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Showing posts from July, 2007

खामोशी और बरसात की रात

रुक गई थी धरती रुक गया आसमान था, रुके हुए थे हुम दोनो और रुका सारा जहान था, ना रुकी थी तो बस यह खामोशी और यह बरसात । ऊपर नीला आसमान और आसमान मेम छाए काले बादल, नीचे खड़े थे पेड़ के हम दोनो जाने किन ख्यालो में पागल, एक विचित्र सी खामोशी थी फिर भी समा खामोश ना था, बिजली कड़क रही थी , बादल गरज़ रहे थे, हवाएँ गुनगुना रहीं थी फिर भी मैं चुप था, ना बन पा रही थी बात बस होती जा रही थी बरसात । ये नज़रें बस नज़रों को देखती जाती थी, शायद वह भी वही सोंच रही होगी जो मैं सोच रहा था, कि ये लड़का कौन है कि ये लड़की कौन है, पर मुझे तो इतना भी होश ना था कि मैं कौन हूँ, हम दोनो अनज़ान थे फिर भी लग रहा था मानो वर्षो की पहचान हो, जैसे वही मेरी जिन्दगी वही मेरी जान हो । सालो से ख्यालो मे आकर तंग जो करती रही है , आज सामने है और कुछ नही कर रही है , पता नही क्या बात है बस होती जा रही बरसात है । ईस अनजानी सी जगह पर जानी पहचानी खुशबु कैसी , शायद चंपा चमेली या मोंगरा की महक है , या फिर का नशा जो मुझे धिरे धिरे दीवाना बनाता जा रहा है । उसने मुझसे ओवर कोट माँगा ,मैं बोला क्यों तंग करती हो , (मेरा मतलब ख्यालों मे आकर तंग करन...

इन्तज़ार

मेरा दिल और मेरी जान तुझ पर मिटने को बेताब है , बढने लगी बेचैनी मेरी बढने लगी आँखो की प्यास है , याद तुझको करूँ और तेरे बिन क्या करूँ , थोड़ा मैं शर्माऊँ ,किसको बताऊँ , हो रहा क्या मेरे साथ है । मेरे होठों की शबनम कह रही,कह रही मेरे केशुओं की शाम है , नज़रे उठते नहीं इस कदर हो गई बदनाम है , चर्चा होने लगी अपने बारे में कुछ होटों से कुछ ईशारों में , रहे मुझसे खफ़ा,क्या यही तेरी वफ़ा , कैसे कहूँ सबसे बता कि मेरे हाथों में तेरा हाथ है । डरती हूँ खूद से और थोड़ी ज़माने से , रिश्ते बनते नही सिर्फ़ नज़रों के मिल जाने से , मैं तेरे काबिल कहाँ फिर भी छोड़ के जहाँ , आ गए हो जो दिल के आशियाने में , एक करो तुम वादा इसमें रहोगे सदा , इसके सिवा क्या मेरे पास है । लाख रोकूँ तो क्या,कभी अक्स रुकते है समझाने से , बन के दुल्हन अरमान मेरी , खड़ी है दिल के दरवाज़े पे किसी बहाने से , तेरा भी क्या कसूर होगे तुम भी मज़बूर , पर आओगे ज़रूर,मुझे पुरा विश्वास है । Nishikant Tiwari

जिन्दगी की बेवफाई

कभी हमने ना सोचा था कि ऐसा भी होगा, कि जिन्दगी के ऐसे मोड़ पर आ खड़े होंगे, जहाँ हर कोई होगा ,पर कोई अपना ना होगा, किसको खबर थी की आग कैसे लग गई , जो लग सो लग गई, तो क्या फिर जलते चिता से उठता धुँआ का गुब्बारा ना होगा । बहारे आएंगी और कोयल भी गाएगी, बैठेगी कहाँ जब डाल ना होगा, फूल खिलेंगे चमन में महकेंगे, पर कोई भँवरा दिल लगाने वाला ना होगा । सागर से मोती चुराने गए थे, पर जब सागर हीं आँखे चुराने लगे तब, क्या करेंगे ले कर मोती , मोती तो होगा उसमे चाँद ना होगा, बस पत्थर हीं पत्थर होंगे उसमें भगवान ना होगा । सबको अपना समझते थे , सबसे मज़ाक किया करते थे, क्या मालूम था कि जिन्दगी ऐसा मज़ाक करेगी, कि हर कोई मज़ाक उड़ाने वाला तो होगा, पर कोई मज़ाक करने वाला ना होगा । इन्तहान देते देते थक गए हम, बातों और भावनाओं में बह गए हम, वो इन्तहान आखरी इन्तहान होगा, जब होंगें खड़े हम नदी के तट पे , और कटता किनारा होगा । चलो मान लिया हम इस दुनिया के लिये बने हीं ना थे, आखरी साँसो तक अकेले गुज़ारा होगा, दूर दूर तक ऊड़ते रहेंगे तनहाई की रेत, बस आँसुओ का हीं सहारा होगा । थे गँवार ,रह गए एक हीं पल्लू से बँध के, साथ छोड़...

