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Monday, October 15, 2007

मुश्किलों का हल ढूंढता हूँ

तेरी बेवफाई से बिखर गया मैं हज़ार टुकड़ो में ,
जिस टुकड़े में मेरा दिल था वो टुकड़ा आज भी ढूंढता हूँ,
रह के मेहफिलों में भी खामोश ,
अपनी मुश्किलों का हल ढूंढता हूँ ।
.
कुछ जिद है ऐसी की तन्हाइ में जिना सुहाना लगता है,
और यहाँ तो सभी अपने अपने में जिए जा रहें हैं,
यह शहर भी मेरी तरह दीवाना लगता है,
सब ने बाग से फूल तोड़ कर घर के गुलिस्ते सजा डाले,
उजड़ा उजड़ा सा है चमन फिर भी सुहाना लगता है ।
.
टूट जाता है इन्सान कभी प्यार में कभी टकरार में

पर जिन्दगी चलती रहती है अपनी मस्ती ,अपनी रफ्तार में,
खुद को चाहे बाँध लो जंजीरों से,
फिर भी मन भागता चला जाता है ,

और उसके पीछे मज़बूर इन्सान हँफता चला जाता है
.
हाँ कहीं धूप है तभी तो छाँव है ,
दो पल की खुशी के लिए सारी जिन्दगी का लगा दाव है ,
पर रख के गिरवी जिन्दगी को और कया माँगे जिन्दगी से ,
दो आँसू हीं सही पर खरिदे है खुशी से ।

Nishikant Tiwari

2 comments:

  1. हेलॊ जी
    मैँ केरल से हूँ। मलयालम में ब्लोग कर रहा हूँ।
    मैंने ब्लॊगिंग ब्लॊगस्पॊट में शुरू किया था। अब मेरा जॊ ब्लॊग( रजी चन्द्रशॆखर ) वॆर्ड्प्रस में है, उसी में हिन्दी प्रविष्टियाँ भी शामिल कर रहा हूँ । कृपया दॆखें और अड्वैस भी दें।

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  2. good one , check how my composition is http://mayank13786.blogspot.com

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