलों के दौर से गुज़रते है ये बात और है कि पहले लोग प्यार की भीख माँगा करते थे अब प्यार में भीख माँगा करते हैं !!!! . . 2. लड़की - प्यार मुझसे करते हो क्या करोगे मुझसे शादी ? लड़का - क्या तुम्हारी अक्ल हो गई है आधी ? जब प्यार तुमसे करता हूँ तो तुमसे कैसे कर सकता हूँ शादी ! Nishikant Tiwari

इन्सान की मजबूरियाँ

उठते है कदम तेज मेरे मगर पर, मंजिलों की अपनी दुरियाँ हैं , बस चाहत से सपने सच नहीं होते, मैं इन्सान हूँ, मेरी भी कुछ मजबूरियाँ हैं , आखिर कब तक मार सहेंगी हवाओं की, गिर हीं जाती है जो सुखी पत्तियाँ हैं । . इन हाथों के लकिरों की अपनी सिमाएँ हैं, जहाँ से चले थे फिर वहीं लौट आए हैं, किस सच झुठ की देते हो दुहाई, हालात के साथ बदल जाती जिन्की परिभाषाएँ हैं ? . रास्तो पर कुछ फूल लगा देने से , अगर वे बगीचे हो जाते , तो हम भी मुठ्ठी भर सितारों से, नया आसमान बनाते, गम है तुझे भी तो इसमे नया क्या है, लुट गया तेरा जहाँ तो क्या , रोज़ हज़ारो का लुटता है । . मेरे तकदीर के तस्वीर में भी रंग नए होते, जो ना करते कुछ गलतियाँ, पर पर्वत से फिसल कर हीं , मिली हैं मुझको ये वादियाँ, सदियों लग जाते जिसे बनाने में, छ्न में मिट जाती ये वो दुनियाँ है, मैं इन्सान हूँ, मेरी भी कुछ मजबूरियाँ हैं । Nishikant Tiwari

ज़ज़बात की निलामी

कल तुम भी ज़रुर आना निलामी होगी मेरे ज़ज़बात की, सरे बाज़ार किमत लगेगी मेरे हालात की, बाँध खड़ा किया जाएगा मुझे चौराहे पर, सबकी निगाहें होंगी मेरे निगाहों पर, सावन में पूछ क्या हो आसुओ की बरसात की, कल तुम भी ज़रुर आना निलामी होगी मेरे ज़ज़बात की । . इन्सानो ने बनने दिया इन्सान तो क्या, खुद अपने हीं घर में बन गए मेहमान तो क्या, दिल में दर्द और होठों पर मुस्कान नहीं, खुद पर शर्मींदा हूँ औरो से परेशान नहीं, मुझे समझ हीं ना थी दुनिया के इस खुराफ़ात की, कल तुम भी ज़रुर आना निलामी होगी मेरे ज़ज़बात की । Nishikant Tiwari

कोइ तो हमारा होता

डुबते को तिनके का सहारा होता, दुनिया की इस भीड़ में कोइ तो हमारा होता, काँटों को भी फूल समझ सीने से लगा लेते , अगर उनका एक इशारा होता , दुनिया की इस भीड़ में कोइ तो हमारा होता | . लड़खड़ाए कदम क्या रास्ते हीं खो गए, और पलक भर झपके हीं थे कि वे और किसी हो गए, ऊफ ये दर्द ना सहना पड़ता , काश मेरा भी दिल उनकी तरह आवारा होता , दुनिया की इस भीड़ में कोइ तो हमारा होता | . हमे भी मुस्कुराना आ जाता, अगर नज़रे चुराना आ जाता क्यों तड़पते भर भर के आहें, खुद जो मरहम लगाना आ जाता, मज़धार में भटके को मिल गया किनारा होता, दुनिया की इस भीड़ में कोइ तो हमारा होता | . कुछ देर के लिए ये वक्त ठहर जाता तो , हम साथ उनके हो लेते रुक भी जातीं ये साँसे तो, पल भर हीं साथ उनके जी लेते, ना ठेस लगती इस हाथ में जो हाथ तुम्हारा होता, दुनिया की इस भीड़ में कोइ तो हमारा होता | Nishikant Tiwari

पवन भँवरा टकरार

पवन ने क्या कह दिया झुक गईं शर्म से सारी कलियाँ भुन भुनाने लगा भँवरा देने लगा गालियाँ उसकी बीबी तो एक भी नहीं बस सालियाँ हीं सालियाँ । . पवन: अरे ओ आवारा भँवरा, रस चूसने वाला बुरी नज़र वाले तेरा तो मुँह हीं नहीं सारा बदन काला नशे में झुम रहा शराबी,शर्म नहीं आती तुम्हें ज़रा भी दिन रात फुलों के बीच रहकर तू उनकी ही सुगंध में सड़ रहा है भगवान तुम्हें बचाए ना तू जी रहा है ना मर रहा है । . भँवरा: जो भी रास्ते में आए, या तो झुका दे या फीर तोड़ दे कलियों फिर तुम्हारी बहियाँ कैसे छोड़ दे उड़ा दे सारी पंखुड़ी एक पल में कर दे जवान से बुढी यह पवन है पावन नहीं इसमे बस भरा है अवगुण भुन भुन भुन भुन.................... . पवन : काले कलुठे भँवरे तुझ पर तो कोई रिझती नहीं फिर क्यों कभी सिटी मारता कभी गाना गाता है जा बेवकूफ़ो की लाइन में खड़ा हो जा क्यों लाइन मारता है । . भँवरा: हर कली तू बनना चाहता यार है शायद मानसिक रुप से बीमार है कहाँ कहाँ कितने जूते खाएँ हैं पर तू फिर भी आदत से लाचार है । . कलि: क्यों लड़ रहे हो इनसानों की तरह कच्छा पहन अखाड़े में खड़े पहलवानों की तरह जहाँ पवन ना बहे और भँवरा ना गाए उस बगिया में

यह कैसा विकास है

पास है हम सभी फिर भी दिलो से कितने दूर है, स्वतंत्रता की लम्बी उड़ान भरते हैं, फिर भी कितने मज़बूर हैं, उपर नीला आसमान नीचे नीला सागर है, पर क्यों पड़ गया नीला सारा शहर है, किस पाप की पूँजी बरसा रही हम पर कहर है ? . लाल रंग खतरे का निशान है पर हमारा खून भी तो लाल है, फिर अपने हीं खून से क्यों रंग लिए हाथ अपने, क्यों छिनने लगे है दुसरों के सपने, अपने हीं गालो पर अपने ही उँगलियों के पड़ गए निशान है, बेशर्मी की कला देख उपर बैठा भी हैरान है, काम दाम और नाम के बन गए गुलाम है, बस कालिख पुते जूतों को कर रहे सलाम हैं । . मानवता से पशुता की ओर यह कैसा विकास है, भौतिक सुखो से लाख घिरे हो भीतर से हर कोई उदास है, उसकी आती जाती साँसों में दर्द है अकेलेपन का, वह लाखो के बीच रहता है पर उसका अपना एक भी नही, आँखो की घटाएँ बोझिल हो गई है बूँदो से, होठों पर भले हीं मुस्कुराहट हो, पर दिल में तरंग जगे ऐसा मौका एक भी नहीं । Nishikant Tiwari

