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Thursday, August 16, 2007

पर्दा बेदर्दी


ये जो पर्दा है बेदर्दी जान ले लेगा,
मैं प्यार करता हूँ उससे यह बात मेरे सिवा कोई जानता नहीं,
अगर जाने तो जान ले लेगा,
उसके आगे पीछे घूमते लोफ़र मुझे अच्छे नहीं लगते,
अगर ये कह दूँ तो लोफ़र जान लेलेगा,
ये जो रात की तनहाई हैं इसमें कितनी गहराई है,
ये रात तो फिर भी कट जाएगी,
पर उसकी एक परछाई जान लेलेगी,
और जब आग में कूद पड़े तो जलने से डरना क्या,
पर उसका दिल जलाना जान ले लेगा,
ये जो पर्दा है बेदर्दी जान ले लेगा ।
.
उसकी प्यारीं आँखे हैं मेरी दुश्मन,
मैं जो छुप छुप के देखा करता हूँ उसको,
ऐसे में आँखो का आँखो से मिल जाना जान ले लेगा,
और जब नज़रें मिल हीं गईं हैं तो कुछ कह भी दो,
यूँ तेरा मुँह फेर के पलके झपकाना जान ले लेगा,
हम तो इसी इन्तज़ार में रहते है कि कब वह निकले बाहर,
पर इस कड़ी धुप में कलि का निकलना और मुरझाना जान ले लेगा,
कितना खुश होता हूँ मैं उसको चमकती चाँदनी में देख कर,
पर रह रह कर चाँद का भी उतना हीं खुश होना जान ले लेगा,
ये जो पर्दा है बेदर्दी जान ले लेगा ।
.

हम उससे उलझने की हिम्मत भला कैसे करे ,

सिर्फ़ उसके बालों का उलझना जान ले लेगा,
कोई कैसे भूल सकता हैं भला,
उसका जवनी के उमंग में फूदकना,
और ऐसे में दुप्पटे का सरकना जान ले लेगा,
वह अगर रुठ गई तो ना जी पाएँगे हम,
और उसका मुस्कुराना भी जान ले लेगा,
पहले तो हम प्यार के नाम से भी डरते थे,
पर अब जो प्यार हो हीं गया है,
तो उसका अंजाम जान ले लेगा,
ये जो पर्दा है बेदर्दी जान ले लेगा ।


Nishikant Tiwari

1 comment:

  1. स्वागत है आपका हिन्दी चिट्ठाजगत में। अच्छी कवितायें हैं लिखते रहिये।

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