रुक गई थी धरती रुक गया आसमान था, रुके हुए थे हुम दोनो और रुका सारा जहान था, ना रुकी थी तो बस यह खामोशी और यह बरसात । ऊपर नीला आसमान और आसमान मेम छाए काले बादल, नीचे खड़े थे पेड़ के हम दोनो जाने किन ख्यालो में पागल, एक विचित्र सी खामोशी थी फिर भी समा खामोश ना था, बिजली कड़क रही थी , बादल गरज़ रहे थे, हवाएँ गुनगुना रहीं थी फिर भी मैं चुप था, ना बन पा रही थी बात बस होती जा रही थी बरसात । ये नज़रें बस नज़रों को देखती जाती थी, शायद वह भी वही सोंच रही होगी जो मैं सोच रहा था, कि ये लड़का कौन है कि ये लड़की कौन है, पर मुझे तो इतना भी होश ना था कि मैं कौन हूँ, हम दोनो अनज़ान थे फिर भी लग रहा था मानो वर्षो की पहचान हो, जैसे वही मेरी जिन्दगी वही मेरी जान हो । सालो से ख्यालो मे आकर तंग जो करती रही है , आज सामने है और कुछ नही कर रही है , पता नही क्या बात है बस होती जा रही बरसात है । ईस अनजानी सी जगह पर जानी पहचानी खुशबु कैसी , शायद चंपा चमेली या मोंगरा की महक है , या फिर का नशा जो मुझे धिरे धिरे दीवाना बनाता जा रहा है । उसने मुझसे ओवर कोट माँगा ,मैं बोला क्यों तंग करती हो , (मेरा मतलब ख्यालों मे आकर तंग करन...