किसकी सारी उम्मीदें हुई पूरी है

प्यार करता हूँ तुम्हे मेरी कमज़ोरी है, पर क्या करूँ जीने के लिए ज़रुरी है, हर डाल पर फूल खिले कोई ज़रुरी नहीं किसकी सारी उम्मीदें हुई पूरी है । . तेरे प्यार में हद से भी गुजर जाऊँ चाहे कुछ भी कहे ये ज़माना पर खुद की नज़रों में ना गिर जाऊँ मैं सच को कैसे मान लूँ सपना साँसें रोक भी लूँ तो कैसे रोकूँ दिल का धड़कना । . प्यार की डाली पे वफ़ा के फूल खिल ना सके तो क्या हुआ लाख चाह कर भी हम मिल ना सके तो क्या हुआ तेरी बातें,तेरा एहसास, तेरी याद तो है एक आस, एक दुआ ,एक फ़रियाद तो है जीने के लिए ये सहारे क्या कम होते है जिन्दगी में इसके सिवा भी कई गम होते हैं । Nishikant Tiwari

आगे ही आगे

आगे बढ़ पथिक तेरी रौशन है राहें , दूर कहीं बुला रहीं है फ़िर वही बाहें , रुकना क्या अब झुकना क्या , पर्वत आए या दरिया या मिले काटे मुझको . सांसे तेज और पैर लथपथ तो क्या , जीवन डगर पर पद चिह्न छोड़ते जाएंगे , पाएंगे जो पाना है जाएँगे जहाँ जाना है , अब ख़ुद पे भरोसा है मुझको . दिल के अरमान जगे हैं हम भी आगये आगे है , बांटने होठों की हँसी सबको , रात लम्बी तो क्या और काली तो क्या , बुला रहा है कल का सूरज मुझको . रास्ता लंबा तो क्या काम ज्यादा है , जिंदगी छोटी है बड़ा इरादा है , अब बैठने की फुर्सत कहाँ है मुझको , कैद करके नज़ारे उनको दिल में बसाके , बढ़ता हूँ आगे हीं आगे करता सलाम सबको , पकड़ के हाथ मेरा कुछ देर साथ चलो यारो , पर अब रुकने के लिए ना कहो मुझको Nishikant Tiwari

घड़ी देख कर

जब मैं पैदा हुआ लोग खुश होने से पहले भागे, समय नोट करने घड़ी देख कर, रोज़ पिताजी उठते थे घड़ी देख कर, दफ़तर जाते घड़ी देख कर, शाम को माँ बोलती तेरे पिताजी अभी तक नहीं आए घड़ी देख कर, पिताजी घर आते घड़ी देख कर, चाय पीते घड़ी देख कर, सामाचार सुनते घड़ी देख कर, खाना खाते घड़ी देख कर, और सोने भी जाते तो घड़ी देख कर । . मैं थोड़ा बड़ा हुआ तो स्कुल जाने लगा घड़ी देख कर, लंच और छुट्टी होती घड़ी देख कर, एक दिन घर देर से पहुँचा तो माँ बोली इतनी देर कहाँ लगा दी घड़ी देख कर, मेरे पास तो घड़ी हीं नहीं है फिर घर कैसे आउँ घड़ी देख कर, मिल गई मुझे एक नई घड़ी, सभी खुश होते मुझे देख कर घड़ी घड़ी, पर मैं खुश होता भी तो घड़ी देख कर । . बड़ा हुआ रोज़ इन्टरभ्यू देने जाता घड़ी देख कर , नौकरी मिली भी तो आते जाते ट्रेनों की सुची बनानी थी घड़ी देख कर, बात शादी की चलाई गई शुभ घड़ी देख कर, और जब मण्डप में बैठा तो पण्डितजी बोले तेरी शादी भी शुरु होगी घड़ी देख कर , मेरी पत्नी कितनी भाग्यवान थी , जब आती ना थी देखने घड़ी तो परेशान कैसे होती घड़ी देख कर । . हर घड़ी मैं बेचैन रहता था, और बेचैन हो जाता घड़ी देख कर, मन बहलाने के लिए सिनेमा हाल गया, तो

हम आज भी अकेले है

उसके कदमों पे गिर जाता मैं इतना भी मज़बूर न था चाहता था बहुत उसे पर ये मेरे दिल को मंज़ूर ना था वफ़ा के बदले मिलती वफ़ा यह ज़माने का दस्तूर न था कल प्यार का मौसम था और आज भी चाहत के मेले है हम कल भी अकेले थे और आज भी अकेले है जब तुमने हीं ना समझा तो क्या करे हम गम जी लेंगे जैसे जीते आए हैं हम सीने पे वार सहे दिल पर ज़ख्म खाए हैं सारे अरमान बेच डाले फिर भी हार के आए हैं तु जो भी कहो जो भी करो सब तेरा करम हँसते रहें हैं हँसते रहेंगे चाहे कर लो जितने सितम वह कहती हैं अब कुछ भी नहीं है हम दोनो में फिर भी उसकी बाते क्यों चुभती हैं दिल के कोने कोने में प्यार में तेरे तन मन पर गिरी जाने कितनी बिजलियाँ प्यार की एक एक बूँद को तरसा जैसे पानी बिन मछलियाँ उसे बस साथ चाहिए था प्यार नहीं अच्छा हुआ दिल टूट गया अब किसी का इन्तज़ार नहीं मैं समझ पाता उसको इतना भी समझदार ना था उसकी चाहत एक ज़रुरत थी उसका प्यार प्यार ना था । Nishikant Tiwari

क्यों करे हम शिकवा

क्यों करे हम शिकवा गिले बहार से कि हम तो बहार को बाहर बंद करके रखते है जान जाएगी पर कोई जान नही पाएगा कि हम तो ऐसे मोहब्बत किया करते है आसुँओ से भर कर जाम पीते है अपने हीं नशे में झुमते गाते जीते है । . आप कुछ भी कहे पर हम ना मुँह खोलेंगे, कहते है दरवाज़े कि दीवारो के भी कान हुआ करते है पर हमने जब भी मुँह खोलना चाहा हवाएँ रुख बदलने लगती है और दूर हो जाता है आसमान निगाहें बच के निकलने लगती हैं । . अध जल गगरी छलकती है तो छलकने भी दो कहीं प्यास बुझ जाए किसी प्यासे की उस भरी गगरी से क्या जिसके रहते राही प्यास से मर जाते है । . आज न कोई बात होगी इत्तफाक की इन्सान वही जो इन्तहान में उतर जाता है दुश्मनों ने दोस्तों से सारे दाव सीखे है वह अपना क्या जो दिल को दुख ना देता है । . पड़ जाए तन पे कीचड़ पानी से धो लिया करते है पर मन के कीचड़ को आसुँओ से नहीं धोया करते है धोते है तो बस गालों के मैल को कुछ लोग तो वह भी नही किया करते है । . छोड़ जाते हैं पंछी घोसला पर तिनके नही बिखेरा करते है फिर शर्म से क्यों नहीं मर जाते वो लोग जो घर जलाया करते है । . कोई कुछ भी कहे कुछ फर्क कहाँ पड़ता है पड़ता है तो बस दिल

