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Thursday, August 23, 2007

हम आज भी अकेले है


उसके कदमों पे गिर जाता मैं इतना भी मज़बूर न था
चाहता था बहुत उसे पर ये मेरे दिल को मंज़ूर ना था
वफ़ा के बदले मिलती वफ़ा यह ज़माने का दस्तूर न था
कल प्यार का मौसम था और आज भी चाहत के मेले है
हम कल भी अकेले थे और आज भी अकेले है
जब तुमने हीं ना समझा तो क्या करे हम गम
जी लेंगे जैसे जीते आए हैं हम
सीने पे वार सहे दिल पर ज़ख्म खाए हैं
सारे अरमान बेच डाले फिर भी हार के आए हैं
तु जो भी कहो जो भी करो सब तेरा करम
हँसते रहें हैं हँसते रहेंगे चाहे कर लो जितने सितम
वह कहती हैं अब कुछ भी नहीं है हम दोनो में
फिर भी उसकी बाते क्यों चुभती हैं दिल के कोने कोने में
प्यार में तेरे तन मन पर गिरी जाने कितनी बिजलियाँ
प्यार की एक एक बूँद को तरसा जैसे पानी बिन मछलियाँ
उसे बस साथ चाहिए था प्यार नहीं
अच्छा हुआ दिल टूट गया अब किसी का इन्तज़ार नहीं
मैं समझ पाता उसको इतना भी समझदार ना था
उसकी चाहत एक ज़रुरत थी उसका प्यार प्यार ना था ।


Nishikant Tiwari

4 comments:

  1. बढ़िया लिखते हैं आप!!

    क्या आपने नारद के अलावा अन्य एग्रीगेटर्स पर भी अपने ब्लॉग़ का पंजीयन करवाया है?

    शुभकामनाएं

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  2. well myself khivraj sharma and recently i visit ur blog..........that really very very nice and full of very touchable poems

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  3. hey Nishi hello this is Sony from Dubai...Your poems are really heart touching..Music is my passion & ur words motivate me to bring out my passion..Dear jhuk jhuk jeeyo..U can always email me back at smile261187@yahoo.com

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