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Tuesday, December 18, 2007

हम फिर मिलेंगे

फिर मिला देना हमें ऐ आसमान,
अगर मिल जाए तुझको वक्त कहीं,
कि अब उन्हें जाने से कैसे रोक लें हम,
कि उनके आँसुओ पर भी हमारा हक नहीं ।

मेरी अनछुई हसरतें बन गई एक हसीन भ्रम तो क्या,
ये दुरियाँ, मज़बुरियाँ फैली दूर तक सही,
पर मुझे होश में आने से रोक ले कोई,
कि अभी तक पहुँचे ख्वाबों के दहलीज तक नहीं ।

जो देखा सुना उसे सच मान बैठे,क्या करें,
भला अपनी आँखों पर तो करता कोई शक नहीं,
उसकी हँसी को नाम देने में अनमोल पल खो दिए,
हर रिस्ते का कोई नाम हो,इसकी जरुरत तो नहीं ।

प्रेम की एक भींगी किरण ह्रिदय में मचलती तड़पती रह गई,
खुद से थोड़ा नाराज़ और दुखी हूँ मैं क्यों लब मेरे खुले आज तक नही,
छुरियों की धार से हाथ की रेखाएँ नही बदली जाती,
जहाँ भी हो खुश रहो अगर फिर मुझे किसी से कोई शिकायत नही ।


Nishikant Tiwari

1 comment:

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