बेवफ़ाई धोखा नफ़रत

Select a poem below जिन्दगी की बेवफाई हम आज भी अकेले है एक नये सुबह का इन्तज़ार एक ठोकर लगाने आ जाते

पर्दा बेदर्दी

ये जो पर्दा है बेदर्दी जान ले लेगा, मैं प्यार करता हूँ उससे यह बात मेरे सिवा कोई जानता नहीं, अगर जाने तो जान ले लेगा, उसके आगे पीछे घूमते लोफ़र मुझे अच्छे नहीं लगते, अगर ये कह दूँ तो लोफ़र जान लेलेगा, ये जो रात की तनहाई हैं इसमें कितनी गहराई है, ये रात तो फिर भी कट जाएगी, पर उसकी एक परछाई जान लेलेगी, और जब आग में कूद पड़े तो जलने से डरना क्या, पर उसका दिल जलाना जान ले लेगा, ये जो पर्दा है बेदर्दी जान ले लेगा । . उसकी प्यारीं आँखे हैं मेरी दुश्मन, मैं जो छुप छुप के देखा करता हूँ उसको, ऐसे में आँखो का आँखो से मिल जाना जान ले लेगा, और जब नज़रें मिल हीं गईं हैं तो कुछ कह भी दो, यूँ तेरा मुँह फेर के पलके झपकाना जान ले लेगा, हम तो इसी इन्तज़ार में रहते है कि कब वह निकले बाहर, पर इस कड़ी धुप में कलि का निकलना और मुरझाना जान ले लेगा, कितना खुश होता हूँ मैं उसको चमकती चाँदनी में देख कर, पर रह रह कर चाँद का भी उतना हीं खुश होना जान ले लेगा, ये जो पर्दा है बेदर्दी जान ले लेगा । . हम उससे उलझने की हिम्मत भला कैसे करे , सिर्फ़ उसके बालों का उलझना जान ले लेगा, कोई कैसे भूल सकता हैं भला, उसका जवनी के उमंग म

प्यार बचपन का

रात बहुत हो चुकी है, पर आँखो में नींद नहीं है, कहती हैं उसका चेहरा देखे बिना सोना नहीं है, क्या करूँ मैं बड़ी मुश्किल घड़ी है, आफ़त मेरे सर पे खड़ी है, रात भर यूँ हीं बैठा रहा मैं, कैसे कह दूँ क्यों आखे सोई नहीं है । . सुबह जब मैं बस स्टाप पहुँचा बस जा चुकी थी, मेरी धड़कने मुझे हीं धिक्कार रहीं थी, तभी आई वो और रोने लगी, चलो मैं स्कुल छोड़ दूँ, कोई बात नहीं जो बस छुट गई, स्कुल उतर कर थाइक्यू बोली और हाथ मिलाया, क्या हम कहे की कितना मज़ा आया । . दिन भर उसके इन्तज़ार में धुप में खड़े रहे उसके प्यार में, पर छुट्टी हुई तो और जल गए हम, एक लड़के के साथ निकली वह बेशरम, एक दुजे के गले में था हाथ लगाया, दिल पर ऐसी बिजली गिरी की शाम तक होश ना आया, तभी खोजते खोजते पहुँचा मेरा भाई, बोला भैया जल्दी चलो मम्मी ने है तुम्हें फ़ौरन बुलाया । Nishikant Tiwari

जोगीड़ा

जोगी जोगी देख रे बबुआ, बड़का बना ई भोगी, मीरा मीरा जाप करे , श्याम ना इसे सुहावे, मंत्र जपे ना ध्यान करे, गीत प्रेम लीला के गावे, नारी देखो आगे आगे, काहे जोगीड़ा पीछे भागे, कहे कि देवी दर्शन भयो है, प्रेम सुधा बरसा दे । . वन वन काहे भटके रे मनवा चल नगरी में प्यारे मिली पुआ पूरी ठूँस ठूँस के पाँव पुजइहें हमारे घर घर जाके झुठा जोगीड़ा काहे माई माई चिल्लावे इ तो अपने बाप को डँसे निगोड़ा माई के बेच के खावे। . देख चोर जोगीड़ा के दाढी में तिनका रतिए रतिए खेत चर जाए छुप छुप चुगे दाना दुनका बड़का बड़का स्वांग भरे इ बड़का जाल बिछावे सब मुरख मिली फ़ँसे जब मन मन ताली बजावे सुन प्रशंसा बड़ तपसी के जोगीड़ा जल भून जाए नाम तो जपे आलोक निरंजन आ सब के परलोक पहुँचाए । . काम पड़न वाह जोगीड़ा गदहे के बाप बनाए आ काम हो जावे पर मारे दुलत्ती जोगीड़ा खुद गदहा बन जाए ओकरा मन में पाप पले ना संतन की बूटी गुण तो एक्को देखे ना भैया बस त्रुटि हीं त्रुटि समझ तू बबुआ इ जोगी का फेरा जोगी नहीं इ मनवा मेरा तेरा । Nishikant Tiwari

एक और मैं

कहीं ना कहीं एक और मैं हूँ, चाहे इस जहाँ में या उस जहाँ में, या सितारों के बीच किसी तीसरे जहाँ में, अनछुए अंधेरो में या जलते उजालों में, आशा में निराशा में, खुशी में या गम में, कहीं ना कहीं एक और मैं हूँ । . आज तक मैंने नहीं देखा है उसे, बस देखा है अपने आप को आइने में, कहीं दूर खड़ा वो मुझे पुकार रहा है प्यार से, पर आज तक नहीं मिल पाया हूँ अपने आप से, कभी ना कभी कहीं ना कहीं राह चलते, उससे मुलाकात ज़रुर होगी, क्योंकि मैं जानता हूँ कि, कहीं ना कहीं एक और मैं हूँ । Nishikant Tiwari

वाह रे होली

भांग की गोली खाए है सब के सब बौराए है, अपने गालों को खुद रगड़े , कहे कि उनसे रंग लगवाएँ है, कुछ भूत बने कुछ कीचड़ में नहाए है, पगला पगला कहे एक दुसरे को, खुद हीं सब पगलाए है । . उठा पटक, हो जाए गारा-गारी, अकेला है फेको नाले में, बाद में हो चाहे मारा मारी, फोड़ दो शीशे सभी घरो के, घूस जाओ जो ना निकले बाहर, कर दो ऐसा धूम धड़ाका, घर हो जाए नरक से बदतर । . सबके मुँह में पेंट पोतो , पिलाओ ज़बरदस्ती भाँग शराब, दो दिन तक घर ना पहुँचे हालत हो जाए इतनी खराब छिन लो सारे रंग बच्चों से, कर दो खूब पिटाई रंग दो उन सभी घरों को, हुई जिनकी नई पुताई। . अबीर के समय में भी रंग फेको, खराब कर दो नया कपड़ा, लाउड स्पीकर इतना तेज बजाओ, कि फट जाए कान का चदड़ा, इससे भी ना मन भरे, तो मार दो किसी को गोली, कोई बुरा कैसे मानेगा, अरे आज तो है होली !!! Nishikant Tiwari