तेरे हाथो मिट जाने

पल भर तो पास बैठो मेरे, तुम्हें जी भर के देख लेने दो, तेरी आँखो का नूर हीं मेरे जिने का सहारा है, तेरी बेवफ़ाई से कोई शिकवा भी नही, उसी को अपना समझे जो ना कभी हमारा है, चाहे वफ़ा मिले या सज़ा इस दीवाने को, हम तो आए है तेरे हाथो मिट जाने को । पछ्ताए हुए खड़े है तेरी पनाहों में, ठुकड़ा दो मुझे या बसा लो निगाहों में, नमी सी जो दिखती है इन साँसों में, क्या करूँ आती नही बेशर्म सी ईन आँखो में, सज़ा दो इन्हें अपनी चौखट पर हीं टीक जाने दो, हम तो आए है तेरे हाथो मिट जाने को । तुम चाहो ना चाहो, तुम्हारी मर्ज़ी है, फिर भी तुम्हे चाहेंगे,मेरी खुदगर्ज़ी है, मेरा दिल तोड़ दो या बाहों में भर के प्यार करो, तुम्हे हक है मुझसे नफ़रत या प्यार करो, फूल खिलते है ,खिल के मुरझाने को, हम तो आए है तेरे हाथो मिट जाने को । छाया है जो नशा उसे और भी बढ जाने दो, चाहे तो दे दो बाहों का सहारा या मदहोशियों में गिर जाने दो, दहलीज दिल की लाँघ आए , सुनाने मोहब्बत के फ़साने को, बना के राज़ छुपा लो इसे सीने में, या खुल के बता दो ज़माने को, हम तो आए है तेरे हाथो मिट जाने को । क्या सही , क्या गलत मै नही जानता, जानता हूँ तो बस ईतना कि तुम...

परिवर्तन

निकल आया है एक और दिन ढलने के लिए, उडते रेतों के बीच जलने के लिए, आया था फ़िर वही कहानी कहने के लिए, पर जा रहा है गुमसुम सिसकती रातों का हाथ थामने के लिए, धहकते सितारों के बीच सोने के लिए, दूर तनहाई में रोने के लिए । कभी बहती बहार सहलाया करती थी, कभी खिलता था प्यार मुस्काने के लिए, ढक रखा था फूलों ने इस कदर आशियाँ को, कि जगह ना छोडी काँटो के लिए, पर आज जो सेज सजी है काँटो की, तो क्यों रुठें फूलों के लिए, क्यों कर ले आँखें नम अपनी, चुभते ख्यालों में खोने के लिए । बरसती हैं आँखे तो बरसने दो, जाने कितने बरस तरस गए बरसने के लिए, नीचे कभी ना देखते थे, आँखो को करके नीचे, गिर गए नीचे, झुक गयीं शर्म से आँखे नीचे देखने के लिए, बुझता है दीपक तो बुझने भी दो, ऊजड़ा है चमन फिर से महकने के लिए । Nishikant Tiwari

टकला

रमेश भाई को जब तक हुए बाल बच्चे, उन्के सर के एक भी बाल नही बचे, कुछ बच्चे उन्हे टकला टकला कह कर चिढाते, तो कुछ सर पे मार के भाग जाते । सारे मुहल्ले मे किस्सा मश्हुर था, कि इन्के बाल यो ही नही उङॆ बल्की ऊङाए गये है, बेचारे पत्नी द्वारा बहुत सताए गये है, घर मे बीबी की डाट पडती, दफ़्तर मे बॉस देता धमकी, तुमसे मेरी बर्षॊ पुरानी यारी है, वर्ना काम मांगाने वालो मे आधी लड़किय़ाँ कुवाँरी है । जब दाढी बनवाने सैलून जाते ,नाई भी ईन पर चिल्लाते, ससुरजी भी कहते कि अगर तू शादी के पहले टकला हो जाता, तो हमारे दहेज़ का खर्चा बच जाता, जब वो बच्चो को स्कुल छोड़ने जाते , बच्चे ईन्हे अपना नौकर बताते, भाई आज के फैशन और खुबसुरती के ज़माने मे गंजा होना श्राप है, अब बच्चे कैसे बताँए कि टकला उन्का बाप है । एक सामाजिक संस्था तो यँहा तक कहती है, हर टकले को शादी करने से रोका जाए , कहीं ऐसा ना हो यह बिमारी पीढी दर पीढी फैलते फैलते, सारा संसार टकला हो जाये । ऊधर एक फिलोसोफर का कहना है , जिन्की सोंच गिरी हुई होती है उन्के बाल जल्दी गिर जाते है, ऐसे पतीतो को गोली मार देनी चाहिये , मुझे आशचर्य है वे खुद शर्म से क्यों नही मर ...

