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Showing posts from 2009

हांथो में आ गया जो कल रुमाल आपका

वो भी क्या दिन थे जब आशिक लड़कियों के रुमाल के लिए मरा करते थे |अगर गलती से किसी लड़की का रुमाल मिल जाए तो खुद को खुशनसीब समझते थे |उस रुमाल को जान से भी ज्यादा प्यार करते |उसे तकिये के नीचे रख के सोते |मैं भी सदा यही सपने देखा करता कि काश किसी लड़की का रुमाल मेरे हाथ में भी आता | इस रुमाल को लेकर हमारे गीतकारों ने जाने कितने गीत लिखे |जैसे काली टोपी लाल रुमाल ,रेशम का रुमाल आदि | ये रुमाल जो इतना सर आँखों पर चढा था स्वेन फ्लू ने इसकी ऐसी तैसी करके रख दी है | इस रुमाल, जिसे मैं पाने के सपने देखा करता था कल अचानक से मेरे पास आ गया |हुआ यूँ कि कल एक सहेली मुझसे बात करते करते अपना रुमाल भूल गयी | पर इस रुमाल को लेकर मै बड़ी दुविधा में पड़ गया हूँ | आप पूछेंगे , भला क्यों ? अरे इस स्वेन फ्लू की वजह से | इस रुमाल को न फेंकते बनता है न रखते | इस पर मुझे एक गाना याद आ रहा है .. हांथो में आ गया जो कल रुमाल आपका बेचैन केर रहा है ख्याल आपका ... कि कहीं आपको स्वेन फ्लू तो नहीं क्योकि कल आप छींक रहीं थी | एक तो ऐसे भी आज कल रुमाल रखने का चलन कम हो गया है ,लोग नेपकिन प्रयोग करने लगे है |फिर जाने

Hindi comedy poem bhrahm bhoj

आप ने दिया इतना सम्मान कि याद करते हीं मुंह में आ जाता है पान अब तक नाच रहा है जिह्वा पर खीर का स्वाद सदा सुखी रहो है दरिद्र का आर्शीवाद | छोले ,पूरियाँ ,आचार वो रायता भूले कैसे पालक-पनीर का जायका पर क्या कहे हुआ कितना अफ़सोस था मन तो भरा नहीं ,पेट ठूस के हो गया ठोस था | टूट गया धर्म मेरा पहली बार इस भोज में ना बाँध के ले जा सका कुछ भी मैं संकोच में पर चिंता मत कीजिये हमारा कम हीं पाप से मुक्ति दिलाना है तो बस इतना बता दीजिये फिर कब भोज पे आना है | Nishikant Tiwari

दिल के टुकड़े

इन आँखों के सैलाब से दो बूंद पानी मांग लेते तुम्हे हक़ था मेरी जवानी मांग लेते जाते जाते इतना तो रहम किया होता कि मुझसे अपनी वो प्यार की निशानी मांग लेते Nishikant Tiwari

एक ठोकर लगाने आ जाते

एक इशारा तो किया होता ,कब मैं तुमसे दूर थी तुमने हाथ तभी माँगा जब हो चुकी मजबूर थी वर्षों किया इंतजार मैंने पर तू पल भर भी न ठहर सका पूरा किया वो काम जो न कर कभी जहर सका सब कुछ भुला दिया इस कदर की ना मेरा नाम याद रखा मैं बेवफा हूँ ये इल्जाम याद रखा कभी तो लौट के आओगे जाने क्यों ये भरोसा था प्यार का तूफ़ान समझा जिसे वो तो बस एक चाहत का झोकां था प्यार नहीं एहसान सही ,थोड़ी दया दिखाने आ जाते अभी भी छुपे हैं दिल में अरमान कई ,एक ठोकर लगाने आ जाते Nishikant Tiwari

फेर लड़कियों के नाम की मनका

जलता रहा है दिल कब से, अब सिर्फ राख बाकी है मिल ना सका प्यार जो उसकी अभी भी तलाश बाकी है यू नहीं गुजारते रात जाग कर और नींद में भी चीखते रहे मुझे प्यार कर ,मुझे प्यार कर दुरिया मिटाने की हर संभव प्रयास जारी है हर लड़की लगती खुबसूरत हर लड़की लगती प्यारी है फिर भी कोई पास ना आए तो दिल क्या करे, टकटकी लगा कर देख रहे सबको हम खड़े खड़े जाने कितनी गालियाँ पड़ी और पिट चूका कई बार है पर प्यार के लिए हर जिल्लत, हर मार करनी पड़ती स्वीकार है ऐ दोस्त मेरे तू गम ना कर वो दिन कभी तो आएगा कोई तो देख तुम्हे शर्माएगी जब तू देख उसे मुस्काएगा मत सोचो गोरी है या काली, सुंदरी के कई रूप है जो मिल जाए अपना लो ,सब एक ही चाहत की धुप है अर्जुन की तरह तुम्हारा लक्ष्य केवल पाना प्यार है चाहे जो भी करना पड़े तुम्हे अगर सब स्वीकार है तो जान लो ये कि तेरा इतना मेहनत करना बेकार है आज कल प्यार बिकाऊ है ,सारी दुनिया खरीदार है अगर पैसा है ,बना सकते हो बातें गोल गोल तो तेरी भी बज सकती है फटी ढोल खुल के बोली लगा दे किसी के नाम की तुझे ज़रूर मिलेगी तेरे काम की क्या कहा, ना बातें बड़ी नाही पैसा है तो तू भी मेरे जैसा है आ बैठ , फेर