परलोक में परिलोक

एक बार मैं मर कर परलोक गया परलोक क्या परिलोक गया देखा अप्सराएँ नाच रहीं है इन्द्र व अन्य देवगण सोमरस का पान कर रहे थे मै भी रुप रस का प्याला पीकर नाच उठा घूमते घूमते मुझे इन्द्र मिले बोले स्वर्ग में आपका स्वागत है तो कैसा लगा स्वर्ग ? अच्छा है पर धरती सा नहीं है । देखिए आप स्वर्ग का अपमान कर रहे है यहाँ अप्सराएँ है,सोम रस है,चारो ओर सुख का माहौल है वहाँ क्या है? मैं बोला - अप्सराएँ तो धरती पर इतनी है कि स्वर्ग में अटे हीं नहीं पता नहीं कब से एक हीं जैसा नृत्य और सगींत में डुबे हुए है धरती पर तो हर तीन महीने में फैशन बदल जाता है सोमरस छोड़िए वहाँ तो बियर, विस्की, शेम्पेन ,रम ,दारू और हाँ ताड़ी भी तो मिलती है स्वर्ग में सुख का नहीं भय का माहौल है आप दानवों को पराजित करने के लिए धरती से कुछ आधुनिक हथियार क्यों नहीं ले लेते । क्या आपने माँ के गोद में बैठ कर दुध भात खाया है ?- नहीं क्या आपकी माँ ने आपको लोरी गा के सुलाया है ?- नहीं क्या आपने लड़कियों को लड़को के वस्त्र में देखा है ?- नहीं क्या आपको मालूम है पहला प्यार क्या होता है ?- नहीं धरती पर तो चित्र तक चलते है प्यार से हम उसे सिनेमा कहते

नव योवना

दिल दुर हुवा , तीर पार लगे, मन मज़बूर हूआ वह यार लगे, सज सँवर जब सलोनी सज़नी चले शूल बन फूल पग धूल गिरे, कोई कैसे कुछ कहे उससे, देखते हीं रह जाए आँख खुले और मुँह फटे . इस कलि कली के कान्ती काया से, नर खो विवेक विस्मित बेसुध पड़े, झील झलक नयन नीर भरे, डोले नर , डूबे ना तरे, लाल लबो ने लील लिया सब सोम रस, नाच नशे में नर नरक गिरे, बहे बहार बस बात से उसके, गंगा गगरिया गम गमन करे . हरा ह्रिदय हाय हिरनी ने, हिला हिमालय हार गया जपे हरे हरे, रुप रस से राही राह भटके, रोग ऋतु रत सारी रात जगे, प्रेम प्रकाश बन प्रहरी आठ पहर पाठ करे, पल में पागल हो पण्डित, फिर भी पुलकित का प्रताप बढे !!! Nishikant Tiwari

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Comedy Poems टकला नया फैशन शादी के बाद बहुत कुछ होता है मच्छरजी महाराज पत्नी बनी सजनी दुगना मर्द सच्चा देश भक्त परलोक में परिलोक वाह रे होली घड़ी देख कर पवन भँवरा टकरार फुलझड़ियाँ झाँकी हिन्दुस्तान की फेर लड़कियों के नाम की मनका Hindi comedy poem bhrahm bhoj मैं निपढ मुर्ख बाल ब्रह्मचारी

List Of Love Poems by me

तुम‌ जॊ मुझॆ मिल गई हॊ तेरे हाथो मिट जाने इन्तज़ार खामोशी और बरसात की रात नव योवना आखिर कब तक प्यार बचपन का बड़ी खुबसुरत पर्दा बेदर्दी किसकी सारी उम्मीदें हुई पूरी है कोइ तो हमारा होता हम वो गुलाब है हम फिर मिलेंगे आज में सुनहरा कल है अगर ईश्क तो आँखो में उतर आने दे ।

सच्चा देश भक्त

खादी धोती खादी कुर्ता खादी रुमाल, खादी झोला खादी टोपी रौबदार चाल, बीच बाज़ार घूम रहे थे चाचाजी क्रांतीकारी, पहुँचे मिठाई की दुकान पर जब भुख लगी भारी, डाँट कर बोले- ये तुम मिठाई बना रहे हो ? कुछ खुद खा रहे हो कुछ मक्खियों को खिला रहे हो । . हलवाई - जब रहे आप लोगों की दुआएँ तो क्यों ना हम मिठाई खाए, और ये मक्खियाँ तो स्वतंत्र देश के प्राणी आजाद हैं, ईनके मिठाईयों पर बैठने से इनका और भी बढ जाता स्वाद है, तो आप हीं बताइए इसमें मेरा या फिर मक्खियों का क्या अपराध है, इससे पता चलता है कि मिठाईयाँ अच्छी बनी है, आप आए मेरे दुकान पर किस्मत के धनी है । . ये देखिए ये जलेबी ये बर्फ़ी ये लड्डू और ये रसमलाई है, तो कहिए जनाब क्या देख कर आपकी लार टपक आई है , बोले इसमें सबसे सस्ती कौन है, जनाब जलेबी पहले तो इसे गोल गोल घुमाओ , और खौलते तेल में पकाओ, फिर चासनी में डुबा-डुबा के निकालो औए मज़ा लेते जाओ , तभी टपक पड़ी चाचाजी की लार, और सारी जलेबियाँ हो गई बेकार । हलवाई बोला- अब तो आपको हीं सारी जलेबियाँ खानी पड़ेंगी, अगर ना खा पाए तो दो्गुनी किमत चुकानी पड़ेगी, क्योंकि अगर ना खा पाए तो यह राष्ट्रिय़ मिठाई का अपमान

आखिर कब तक

कब तक दिन के अधेंरे मेम मिलते रहेंगे आह भरते रहेंगे, एक दुसरे का नाम लेते रहेंगे, कब तक छुपते छुपाते गलियों से गुजरते रहेंगे, मुख बन्द रखेंगे पर आँखो से सब कुछ कहेंगे, कब तक गोद में सर रख कर ज़ुल्फ़ों से खेलते रहेंगे, एक दुसरे को जोश दिलाते रहेंगे पर खुद होश खोते रहेंगे । . ना मंजिल दिख रही है ना रास्ता बस तेरे प्यार का है वास्ता, कब तक इस वास्ते से दिल को बहलाते रहेंगे, खुद जख्म देंगे और मरहम लगाते रहेंगे, कब तक डाकिए को पाटाते रहेंगे, कागज़ के टुकड़ो को हवा में उड़ाते रहेंगे, सम्मा से दिल को जलाते रहेंगे सारे गम को धुँवा में उड़ाते रहेंगे । . कभी छुप जाती है चाँदनी खो जाती है डगर, कभी सूरज भी ढक जाता है बादलों से मगर, कब तक उन बादलों में खोते रहेंगे, बरसात बन कर रोते रहेंगे, कब तक दिल को समझाते रहेंगे, दिल फिर भी ना मानेगा और दुनिया में आग लागाते रहेंगे । Nishikant Tiwari

