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Friday, August 3, 2007

स्वाभीमान

कब तक अपने आप को जलाते रहेंगे,
खुद का तमशा बनाकर ताली बजाते रहेंगे,
कि कोई हमें मजबूर नही कर सकता,

हमें अपने आप से दूर नही कर सकता ।

कह दो ज़माने से कि हम नहीं लौटे पागलखाने से,
कि कोई हमारे स्वाभिमान को चूर नहीं कए सकता,
हमें अपने आप से दूर नही कर सकता ।

सपने तो हम देखते है लाखो हज़ारो के,
पर सिर्फ़ आँसू बहाते है किनारो पे,
बदनसीबी,बदहाली का मारा बता कर,
बहला फ़ुसला कर ये काम क्रूर नहीं कर सकता है,

हमें अपने आप से दूर नही कर सकता ।

कभी कभी ये दिल भी धोखा दे जाता है,
अपनी बेईज्जती पर हँसता मुस्कुराता है,
माना कि मनुष्य एक खिलौना है,
पर ईस कहानी का कुछ तो अंत होना है,
तो हमने दिल को समझा दिया है,
कि कोई हमें बेईज्जत भरी नज़रो से घूर नही सकता ,

कि कोई हमें हमें अपने आप से दूर नही कर सकता ।

दिन हो या रात में ,अकेले में या बारात में,
आकर भ्रम में या ज़ज़बात मे,
मैंने खुद पे बहुत अत्याचार किए हैं,
खुद अपनी नज़रो में गिरे है,
जो मैने किया वो कोई शूर नहीं कर सकता,
कि कोई हमें हमें अपने आप से दूर नही कर सकता ।

Nishikant Tiwari

1 comment:

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