हर शाम जब भी मैं छत पे टहलने जाता
उसे सामने की छत पे मटकते पाता
कभी शर्मा के देखती, कभी देख के शर्माती
किताब लिए मुझे देख हमेशा कुछ रटती रहती |
उसे सामने की छत पे मटकते पाता
कभी शर्मा के देखती, कभी देख के शर्माती
किताब लिए मुझे देख हमेशा कुछ रटती रहती |
मैं था निपढ मुर्ख बाल ब्रह्मचारी
वो कहाँ कोई साधारण नारी
लड़की देख तो मुझे आये पसीना
मोहल्ले की कोई छोरी हो या करीना कटरीना |
वो कहाँ कोई साधारण नारी
लड़की देख तो मुझे आये पसीना
मोहल्ले की कोई छोरी हो या करीना कटरीना |
पागल होकर मेरे प्रेम में
फिट किये बैठी थी मुझे आँखों के फ्रेम में
मुझे तो कबड्डी तक आती न थी
और खींच रही थी ओलम्पिक के गेम में !
फिट किये बैठी थी मुझे आँखों के फ्रेम में
मुझे तो कबड्डी तक आती न थी
और खींच रही थी ओलम्पिक के गेम में !
मन ही मन मै भी उसपे मरता था
पर आते देख घबरा के राह बदल लिया करता था
एक दिन बोली रोक के मुझे बीच बाज़ार में
तुझमे कुछ कमी है या कमी है मेरे प्यार में ?
पर आते देख घबरा के राह बदल लिया करता था
एक दिन बोली रोक के मुझे बीच बाज़ार में
तुझमे कुछ कमी है या कमी है मेरे प्यार में ?
क्या कहूँ लड़की थी या परी
पर मुझ पे थी क्यों मिट - मरी
आखिर मैंने था क्या किया
जो मानने लगी थी पिया ?
पर मुझ पे थी क्यों मिट - मरी
आखिर मैंने था क्या किया
जो मानने लगी थी पिया ?
अब तो आईने में जोश से बांहे फुलाता
पर छत पे जाते हीं फिर बिल्ली बन जाता
हो सकता सब अगर बस जोश से
तो गधे जीत कर निकलते घोड़ो की रेस से |
पर छत पे जाते हीं फिर बिल्ली बन जाता
हो सकता सब अगर बस जोश से
तो गधे जीत कर निकलते घोड़ो की रेस से |
एक दिन हिम्मत करके मैंने भी किये इशारे
पर हम तो नौसिखिये थे इस खेल में प्यारे
पता नहीं क्या खोट हो गई
वो हंस हंस के लोट पोट हो गई |
पर हम तो नौसिखिये थे इस खेल में प्यारे
पता नहीं क्या खोट हो गई
वो हंस हंस के लोट पोट हो गई |
वो बेचारी कितनी तड़पती, कितनी रोती थी
पर सामने जाने की मेरी हिम्मत ही न होती थी
कितने महीने खुद को वो ऐसे ही तडपाती
अब तो पेड़ पर रहती कबूतरनी भी बन गई थी दादी |
पर सामने जाने की मेरी हिम्मत ही न होती थी
कितने महीने खुद को वो ऐसे ही तडपाती
अब तो पेड़ पर रहती कबूतरनी भी बन गई थी दादी |
राखी के दिन जाने क्यों गुस्सा थी अम्मा
तुझसे कोई मिलने आया है नालायक निक्कमा
मेरी तो पतलून उतर गई थी
राखी का थाल लिए वो सामने खड़ी थी !
तुझसे कोई मिलने आया है नालायक निक्कमा
मेरी तो पतलून उतर गई थी
राखी का थाल लिए वो सामने खड़ी थी !
एक टक देखी मुझे गौर से
अह फिर बाँध दी राखी जोर से
आखिर उसे क्यों ना लगती मिर्ची
पिताजी उसके बन सकते थे ससुरजी |
अह फिर बाँध दी राखी जोर से
आखिर उसे क्यों ना लगती मिर्ची
पिताजी उसके बन सकते थे ससुरजी |
रोज़ उसे छुप छुप देखा करता हूँ
उस दिन को याद करके आंहे भरता हूँ
वो भी इशारे करती है
मुझ पे नहीं मेरे बाजू वाले पर मरती है !!
उस दिन को याद करके आंहे भरता हूँ
वो भी इशारे करती है
मुझ पे नहीं मेरे बाजू वाले पर मरती है !!
Nishikant Tiwari - Hindi Comedy Poem
Sahi bole bhai apni bhi yahi kahani hai
ReplyDeleteThanks for sharing this nice funny hindi poem
I m a regual reader of your blog. U rock man..
Keep it up
Kartik
जिंदगी तू इतनी बेवफा है
ReplyDeleteलगता है तू भी मुझसे खफा है
अरे हम कहते है अब मान भी जाओ
हमें भी अपने कुझ हसीन रंग दिखलाओ
very nice Nishi..loved it..!!!!
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ReplyDeleteदिल छू लेगी यह कहानी एक बार ज़रूर देखै
ReplyDeleteइस विडियो को दैखकर पूरी दुनिया हैरान है
Shocked || True Love Story || Heart Touching Sad …: http://youtu.be/UfC6r_akxZw
दिल छू लेगी यह कहानी एक बार ज़रूर देखै
ReplyDeleteइस विडियो को दैखकर पूरी दुनिया हैरान है
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दिल छू लेगी यह कहानी एक बार ज़रूर देखै
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Shocked || True Love
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