दुगना मर्द

एक दिन बोले मेरे दोस्त तू मर्द नही है, जो काम कर सकते है हम वो तू कर सकता नही है, हम सब ने है एक एक लड़की पटाई, पर तू अभी बच्चा है जा खा दुध मलाई, मैं बोला-तुम सब ने है एक एक लड़की पटाई मैं दो पटाउँगा, दुगना मर्द हूँ साबित कर के दिखलाऊँगा । सड़क किनारे एक लड़की जा रही थी, मैंने आव देखा न ताव बस दे फेखा दाँव, बोला-शायद आपका नाम रेखा है , लगता है आपको पहले भी कहीं देखा हैं, कहाँ ? पागलखाने में, मैं बोला-अच्छा तो आप भी वहीं थी, नही नही मैं अपने पिछले प्रेमी से मिलने गई थी सुन के उसकी बातों यारों खुद से कहा तुरन्त यहाँ से भागो । . फिर सिनेमा हाल के सामने एक दुसरी लड़की से हाथ मिलाया, और अपनी बदनसीबी का झुठा दुखड़ा कह सुनाया, बोली कहानी पुरी फ़िल्मी है पर इसमें क्लाइमेक्स नही है, मैं पूरी कहानी बनाती हूँ क्लाइमेक्स क्या होता है तुझको बताती हूँ, पहले धीरे से मुस्काई और फिर सैंडल उठाया, भागते भागते कलेजा पानी हो आया । . बेकार मैं घूम रहा था गली गली, मेरे घर के बगल में रहती थी एक सुन्दर कली, एक दिन देखते हीं उसे मैने हाथ हिलाया, पहले तो एक देखी फिर हँसी, मैं समझ गया कि लड़की फ़सी, देखकर मेरी चढती जवानी

पत्नी बनी सजनी

सजनी सजनी कहते कहते कितने लोग बुढाए, ना मिले सजने कबहूँ पत्नी गले पड़ जाए, तो सोंचे चलो पत्नी को हीं सजनी बनाए, प्रिए चलो किसी अनजान सी जगह पर लड़का लड़की बन के रहेंगे ... क़सम खा लो कुछ भी हो एक दुसरे को ना पति पत्नी कहेंगे, मैं तुझ पर दाने डालूँगा चक्कर तुझसे चलाउँगा, फ़साँ के तुमको प्यार के जाल में घर वापस लेकर आऊगाँ, बोली-हे नाथ आप जो कहेंगे वही होगी बात ।.... एक दिन टाइट जिंस पहन कर जैसे हीं निकली बाज़ार, सीटी मार के कितने आशिक पहुँच गए जताने प्यार, कोई कहे चल मैं तुझे सोने-चाँदी से सजा दूँ, तो कोई कहे चल मैं तुझे शहर घूमा दूँ, किसी ने कहा दिल तोड़ ना मेरा मैं हूँ बदनसीब, तो कोई कहे मैं सबसे हैंडसम हूँ आजा मेरे करीब ।.... पहले ने सोने सजाया तो दुसरे ने शहर घूमाया, तीसरे की दिल की बातें,चौथे से इश्क लड़ाया, पति हैरान परेशान खुद को बहुत समझाया, पर एक दिन हाथ पकड़ कर आइ लव यू बोल हीं आया सब समझे कि आवारा है कर दी खूब धुलाई, हाथ पाँव सब सूझ गए पकड़ ली चारपाई , ईधर ऊसने जाने कितने रंग बदले क्या क्या गुल खिलाया, एक दिन मोटर वाले के साथ भागते पाया ..... मेरी पत्नी भागी जा रही है, पकड़ो उसे मेरे यार

मच्छरजी महाराज

एक दिन बोला मच्छर, पढ लिख मैं भी हो गया हूँ साछर, तूने बहुत मस्ती की है, बहुत खुन बनाया है, अब मैं मौज़ करूँगा, तू बैठा रह मै तेरा खून पिऊँगा मैं बोला-अबे मच्छर हो कर मेरा खून पिएगा, ये तो हमारे हिन्दी फिल्मों के बड़े बड़े हिरो किया करते है, गाना गाकर खून पीने का मेरा उनीक तरीका है, अरे उन सब चेलो ने तो मुझसे ही सीखा है अपने औकात मेम रह , मच्छर होकर मुझसे जबान लड़ाता है, मुझे औकात सीखाता है , जानता नही यह मच्छरो का देश है, यहाँ एक एक आदमी पर सै सौ मच्छर नज़र आता है, इतने गोली बन्दूक चलते है,पर भला कोई मच्छर भी कभी मरता है, मरते हो तुम सब वह भी कुत्ते की मौत, मच्छर तो क्वाइल पर भी डांस किया करता है मच्छरजी महाराज मुझे माफ़ कीजिए, बदले में चाहे जितना खून साफ़ कीजिए, खून पीकर बोला मच्छर, थू यह तो बासी है, जरूर तू भी औरो का खून पीता है तभी तो फूल होकर गया हाथी है, ये तूम क्या बक रहे हो, लगता है आजकल मुँह नही धो रहे हो तुम्हे मालूम होना चाहिए मच्छरो के दाँत नही हुआ करते है, मुँह के गन्दे तो ईन्सान है तभी सुबह शाम ब्रश किया करते है, सुनो इस बार मैं चुनाव में खड़ा हो रहा हूँ, बस मलेरिया छाप पर ही मुह

शादी के बाद बहुत कुछ होता है

एक पल के लिए हँसता एक पल में रोता है, पल भर में जागता,पल भर के लिए सोता है, शादी के पहले कुछ कुछ होता था, शा़दी के बाद बहुत कुछ होता है । घर में घूसे तो उड़ जाए मेरी साँस, आ जाए अगर पास तो बिछ जाए मेरी लाश, इन माँ बेटी से हिटलर भी खा जाए मात, जाने कौन सा खाती है ये च्यवनप्राश, पर मुझे तो मिलती सुखी रोटी और चोखा है, शादी के पहले कुछ कुछ होता था, शा़दी के बाद बहुत कुछ होता है । बर्तन माँजना खाना पकाना, पोछा लगना , कपड़े धोना और पैर दबाना, आदमी शादी के पहले हीं आदमी रहता है, उसके बाद बैल ऊल्लू या गद्धा होता है, डारलिंग डारलिंग कहते थक गया तोता है, शादी के पहले कुछ कुछ होता था, शा़दी के बाद बहुत कुछ होता है । एक दिन सोते समय मैडमजी का पैर दबाते दबाते गर्दन दबाना चाहा, तभी उसने करवट फेरी और मेरी तीन हड्डियों का हो गया स्वाहा, दिल तो पहले हीं खो दिया था लगता है दिमाग भी अब खो दूँगा, तीन महिने बिस्तर पर पड़े पड़े जाने क्या कर बैठूँगा, मित्र सब समझा रहे कि जिन्दगी में सब कुछ होता है, पर यार शादी के पहले कुछ कुछ होता था शादी के बाद बहुत कुछ होता है । एक दिन अस्पताल आकर पत्नी बोली मुझे तलाक चाहिए,

