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Showing posts from February, 2016

अरमान जगाएं

इतना सोच समझ के कब तक चलेंगे खुद से बच के क्यों न फिर बेपरवाह हो जाएँ एक दूजे में फिर से खो जाएंं । थोड़ा इठला के शर्मा के थोड़ा मुस्कुरा गुनगुना के शिकायतों को तमाशा दिखाएँ मीठी यांदो को दावत पे बुलाएँ । बिखरी बांतो को समेट के बांधो गठरी जरा कास के  सफर बहुत है लम्बा कहीं गाँठ खुल न जाए । देखता है कौन छुप छुप के आज जाने ना पाये बच के उसे छेड़े गुदगुदाए , सताए उस अजनबी से नयन लड़ाए । ना समझ की बांते, ना आज कोई टोके शोर मचाएं तोड़ टांग सुरों के जलती रहीं मशाले, बुझ गए अरमान आज मशालों को बुझा के फिर से अरमान जगाएं । Nishikant Tiwari Hindi Love poem