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Tuesday, August 14, 2007

आखिर कब तक

कब तक दिन के अधेंरे मेम मिलते रहेंगे आह भरते रहेंगे,
एक दुसरे का नाम लेते रहेंगे,
कब तक छुपते छुपाते गलियों से गुजरते रहेंगे,
मुख बन्द रखेंगे पर आँखो से सब कुछ कहेंगे,
कब तक गोद में सर रख कर ज़ुल्फ़ों से खेलते रहेंगे,
एक दुसरे को जोश दिलाते रहेंगे पर खुद होश खोते रहेंगे ।
.
ना मंजिल दिख रही है ना रास्ता बस तेरे प्यार का है वास्ता,
कब तक इस वास्ते से दिल को बहलाते रहेंगे,
खुद जख्म देंगे और मरहम लगाते रहेंगे,
कब तक डाकिए को पाटाते रहेंगे,
कागज़ के टुकड़ो को हवा में उड़ाते रहेंगे,
सम्मा से दिल को जलाते रहेंगे सारे गम को धुँवा में उड़ाते रहेंगे ।
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कभी छुप जाती है चाँदनी खो जाती है डगर,
कभी सूरज भी ढक जाता है बादलों से मगर,
कब तक उन बादलों में खोते रहेंगे,
बरसात बन कर रोते रहेंगे,
कब तक दिल को समझाते रहेंगे,
दिल फिर भी ना मानेगा और दुनिया में आग लागाते रहेंगे ।

Nishikant Tiwari

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