नया फैशन

पान के छीटे जो पड़े बुरा ना मानिए ज़माना रंगीन है, इससे तो आप लग रहें, हसिनाओं से भी हसीन है, जहाँ खेली जाती है होली, यह वो सरज़मीन है, पान के छीटे जो पड़े बुरा ना मानिए ज़माना रंगीन है । लोग आपको देख कर ईष्या से जल जाएंगे नया फैसन समझ के इसे भी अपनाएंगे, फिर ड्रेस डिजाइनर में आपका नाम भी प्रचलित होगा, कौन मुर्ख आपको देख कर ना विचलित होगा, आप तो बेहतर थे हीं, पर इससे लग रहे और भी बेहतरीन है पान के छीटे जो पड़े बुरा ना मानिए ज़माना रंगीन है । Nishikant Tiwari

गोरी के बदनवा चक चक करेला

गोरी के बदनवा चक चक करेला देख के दिल्वा धक-धक करेला मरी ई बुढ़ुवा आज हाँफ-हाँफ भरेला गोरी के बदनवा चक चक करेला । कहाँ जातारू एतना सज धज के नचा द हमरा साथ आज नाच के कर आ करे द प्यार तनी मुहुवाँ से लार टप टप गिरेला गोरी के बदनवा चक चक करेला । तहरा जईसन ना केहू के गाल बा चढत जवानी अईसे जईसे चढत ई साल बा जे भी देखे इहे कहे माल बेमिसाल बा भड़क जाए ताऊ आ काका चुनरी तहार सरक-सरक गिरेला गोरी के बदनवा चक चक करेला । हमरा के ले ल साथ ना त ऐरा गैरा पकड़ ली तहार बहियाँ बहियाँ पकड़ के कही हम हीं तहार सईयाँ बजवादी शनईयाँ, ले के भागी मंदीरिया बियाह अरे करेला गोरी के बदनवा चक चक करेला । Nishikant Tiwari मुहँ के मुखौटा बना के घूमे गोरी मेला में जाके मुहँ के मुखौटा बना के घूमे गोरी मेला में जाके मुहँ में पाउडर एतना कि गाँव भर के लग जाए हमरा इ ना बुझाला कि एकह डिब्बा कईसे खप जाए लागेला अइसन कि आइल भूतनी मुहँ में धुरा लगा के मुहँ के मुखौटा बना के घूमे गोरी मेला में जाके । बलवा में अइसन-अइसन किलीप आ हेअबेंड कि देख के डर जाए हसबेंड ओठवा पे लाली एतना कि लगे आइल बिया खून पी के मुहँ के मुखौटा बना के घूमे गोरी मेला

Poems In English

A Lost Love (short story) . . . Is Love Blind ? ... .. . God when the dreams come true when the sky is full of stars and basket full of flowers we pray god and thank him BUT when night is dark and cold wind blowing when the emotions shrink to tears and face is gloomy when mornings are hopeless and days are painful we curse him WHY ? God can either be good or bad, how he can be both at a time just look into the eyes of a baby and you will get the answer all come in world with such innocent heart and we blend it with good or evil God represents that heart And i think now you can judge what he is ! Nishikant tiwari Meaning of why? Look at the river and think of fly Think of flow when birds move through sky Think why we are born and why we die If you are true to your heart and still can lie when we are able to differtiate between me and my If you know whom to say good morning and when to say good bye Think if he can do why can't I When you have answers to all above you can find succe

बड़ी खुबसुरत

बड़ी खुबसुरत लगती हो , लगती रहो, दिल जलाने के लिए दीवानों का यूँ हीं सजती सँवरती रहो, वो दिन कभी तो आएगा जब मुझ पर भी ईनायत होगी, यूँ हीं झूमती जवानी की मस्ती में रहो । प्यार की कोई मुरत कोई तस्वीर हो तुम, लगता है जैसे मेरी तकदीर हो तुम, मेरा दिल कबसे तेरे प्यार को प्यासा है, बन के घटा मेरे आँगन में बरसती रहो । संकोच करता हूँ बस यही मजबूरी है, वह भी डरती है,तभी तो दूरी है, प्यार इतना दूँगा जितना सागर मे पानी ना होगा, शर्त यह है कि बन के परी दिल के कस्ती में रहो । इतना ना आजमाओ की आजमाइश की चीज बन जाओ, सब तुम्हें देखे तुम नुमाइश की चीज बन जाओ, ऐसा ना हो कि ये दिन तुम पर हँसते हुए निकल जाएँ, और तुम तड़पती यादो की बसती में रहो । Nishikant Tiwari

स्वाभीमान

कब तक अपने आप को जलाते रहेंगे, खुद का तमशा बनाकर ताली बजाते रहेंगे, कि कोई हमें मजबूर नही कर सकता, हमें अपने आप से दूर नही कर सकता । कह दो ज़माने से कि हम नहीं लौटे पागलखाने से, कि कोई हमारे स्वाभिमान को चूर नहीं कए सकता, हमें अपने आप से दूर नही कर सकता । सपने तो हम देखते है लाखो हज़ारो के, पर सिर्फ़ आँसू बहाते है किनारो पे, बदनसीबी,बदहाली का मारा बता कर, बहला फ़ुसला कर ये काम क्रूर नहीं कर सकता है, हमें अपने आप से दूर नही कर सकता । कभी कभी ये दिल भी धोखा दे जाता है, अपनी बेईज्जती पर हँसता मुस्कुराता है, माना कि मनुष्य एक खिलौना है, पर ईस कहानी का कुछ तो अंत होना है, तो हमने दिल को समझा दिया है, कि कोई हमें बेईज्जत भरी नज़रो से घूर नही सकता , कि कोई हमें हमें अपने आप से दूर नही कर सकता । दिन हो या रात में ,अकेले में या बारात में, आकर भ्रम में या ज़ज़बात मे, मैंने खुद पे बहुत अत्याचार किए हैं, खुद अपनी नज़रो में गिरे है, जो मैने किया वो कोई शूर नहीं कर सकता, कि कोई हमें हमें अपने आप से दूर नही कर सकता । Nishikant Tiwari

