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Sunday, March 14, 2021

 

हम हँसते हुए अच्छे नहीं लगते | Dard bhari kavita by girlfriend

https://youtu.be/Y5wG8ekPJt0

गुण से, सौभाग्य से
रूप से ,अनुराग से
कभी कोयल सा गाके
कभी तितलियों सा पंख सजा के
हर वक्त बस तुझको रिझाया
ये मानकर कि जिंदगी
न तुम्हारे मिलने से पहले कभी शुरू हुई थी
और ना तुम्हारे जाने के बाद कभी होगी |

वो तेरी मिसरी सी भरी मिन्नते
जिसपे मैं बिना सोचे
सर्वष्य न्योछावर कर देती थी
समझ नहीं आता कि
मेरा भोलापन था या पागलपन
हाँ मुझे ये भी नहीं पता
कि तुमने ज्यादा पाया
कि मैंने ज्यादा खोया
पर मैं खुश थी ,बहुत खुश |

कभी बातें बनाते , कभी मुँह बिचकाते
कभी गले लगते , कभी सर टकराते
मेरे दिल से असीम प्यार फुट रहा था
और उसके इश्के दरिया में
मैं हमेशा डूबी रहती थी
कि एक दिन वो आया और बोला
हमारी बातें , मुलाकातें
बस दोस्ती थी , प्यार नहीं
तुम अच्छी हो मुझे इससे इनकार नहीं
पर मेरा प्यार कोई और है |

ये बोल कर वो चला गया
बिना मेरी कोई बात सुने
बिना सोचे कि मेरा क्या होगा
मै कैसे जिंऊगी , मैं कैसे रहूँगी
हर बार , बार बार
मेरे हीं साथ ऐसा क्यों होता है
ये मेरी किस्मत है या किसी की साजिश कौन जाने
वो कौन है जिसे हम हँसते हुए अच्छे नहीं लगते !!

द्वारा निशिकांत तिवारी

 खुद मान जाती तो अच्छा  | Hindi Romantic kavita for girlfriend


https://www.youtube.com/watch?v=Bd8BuEuYcTw&t=2s


बातों से जिसकी टीस सी होती है
उसी से रोज़ बातें करने को जी करता है
उसकी बेतुकी बातों में
जिंदगी के मायने ढूढंता फिरता हूँ
वो हर बार मुझसे मिलते है बेवजह
मैं हर मुलाकात की वजह ढूंढता फिरता हूँ |

उसकी आखें ज्यादा सुन्दर है या होठ
अभी तक तय नहीं कर पाया मैं
उसके हँसते गालों के गढ्ढों में
प्यार का भंवर ढूंढता फिरता हूँ |

हाँ , माना थोड़ी नखरीली है
पर क्या करूँ , मुझे मनाना भी तो नहीं आता
यूँ दिल तड़पाने से अच्छा
वो खुद मान जाती तो अच्छा !!

Hindi romantic poem - by Nishikant Tiwari

 Bewafai Hindi Poem - ना कोई प्यार , न कोई छलावा

प्यार के हर रंग देखे मैंने
पहले आँखों के टकराने से लेकर
देह के टकराने तक
और फिर विचारों के टकराने से लेकर
पसंद के टकराने तक |
उठना बैठना, खाना पीना, जागना सोना
हर बात पे टोकना , प्यार हो भी सकता है
पर वो प्यार जो उसे कभी था हीं नहीं
सबको साबित करना चाहती है
और इसी चक्कर में
मज़ाक बन गईं है, प्यार की मीठी - मीठी बातें
और तमाशा बन गया है हमारा रिश्ता
जिसमें वो मदारी और मैं बन्दर बन नाच रहा !
 
 

उसने मुझे समझा, पढ़ा
पर उपन्यास के पहले और आखरी पन्ने की तरह
जो हमेशा खाली रहता है
मैंने उसे चाहा पर उस मुट्ठी में बंद रेत की तरह
जो धीरे धीरे कब मेरे हाथ से निकल गया
पता हीं नहीं चला,मैं इसी गुमान में रहा कि
वो मुझे खुद से भी ज्यादा प्रेम करती है
प्रेम एक से नहीं सभी से करना चाहिए
ऐसा उसने कहा था मुझे एक बार
और उसके इस विचार से गर्वान्वित भी हुआ था
कि कितनी सह्रदयी लड़की है
पर अब वो प्रणय जिसे मैं
परिणय की तरफ ले जाना चाहता था
लोगों का परिहास, मेरा पागलपन
और उसका पाखंड बन के रह गया है

 

नियत और नियति में फर्क होता है
पर इस समय दोनों मेरे साथ नहीं थे
साथ थे तो बस वो झींगुर
जो रात रात भर जागकर कोलाहल से
मेरा अकेलापन दूर कर रहे थे
पहले वो ऑफिस में कुछ काम भी करती थी
पर आज कल बस मुझे बदनाम करती है
ना ऑफिस जाने को कदम उठते है
न घर जाने का दिल करता है
मेरी तो सारी जिंदगी सड़क पे आ गई
अब तो सड़क के कंकड़ भी मुझपे तरस खाने लगे है
उनकी टीस अब उतनी नहीं चुभती मुझे

