डुबते को तिनके का सहारा होता,
दुनिया की इस भीड़ में कोइ तो हमारा होता,
काँटों को भी फूल समझ सीने से लगा लेते ,
अगर उनका एक इशारा होता ,
दुनिया की इस भीड़ में कोइ तो हमारा होता |
.
लड़खड़ाए कदम क्या रास्ते हीं खो गए,
और पलक भर झपके हीं थे कि वे और किसी हो गए,
ऊफ ये दर्द ना सहना पड़ता ,
काश मेरा भी दिल उनकी तरह आवारा होता ,
दुनिया की इस भीड़ में कोइ तो हमारा होता |
.
हमे भी मुस्कुराना आ जाता, अगर नज़रे चुराना आ जाता
क्यों तड़पते भर भर के आहें,
खुद जो मरहम लगाना आ जाता,
मज़धार में भटके को मिल गया किनारा होता,
दुनिया की इस भीड़ में कोइ तो हमारा होता |
.
कुछ देर के लिए ये वक्त ठहर जाता तो , हम साथ उनके हो लेते
रुक भी जातीं ये साँसे तो,
पल भर हीं साथ उनके जी लेते,
ना ठेस लगती इस हाथ में जो हाथ तुम्हारा होता,
दुनिया की इस भीड़ में कोइ तो हमारा होता |
Nishikant Tiwari
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nar ho naa nirash kar no man ko
ReplyDeleteabhi umar hae hae woh joh apna hog atum tak aayega
निशिकांत
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ब्लॉग के लिए आप को ढेर सारी बधाई
उजाले रहे साथ जब तक तुम्हारे
अंधेर रहे कैद में पास हमारे
देवी नागरानी
very nice poem....
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