खामोशी और बरसात की रात

रुक गई थी धरती रुक गया आसमान था, रुके हुए थे हुम दोनो और रुका सारा जहान था, ना रुकी थी तो बस यह खामोशी और यह बरसात । ऊपर नीला आसमान और आसमान मेम छाए काले बादल, नीचे खड़े थे पेड़ के हम दोनो जाने किन ख्यालो में पागल, एक विचित्र सी खामोशी थी फिर भी समा खामोश ना था, बिजली कड़क रही थी , बादल गरज़ रहे थे, हवाएँ गुनगुना रहीं थी फिर भी मैं चुप था, ना बन पा रही थी बात बस होती जा रही थी बरसात । ये नज़रें बस नज़रों को देखती जाती थी, शायद वह भी वही सोंच रही होगी जो मैं सोच रहा था, कि ये लड़का कौन है कि ये लड़की कौन है, पर मुझे तो इतना भी होश ना था कि मैं कौन हूँ, हम दोनो अनज़ान थे फिर भी लग रहा था मानो वर्षो की पहचान हो, जैसे वही मेरी जिन्दगी वही मेरी जान हो । सालो से ख्यालो मे आकर तंग जो करती रही है , आज सामने है और कुछ नही कर रही है , पता नही क्या बात है बस होती जा रही बरसात है । ईस अनजानी सी जगह पर जानी पहचानी खुशबु कैसी , शायद चंपा चमेली या मोंगरा की महक है , या फिर का नशा जो मुझे धिरे धिरे दीवाना बनाता जा रहा है । उसने मुझसे ओवर कोट माँगा ,मैं बोला क्यों तंग करती हो , (मेरा मतलब ख्यालों मे आकर तंग करन

इन्तज़ार

मेरा दिल और मेरी जान तुझ पर मिटने को बेताब है , बढने लगी बेचैनी मेरी बढने लगी आँखो की प्यास है , याद तुझको करूँ और तेरे बिन क्या करूँ , थोड़ा मैं शर्माऊँ ,किसको बताऊँ , हो रहा क्या मेरे साथ है । मेरे होठों की शबनम कह रही,कह रही मेरे केशुओं की शाम है , नज़रे उठते नहीं इस कदर हो गई बदनाम है , चर्चा होने लगी अपने बारे में कुछ होटों से कुछ ईशारों में , रहे मुझसे खफ़ा,क्या यही तेरी वफ़ा , कैसे कहूँ सबसे बता कि मेरे हाथों में तेरा हाथ है । डरती हूँ खूद से और थोड़ी ज़माने से , रिश्ते बनते नही सिर्फ़ नज़रों के मिल जाने से , मैं तेरे काबिल कहाँ फिर भी छोड़ के जहाँ , आ गए हो जो दिल के आशियाने में , एक करो तुम वादा इसमें रहोगे सदा , इसके सिवा क्या मेरे पास है । लाख रोकूँ तो क्या,कभी अक्स रुकते है समझाने से , बन के दुल्हन अरमान मेरी , खड़ी है दिल के दरवाज़े पे किसी बहाने से , तेरा भी क्या कसूर होगे तुम भी मज़बूर , पर आओगे ज़रूर,मुझे पुरा विश्वास है । Nishikant Tiwari

जिन्दगी की बेवफाई

कभी हमने ना सोचा था कि ऐसा भी होगा, कि जिन्दगी के ऐसे मोड़ पर आ खड़े होंगे, जहाँ हर कोई होगा ,पर कोई अपना ना होगा, किसको खबर थी की आग कैसे लग गई , जो लग सो लग गई, तो क्या फिर जलते चिता से उठता धुँआ का गुब्बारा ना होगा । बहारे आएंगी और कोयल भी गाएगी, बैठेगी कहाँ जब डाल ना होगा, फूल खिलेंगे चमन में महकेंगे, पर कोई भँवरा दिल लगाने वाला ना होगा । सागर से मोती चुराने गए थे, पर जब सागर हीं आँखे चुराने लगे तब, क्या करेंगे ले कर मोती , मोती तो होगा उसमे चाँद ना होगा, बस पत्थर हीं पत्थर होंगे उसमें भगवान ना होगा । सबको अपना समझते थे , सबसे मज़ाक किया करते थे, क्या मालूम था कि जिन्दगी ऐसा मज़ाक करेगी, कि हर कोई मज़ाक उड़ाने वाला तो होगा, पर कोई मज़ाक करने वाला ना होगा । इन्तहान देते देते थक गए हम, बातों और भावनाओं में बह गए हम, वो इन्तहान आखरी इन्तहान होगा, जब होंगें खड़े हम नदी के तट पे , और कटता किनारा होगा । चलो मान लिया हम इस दुनिया के लिये बने हीं ना थे, आखरी साँसो तक अकेले गुज़ारा होगा, दूर दूर तक ऊड़ते रहेंगे तनहाई की रेत, बस आँसुओ का हीं सहारा होगा । थे गँवार ,रह गए एक हीं पल्लू से बँध के, साथ छोड़

तेरे हाथो मिट जाने

पल भर तो पास बैठो मेरे, तुम्हें जी भर के देख लेने दो, तेरी आँखो का नूर हीं मेरे जिने का सहारा है, तेरी बेवफ़ाई से कोई शिकवा भी नही, उसी को अपना समझे जो ना कभी हमारा है, चाहे वफ़ा मिले या सज़ा इस दीवाने को, हम तो आए है तेरे हाथो मिट जाने को । पछ्ताए हुए खड़े है तेरी पनाहों में, ठुकड़ा दो मुझे या बसा लो निगाहों में, नमी सी जो दिखती है इन साँसों में, क्या करूँ आती नही बेशर्म सी ईन आँखो में, सज़ा दो इन्हें अपनी चौखट पर हीं टीक जाने दो, हम तो आए है तेरे हाथो मिट जाने को । तुम चाहो ना चाहो, तुम्हारी मर्ज़ी है, फिर भी तुम्हे चाहेंगे,मेरी खुदगर्ज़ी है, मेरा दिल तोड़ दो या बाहों में भर के प्यार करो, तुम्हे हक है मुझसे नफ़रत या प्यार करो, फूल खिलते है ,खिल के मुरझाने को, हम तो आए है तेरे हाथो मिट जाने को । छाया है जो नशा उसे और भी बढ जाने दो, चाहे तो दे दो बाहों का सहारा या मदहोशियों में गिर जाने दो, दहलीज दिल की लाँघ आए , सुनाने मोहब्बत के फ़साने को, बना के राज़ छुपा लो इसे सीने में, या खुल के बता दो ज़माने को, हम तो आए है तेरे हाथो मिट जाने को । क्या सही , क्या गलत मै नही जानता, जानता हूँ तो बस ईतना कि तुम

परिवर्तन

निकल आया है एक और दिन ढलने के लिए, उडते रेतों के बीच जलने के लिए, आया था फ़िर वही कहानी कहने के लिए, पर जा रहा है गुमसुम सिसकती रातों का हाथ थामने के लिए, धहकते सितारों के बीच सोने के लिए, दूर तनहाई में रोने के लिए । कभी बहती बहार सहलाया करती थी, कभी खिलता था प्यार मुस्काने के लिए, ढक रखा था फूलों ने इस कदर आशियाँ को, कि जगह ना छोडी काँटो के लिए, पर आज जो सेज सजी है काँटो की, तो क्यों रुठें फूलों के लिए, क्यों कर ले आँखें नम अपनी, चुभते ख्यालों में खोने के लिए । बरसती हैं आँखे तो बरसने दो, जाने कितने बरस तरस गए बरसने के लिए, नीचे कभी ना देखते थे, आँखो को करके नीचे, गिर गए नीचे, झुक गयीं शर्म से आँखे नीचे देखने के लिए, बुझता है दीपक तो बुझने भी दो, ऊजड़ा है चमन फिर से महकने के लिए । Nishikant Tiwari