 

जिस दिल को प्यार के तीर ने घायल किया हो
उसे बदनामियों के छोटे छोटे कांटे क्या घाव देंगे
मैंने बाल बिखेरे , शर्ट बाहर किया और नंगे पैर ऑफिस चला
जब तमाशा बनाना है तो सरे आम बने
हां मैं पागल हूँ सबको पता तो चले
उसकी ख़ुशी देख , खुद ख़ुशी करने मन करता था
मैं माचिस जलाई और दिल को आग दिया
फिर उसी जले दिल के राख से
मुँह में कालिख पोती
और चल पड़ा, ऐसी डगर की ओर
जहाँ नहीं था कोई मेरे अलावा
ना कोई प्यार , न कोई छलावा !!

Heart touching senti poem by - Nishikant Tiwari

Sunday, August 5, 2018

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Friday, May 18, 2018


तेरे प्यार में तब से आज तक 

किशमिश सी जलती मस्तियाँ
लपट- झपट उठता मीठा मीठा धुआँ
ओस से भीगे घास पे धधकते कोयले
फिर भी ठण्ड से काँपती सिकुड़ती वादियाँ !

सिलवटों के सिलसिले में सिमटा हुआ मैं
वो सर्दियों में गर्मियों के दिन गिनता हुआ मैं
अन्घुआया हुआ निहारता तेरी अंगड़ाई
पानी के बुलबुलों सा बनता मिटता हुआ मैं  !

तेरे सम्मोहन से फिर न कभी ना मौसम बदला
कभी मल्हार, कभी बिरहा गाता फिरता पगला
एक धुरि है , नज़रे हैं या छुरी है
घायल दिल पे करती रहतीं है हमला !

आज तक बन्दा बंदी बन नाम तेरा ही रटता
कारे नीरस काग से परिणत हुआ चहकता तोता
निंद्राहीन रातों को उठ उठ कर तेरा रूप निहारते
लड़की है या पारी , आज भी यकीं नहीं होता !!



Hindi romantic love poem - Nishikant Tiwari

Sunday, November 13, 2016

रफ़्तार पकड़ रही है जिंदगी

रफ़्तार पकड़ रही है जिंदगी 
उसकी आँखों में विनय था या अभिनय क्या पता 
मासूम मुखड़ा देख कालेजा फटता, हृदय टूटता रहा 
सारी ख़ुशी, धन-वैभव, देह-अंग जैसे दूर हुआ 
याद नहीं पहले कब इतना मजबूर हुआ 
खुद को संभाल लू, इस पल कोई कोई रोक ले  
रफ़्तार पकड़ रही है जिंदगी !!


याद नहीं सोया था खोया था 
हाँ उस रात मगर मैं बहुत रोया था 
मिन्नतें मजबूरियों में जंग थी छिड़ी हुई 
एक झलक बस दिखला जाते आस पास यहीं कहीं 
दूर जाके मिलने का तुमसे वक्त कहाँ 
रफ़्तार पकड़ रही है जिंदगी !!

खुद को याद करूँ या तुमको भूलूँ
रोज़ ही अपना मन टटोलूं 
दूर जाके तू जितना पास है 
पास होके भी उतना पास नहीं 
और कुछ लिख सकूं, इतना समय मेरे पास नहीं 
रफ़्तार पकड़ रही है जिंदगी !!

Nishikant Tiwari

Hindi Poem

Friday, February 12, 2016

अरमान जगाएं


इतना सोच समझ के
कब तक चलेंगे खुद से बच के
क्यों न फिर बेपरवाह हो जाएँ
एक दूजे में फिर से खो जाएंं ।

थोड़ा इठला के शर्मा के
थोड़ा मुस्कुरा गुनगुना के
शिकायतों को तमाशा दिखाएँ
मीठी यांदो को दावत पे बुलाएँ ।

बिखरी बांतो को समेट के
बांधो गठरी जरा कास के
 सफर बहुत है लम्बा
कहीं गाँठ खुल न जाए ।

देखता है कौन छुप छुप के
आज जाने ना पाये बच के
उसे छेड़े गुदगुदाए , सताए
उस अजनबी से नयन लड़ाए ।

ना समझ की बांते, ना आज कोई टोके
शोर मचाएं तोड़ टांग सुरों के
जलती रहीं मशाले, बुझ गए अरमान
आज मशालों को बुझा के फिर से अरमान जगाएं ।

Nishikant Tiwari

Hindi Love poem




Aab mai kaya kahu ?  हो जज़्बात जितने हैं दिल में, मेरे ही जैसे हैं वो बेज़ुबान जो तुमसे मैं कहना न पाई, कहती हैं वो मेरी ख़ामोशियाँ सुन स...