मै शायद इश्क को पहचानता नहीं (Hindi Love Stories)

कौन है वो ?क्या नाम है उसका ?अब हर तरफ ऑफिस में यही चर्चा है सब मुझसे आकर पूछ रहे है और पूछे भी क्यों न मेरे कोने वाली सीट पर एक नई लड़की ने ज्वाइन किया है बाकी कुछ तो पता नहीं पर उम्र से तो काफी कम मालूम पड़ती है बीच बीच में उठते बैठते नज़रें टकरा जातीं हैं वो भी कभी कभी मेरी तरफ देख लेती है जब वो मेरी तरफ देख रही होती है मैं अपनी नज़र कंप्यूटर के स्क्रीन पर टिका लेता हूं ताकि उसे ये ना मालूम पड़े कि मै उसे देख रहा हूँ एक सप्ताह बीत गए मैंने उसे हाय तक नहीं कहा मन में बड़ी ग्लानी हो रही थी सो सोमवार को जाते ही उसे हाय बोला , वह भी मुस्कुरा कर हेलो बोली आपका नाम क्या है बोली "मृदुला राजपूत" आपको कितने साल का एक्सपेरिएंस है ?"मैं फ्रेशेर हूँ " मैं वेद हूँ जावा में काम करता हूँ आपको कितना एक्सपेरिएंस है ? "दो साल " क्या आप मेरे साथ चाय पीना पसंद करेंगी ? मेरे मुंह से अचानक निकल गया इससे पहले मैंने कभी किसी लड़की को चाय के लिए नहीं बोला था पर आज ना जाने क्यों पहली मुलाकात में हीं यह बात निकल गयी वह एक आधुनिक लड़की थी उसके लिए लड़को के साथ चाय पीना कोई नयी या वि

Here I m again to collect some more pain for my treasure

The most adventurous part of this amazement is that she is committed And I m like a obscurity to this commitment Playing with myself a foul game of legacy about an intimacy Driving imperial part of me enjoy most of this conspiracy . Mesmerized by herself when she looks with such a galore A infamous geek in me battles with my intellect to make me look foolish for sure And all what results is like a game of boxing With me on loosing side with more wounds to explore. But purest of my dreams inspires me to notice her To understand myself more by knowing her better Flaming a path that leads me no where Here I m again to collect some more pain for my treasure. Nishikant Tiwari

हर रोज़ मेरे भीतर

मर के जीने की कोशिश कर रहा जो जी के न जी सका कभी फ़िर भी स्वार्थ की नई कीमत खोजता एक खोज मेरे भीतर ये समय की जिद थी या जिंदगी की जरुरत मुझको हीं पैसे से तौलता वो हर रोज़ मेरे भीतर | जिसके हसीं की लहरों से बना था मेरे प्यार का समुंदर देखा उसे तो बस नफ़रत से,क्यों इतना संकोच मेरे भीतर आकाश सी उदासी वो आखों में समेटे यही प्रश्न पूछने चली आती हर रोज़ मेरे भीतर | कांटो की बेल से छुपाये सारे घावों को हर खुशी में चीखता एक बोझ मेरे भीतर भागता रहा सारी उम्र जिस ठहराव से आ जाता है लड़ने वो हर रोज़ मेरे भीतर | पत्थर की करके पूजा पत्थर हीं बन गया हूँ फर्क नहीं पड़ता लग जाए जितना खरोंच मेरे भीतर झुकती नहीं हैं नज़रें गिर जाऊं चाहे जितना तालियाँ बजाता सन्नाटा हर रोज़ मेरे भीतर | सोचता हूँ मन के सूखे ताल को नीर से भर दूँ होगा कभी तो पुलकित सरोज मेरे भीतर जिसकी थपकियों से टूटे अंहकार की सीमायें मिल जाए वो मुझको हर रोज़ मेरे भीतर | Nishikant Tiwari