टकला

रमेश भाई को जब तक हुए बाल बच्चे, उन्के सर के एक भी बाल नही बचे, कुछ बच्चे उन्हे टकला टकला कह कर चिढाते, तो कुछ सर पे मार के भाग जाते । सारे मुहल्ले मे किस्सा मश्हुर था, कि इन्के बाल यो ही नही उङॆ बल्की ऊङाए गये है, बेचारे पत्नी द्वारा बहुत सताए गये है, घर मे बीबी की डाट पडती, दफ़्तर मे बॉस देता धमकी, तुमसे मेरी बर्षॊ पुरानी यारी है, वर्ना काम मांगाने वालो मे आधी लड़किय़ाँ कुवाँरी है । जब दाढी बनवाने सैलून जाते ,नाई भी ईन पर चिल्लाते, ससुरजी भी कहते कि अगर तू शादी के पहले टकला हो जाता, तो हमारे दहेज़ का खर्चा बच जाता, जब वो बच्चो को स्कुल छोड़ने जाते , बच्चे ईन्हे अपना नौकर बताते, भाई आज के फैशन और खुबसुरती के ज़माने मे गंजा होना श्राप है, अब बच्चे कैसे बताँए कि टकला उन्का बाप है । एक सामाजिक संस्था तो यँहा तक कहती है, हर टकले को शादी करने से रोका जाए , कहीं ऐसा ना हो यह बिमारी पीढी दर पीढी फैलते फैलते, सारा संसार टकला हो जाये । ऊधर एक फिलोसोफर का कहना है , जिन्की सोंच गिरी हुई होती है उन्के बाल जल्दी गिर जाते है, ऐसे पतीतो को गोली मार देनी चाहिये , मुझे आशचर्य है वे खुद शर्म से क्यों नही मर

तुम‌ जॊ मुझॆ मिल गई हॊ

मॆरॆ सामनॆ बैठी हॊ तुम नही हॊ रहा है यकिन‌ बाँहॊ मॆ भर लॊ मुझॆ पागल ना हॊ जाऊ कही क‌ल जॊ निगाहॆ मिलानॆ सॆ भी ड‌र‌ती थी ,आज बातॆ कर‌ र‌ही कित‌नी इत्मिनान‌ सॆ अब‌ तुम‌ जॊ मुझॆ मिल गई हॊ मुझॆ और क्या चहियॆ इस जहान सॆ ! तुम भी मुझ प‌र‌ म‌र‌तॆ थॆ मुझ‌कॊ न‌ही था पता मगर दॆर सॆ इसमॆ है मॆरी खता तुम चाहॆ जॊ भी सजा दॊ हंस कॆ गुजर जाउगी मै हर इन्तिहान सॆ अब‌ तुम‌ जॊ मुझॆ मिल गऎ हॊ मुझॆ और क्या चहियॆ इस जहान सॆ ! बहार‌ आयॆ या जायॆ मुझॆ ग‌म‌ न‌ही मॆरी जान‌ तुम‌ खुद‌ किसी बहार‌ सॆ क‌म‌ न‌ही तुम‌ ज‌ब‌ भी ह‌स्ती हॊ फुल‌ ब‌र‌स‌नॆ ल‌ग‌तॆ है आस‌मान‌ सॆ अब‌ तुम‌ जॊ मुझॆ मिल गई हॊ मुझॆ और क्या चहियॆ इस जहान सॆ ! अप्सरा मझॆ क‌ह‌तॆ हॊ , क‌ह‌तॆ हॊ मुझ्कॊ परी ऎक‌बार फिर‌ सॊच‌ लॊ क‌ही यॆ दॊखा तॊ न‌ही तारीफ‌ ना मॆरी इतनी किजियॆ कि मै खुद् ज‌ल‌नॆ ल‌गू अप‌नी जान‌ सॆ अब‌ तुम‌ जॊ मुझॆ मिल ग‌ऎ हॊ मुझॆ और क्या चहियॆ इस जहान सॆ ! अग‌र‌ दॊखा हॊ इत‌ना ह‌सिन‌ फीर‌ मुझॆ जमानॆ की प‌र‌वाह‌ न‌ही अरॆ प्यार‌ मॆ हॊता य‌ही है आग‌ ल‌ग‌ती य‌हा पॆ तॊ धुआ उठ‌ता व‌हा सॆ अब‌ तुम‌ जॊ मुझॆ मिल गई हॊ मुझॆ और क्या चहियॆ इस जहान सॆ ! Nishi

ghadi dekh ker...

jab mai paida hua log kush hone se pahle bhagee samay note ghadi dekh ker , roz pitaji uthte ghadi dekh ker , chai pite ghadi dekh ker, nahane jaate to ghadi dekh ker , office bhi jaate to ghadi dekh ker , roz mummi bolti ter pitaji abhi tak nahi ayee ghadi dekh ker , pitaji gher aate gadhi dekh ker , samachar sunte ghadi dekh ker , khana khate ghadi dekh ker , aur sone bhi jaate to ghadi dekh ker !!!!!!!!! jab mai toda bada hua roz school jaane laga ghadi dekh ker , lunch aur chhutti bhi hoti to ghadi dekh ker , ek din gher der se pahucha to maa boli itni der kaha laga di ghadi dekh ker , mai bola jab mere pass ghadi hi nahi hai to gher kaise aawoon ghadi dekh ker , mil gayi mujhe ek nai ghadi , sabhi kush hote the dekh ker mujhko ghadi-ghadi , per kush hota bhi tha to ghadi dekh ker !!!!!!!!! bada ho ker roz interview dene jaya keta tha ghadi dekh ker , aur naukri mili bhi to mujhe aati jaati train ki suchi banani thi ghadi dekh ker , meri shadi ki baat chalayi gayi subh ghadi dek

tum jo mil gayi ho

mere samne baithi ho tum nahi ho raha hai yakin , bahon me bher lo mujhe pagal na ho jaaun kahi , kal jo nigahe milane se bhi derti thi , aaj bateien ker rahi hai kitni itminaan se , ab tum jo mujhe mil gayi ho mujhe aur kya chaahiye is jahan se ! tum bhi mujh per marte the mujhko nahi tha pata , samjhi magar der se , isme hai meri khata , tum chahe jo bhi saja do , hus ker gujar jaaongi mai her intihaan se , ab tum jo mujhe mil gaye ho mujhe aur kya is jahan se ! bahar aye ya jaye mujhe gam nahi , meri jaan tum khud kisi bahar se kam nahi , tum jab bhi hasti ho aisa lagata hai , jaise phool barasne lage ho asmaan se , ab tum jo mujhe mil gayi ho mujhe aur kya is jahan se ! apsra mujhe kahte ho , kahte ho mujhko pari , ek baar fir soch lo kahi ye dokha to nahi , taarif na meri itni kijiye ki , mai khud janle lagoo apni jaan se , ab tum jo mujhe mil gaye ho mujhe aur chahiye is jahan se ! agar dokha ho itna hasin , fir mujhe zamane ki parwah nahi , are pyaar me to hota yahi hai , aag l