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Monday, June 2, 2008

है अगर ईश्क तो आँखो में उतर आने दे ।

चाहे मेरी चाहत को मोहब्बत का नाम ना दे,
पर अपने रुप तूफ़ान में बिखर जाने से ना रोक मुझे,
हर शाम भींगी रहे तेरे शबनम से कसम,
एक बार सही प्यार से देख मुझे ।

थम के रह गई है जो एक झनक तनहा,
अपने चाल की ताल पे फ़िर से थिरक जाने दे,
शर्म की पनाह से निकल कर ईश्क को लेने दो अँगड़ाईयाँ,
अपने जजबात को हालात से टकरा जाने दे ।

रहतीं हैं सलामत जहाँ प्यार की निशानियाँ सभी,
मेरी बेकरारियों को अपने दिल में ठहर जाने दे,
खुद को यूँ ना दो तुम सजा मुझसे नफ़रत करके’
है अगर ईश्क तो आँखो में उतर आने दे ।


Nishikant Tiwari

3 comments:

  1. थम के रह गई है जो एक झनक तनहा,
    अपने चाल की ताल पे फ़िर से थिरक जाने दे,
    शर्म की पनाह से निकल कर ईश्क को लेने दो अँगड़ाईयाँ,
    अपने जजबात को हालात से टकरा जाने दे ।

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  2. किसी के मुकद्दर में ख़ुशी है '
    किसी के मुकद्दर में गमों का शमां
    हम तो इस बौखलाहट में है.
    कि हमारा मुकद्दर है कहाँ "

    बहुत खूब दोस्त काफी अच्छा लिखते हो
    मेरी शुभ कामनायें आप के साथ है
    प्रवीण शुक्ल 9971969084

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  3. Do baate unse ki toh dil ka dard kho gaya,
    Logo ne humse poocha ki tumhe kya ho gaya,
    Bekarar aankho se sirf hans ke reh gaye,
    Ye bhi na kah sake ki hume pyar ho gaya.

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