तुम‌ जॊ मुझॆ मिल गई हॊ

मॆरॆ सामनॆ बैठी हॊ तुम नही हॊ रहा है यकिन‌ बाँहॊ मॆ भर लॊ मुझॆ पागल ना हॊ जाऊ कही क‌ल जॊ निगाहॆ मिलानॆ सॆ भी ड‌र‌ती थी ,आज बातॆ कर‌ र‌ही कित‌नी इत्मिनान‌ सॆ अब‌ तुम‌ जॊ मुझॆ मिल गई हॊ मुझॆ और क्या चहियॆ इस जहान सॆ ! तुम भी मुझ प‌र‌ म‌र‌तॆ थॆ मुझ‌कॊ न‌ही था पता मगर दॆर सॆ इसमॆ है मॆरी खता तुम चाहॆ जॊ भी सजा दॊ हंस कॆ गुजर जाउगी मै हर इन्तिहान सॆ अब‌ तुम‌ जॊ मुझॆ मिल गऎ हॊ मुझॆ और क्या चहियॆ इस जहान सॆ ! बहार‌ आयॆ या जायॆ मुझॆ ग‌म‌ न‌ही मॆरी जान‌ तुम‌ खुद‌ किसी बहार‌ सॆ क‌म‌ न‌ही तुम‌ ज‌ब‌ भी ह‌स्ती हॊ फुल‌ ब‌र‌स‌नॆ ल‌ग‌तॆ है आस‌मान‌ सॆ अब‌ तुम‌ जॊ मुझॆ मिल गई हॊ मुझॆ और क्या चहियॆ इस जहान सॆ ! अप्सरा मझॆ क‌ह‌तॆ हॊ , क‌ह‌तॆ हॊ मुझ्कॊ परी ऎक‌बार फिर‌ सॊच‌ लॊ क‌ही यॆ दॊखा तॊ न‌ही तारीफ‌ ना मॆरी इतनी किजियॆ कि मै खुद् ज‌ल‌नॆ ल‌गू अप‌नी जान‌ सॆ अब‌ तुम‌ जॊ मुझॆ मिल ग‌ऎ हॊ मुझॆ और क्या चहियॆ इस जहान सॆ ! अग‌र‌ दॊखा हॊ इत‌ना ह‌सिन‌ फीर‌ मुझॆ जमानॆ की प‌र‌वाह‌ न‌ही अरॆ प्यार‌ मॆ हॊता य‌ही है आग‌ ल‌ग‌ती य‌हा पॆ तॊ धुआ उठ‌ता व‌हा सॆ अब‌ तुम‌ जॊ मुझॆ मिल गई हॊ मुझॆ और क्या चहियॆ इस जहान सॆ ! Nishi...

ghadi dekh ker...

jab mai paida hua log kush hone se pahle bhagee samay note ghadi dekh ker , roz pitaji uthte ghadi dekh ker , chai pite ghadi dekh ker, nahane jaate to ghadi dekh ker , office bhi jaate to ghadi dekh ker , roz mummi bolti ter pitaji abhi tak nahi ayee ghadi dekh ker , pitaji gher aate gadhi dekh ker , samachar sunte ghadi dekh ker , khana khate ghadi dekh ker , aur sone bhi jaate to ghadi dekh ker !!!!!!!!! jab mai toda bada hua roz school jaane laga ghadi dekh ker , lunch aur chhutti bhi hoti to ghadi dekh ker , ek din gher der se pahucha to maa boli itni der kaha laga di ghadi dekh ker , mai bola jab mere pass ghadi hi nahi hai to gher kaise aawoon ghadi dekh ker , mil gayi mujhe ek nai ghadi , sabhi kush hote the dekh ker mujhko ghadi-ghadi , per kush hota bhi tha to ghadi dekh ker !!!!!!!!! bada ho ker roz interview dene jaya keta tha ghadi dekh ker , aur naukri mili bhi to mujhe aati jaati train ki suchi banani thi ghadi dekh ker , meri shadi ki baat chalayi gayi subh ghadi dek...

tum jo mil gayi ho

mere samne baithi ho tum nahi ho raha hai yakin , bahon me bher lo mujhe pagal na ho jaaun kahi , kal jo nigahe milane se bhi derti thi , aaj bateien ker rahi hai kitni itminaan se , ab tum jo mujhe mil gayi ho mujhe aur kya chaahiye is jahan se ! tum bhi mujh per marte the mujhko nahi tha pata , samjhi magar der se , isme hai meri khata , tum chahe jo bhi saja do , hus ker gujar jaaongi mai her intihaan se , ab tum jo mujhe mil gaye ho mujhe aur kya is jahan se ! bahar aye ya jaye mujhe gam nahi , meri jaan tum khud kisi bahar se kam nahi , tum jab bhi hasti ho aisa lagata hai , jaise phool barasne lage ho asmaan se , ab tum jo mujhe mil gayi ho mujhe aur kya is jahan se ! apsra mujhe kahte ho , kahte ho mujhko pari , ek baar fir soch lo kahi ye dokha to nahi , taarif na meri itni kijiye ki , mai khud janle lagoo apni jaan se , ab tum jo mujhe mil gaye ho mujhe aur chahiye is jahan se ! agar dokha ho itna hasin , fir mujhe zamane ki parwah nahi , are pyaar me to hota yahi hai , aag l...