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Wednesday, February 27, 2008

एक नये सुबह का इन्तज़ार

हर रात सिसकती बिलखती रह जाती है एक नये सुबह के इन्तज़ार में,
वह सवेरा आता भी है तो बस कुछ वादे करने के लिए ,
छोड़ जाता है सारा दिन आशा के दिए तले जलने के लिए,
शाम होते हीं फ़िर दिन ढल जाता है अपने सारे वादे तोड़ कर एक हीं बार में,
और फ़िर रात सिसकती बिलखती रह जाती है एक नये सुबह के इन्तज़ार में ।


बस इन्तज़ार इन्तज़ार अब और कितना,दिल में घुटन सागर जितना,
गुमसुम है वो,शायद जिन्दगी के मतलब तलाश रही है,
अपनी सांसो का मकसद ढुढने खातिर सारी सारी रात जाग रही है,
क्यों इस कशमकिश के बिना अधुरी है कहानी उसकी,
कोई समझा दे अकसर ऐसा हीं होता है प्यार में ,
हर रात सिसकती बिलखती रह जाती है एक नये सुबह के इन्तज़ार में ।

Nishikant Tiwari

1 comment:

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