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Tuesday, August 14, 2007

सच्चा देश भक्त

खादी धोती खादी कुर्ता खादी रुमाल,
खादी झोला खादी टोपी रौबदार चाल,
बीच बाज़ार घूम रहे थे चाचाजी क्रांतीकारी,
पहुँचे मिठाई की दुकान पर जब भुख लगी भारी,
डाँट कर बोले- ये तुम मिठाई बना रहे हो ?
कुछ खुद खा रहे हो कुछ मक्खियों को खिला रहे हो ।
.
हलवाई - जब रहे आप लोगों की दुआएँ तो क्यों ना हम मिठाई खाए,
और ये मक्खियाँ तो स्वतंत्र देश के प्राणी आजाद हैं,
ईनके मिठाईयों पर बैठने से इनका और भी बढ जाता स्वाद है,
तो आप हीं बताइए इसमें मेरा या फिर मक्खियों का क्या अपराध है,
इससे पता चलता है कि मिठाईयाँ अच्छी बनी है,
आप आए मेरे दुकान पर किस्मत के धनी है ।
.
ये देखिए ये जलेबी ये बर्फ़ी ये लड्डू और ये रसमलाई है,
तो कहिए जनाब क्या देख कर आपकी लार टपक आई है ,
बोले इसमें सबसे सस्ती कौन है,
जनाब जलेबी पहले तो इसे गोल गोल घुमाओ ,
और खौलते तेल में पकाओ,
फिर चासनी में डुबा-डुबा के निकालो औए मज़ा लेते जाओ ,
तभी टपक पड़ी चाचाजी की लार,
और सारी जलेबियाँ हो गई बेकार ।
हलवाई बोला- अब तो आपको हीं सारी जलेबियाँ खानी पड़ेंगी,
अगर ना खा पाए तो दो्गुनी किमत चुकानी पड़ेगी,
क्योंकि अगर ना खा पाए तो यह राष्ट्रिय़ मिठाई का अपमान होगा,
आपका दुगना भुगतान देश के प्रति छोटा सा बलिदान होगा।
जैसे हीं उन्होने एक जलेबी चबाई,
दाँतों तले से करकराहट की आवाज़ आई,
बोले इसमें तो आ रहा मिट्टी का स्वाद है ।
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हलवाई-वाह क्या बात है,
आप जैसे लोगो को हीं आ सकती जलेबी में देश की मिट्टी की महक है,
तभी तो आपकी आँखो में आ गई नयी चमक है,
सोचने लगे बेस्वाद जलेबी आखिर ठूसे तो कितना ठूसे,
देश भक्ती का चोला भी पहने रहे व धन से नाता भी ना टूटे,
मर के खाए और खा खा के मरे,
बहुत बुरे फ़ँसे आखीर करें तो क्या करें ।
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अंत में एक जलेबी बच गई,
सोंचे जलेबी गई अगर अंदर तो प्राण जाएंगे बाहर,
देश भक्ती के चक्कर में बेमतलब जाएंगे मर,
ईज्जत जाए या धन से नाता टूटे,
अब न खाउँगा जलेबी जग रुठे या किस्मत फूटे ,
भारी मन से दिया दोगुना दाम,
और तुरन्त भागे बिना किए विश्राम,
मुस्कुरा कर बोला हलवाई,
देश के सच्चे देश भक्त को ,
सत सत प्रणाम सत सत प्रणाम ।


Nishikant Tiwari

5 comments:

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