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Saturday, October 8, 2011

प्यार का भ्रम (Hindi Love Stories)

इश्क में धोखा मिले या प्यार ये तो अपने अपने किस्मत की बात है | इस कम्बख्त इश्क ने अनगिनत लोगो को बर्बाद किया है | रोज़ बर्बादी के नए नए किस्से सुनते है फिर भी प्यार करना नहीं छोड़ते | आखिर क्यों ? कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे प्यार से प्यारी दुनिया में कोई चीज नहीं तो कभी यह सब एक झूठ ,छलावा मालूम पड़ता है | यह प्यार हीं है जो जानवर को इंसान बनता है और ये ही वक्त आने पर उसे हैवान बना देता है | तो कुल मिलकर नुक्सान हीं हुआ ना ,जानवर से हैवान बन गए | प्रकाश पार्क के बेंच पर बैठा यही सब सोच रहा था |अपने प्यार के सफ़र के हर एक पड़ाव को याद करके मंथन में लगा हुआ था |सौम्या जिसे वो आंठवी कक्षा से प्यार करता था ऐसा करेगी उसने सपने में भी नहीं सोचा था |उससे जुड़ी छोटी से छोटी याद आँखों से बड़ी बड़ी बूंदों को नीचे घास पर धकेले जा रही थी |

उसके प्यार की शुरुआत तब हुई जब वो सत्य निकेतन के आठवी कक्षा में पड़ता था |हॉस्टल के कमरे में इसके साथ विपुल रहता था | वो पांचवी कक्षा में पड़ता था | विपुल के माता पिता अक्सर उसे मिलने आया करते थे |वे बड़े अछे लोग थे ,हर बार प्रकाश के लिए कुछ ना कुछ ज़रूर लाते |एक रविवार की बात है ,प्रकाश बदन सिकोड़े, चादर लपेटे सोया हुआ था | इतनी देर तक कोई सोता है भला | एक मीठी सी आवाज़ आई | प्रकाश सपना देख रहा था ,उसे लगा कोई लड़की उसे सपने में जगा रही है | एक दो बार पुकारने के बाद भी कोई हलचल न हुई देख कर लड़की ने चादर जोर से खिंचा | प्रकाश हड़बड़ा कर उठा | सामने एक सुन्दर सी लड़की खड़ी थी |उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब भी वो सपना देख रहा है या सही में कोई उसके सामने खड़ा है | घूरता रहा | आखिरकार लड़की ने चुप्पी तोड़ी "मुझे माफ़ कर दीजिये "| मुझे लगा की विपुल है | मैं उसकी बड़ी बहन हूँ |
प्रकाश अभी भी हतप्रभ था |समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे फिर भी खुद को संभालता हुआ बोला "कोई बात नहीं ,बल्कि अच्छा हुआ आपने जगा दिया |मैं तो विल्कुल आलसी हो गया हूँ | विपुल खेलने गया होगा |बैठिये मैं उसे बुला कर लाता हूँ | यह कहते हुए प्रकाश विपुल को ढूढ़ने निकल गया | कुछ देर में लौट कर बोला ,वो तो मिल नहीं रहा है | आप यही इंतज़ार कीजिये थोड़ी देर में आ जाएगा |कमरे में सन्नाटा छा गया |एक एक पल घंटो के समान मालूम पड़ने लगे |दोनों सर निचे किये हुए बैठे हुए थे | बीच बीच में एक दुसरे को देखने की कोशिश करते और कभी नज़रे टकराते हीं शर्म से पलके नीची कर लेते |

उस रात जब प्रकाश सोने गया तो आँखों में नींद नहीं |उसी ध्यान लगा हुआ था |अफ़सोस करता ,काश कुछ बाँतें कर लेता | जाने कब फिर किसी लड़की से बात करने का मौका मिले |कम से कम नाम तो पूछ हीं लेता | वो बेसब्री से अगले रविवार का इंतज़ार करने लगा कि शायद वो फिर आये | ऐसा हुआ भी पर उस दिन विपुल कमरे में मौजूद था सो बात के नाम केवल औपचारिकता हीं हुई | प्यार की चिंगारी किसी दीया-बाती की मोहताज़ नहीं ,नाहीं उसे शोला बनने के लिए घी तेल की आवश्यकता पड़ती है |वो तो कभी भी ,कही भी भड़क सकती है | रूप नारी का सबसे बड़ा श्रृंगार होता है और सोम्या में इसकी कोई कमी नहीं थी | उसके एक हीं मुस्कान से ऐसी चिंगारी भड़की कि प्रकाश दिन रात उसकी जलन में तड़पने लगा | आग के करतब दिखाने वाले भी अक्सर उसी आग से जल जाते हैं | सोम्या भी कहाँ बचने वाली थी | दो चार मुलाकातों में हीं ये शोला सोम्या को भी जलाने लगा | पहले तो वो पगली सकुचाई फिर उसे एहसास हुआ कि अगर कोई निहारने वाला हीं ना हो तो ये रूप ,ये श्रृंगार किस काम का | जिस तरह कोई भवरा किसी सुंदर कली के चारो ओर चक्कर काटता रहता है उसी प्रकार प्रकाश की भी दुनिया सोम्या तक सिमित हो गई | उसकी हर बात सोम्य से शुरू होती और सोम्या पर हीं ख़त्म होती | वे छुप छुप के मिलते | खूब सारीं बातें होतीं | साथ जीने मरने की कसमें खायी जातीं |फिल्मों के डायलेक्ट चुरा-चुरा के सुनाये जाते | उनका प्यार ,प्यार कम बचपना ज्यादा मालूम पड़ता था | लेकिन समय के साथ उनमें परिपक्वता आ गई | तीन साल बीत गए | सब कुछ अच्छा चल रहा था कि अचानक विपुल ने दोनों को साथ देख लिया |एक झटके में हीं सब समझ गया | घरवालों को सारी खबर दे दी |

सौम्या के पिताजी आग बबूला हो गए | उसका घर से निकलना बंद कर दिया |उन्होंने सौम्या को कसम खिलाई कि वह प्रकाश से अब कभी नहीं मिलेगी |जब प्यार सर चढ़ के बोलता है तो कुछ नहीं सूझता | प्यार के नाम पर किया गया हर काम सही लगता है |उस काम को इश्वर के पूजा से तुलना की जाती है |सौम्या की भक्ति कम नहीं हुई पर उसका प्रकाश से मिलना पहले से ज़रूर कम हो गया | जहाँ वो पहले सप्ताह में २-३ मिल लेती थी ,वहीँ २-३ सप्ताह में एक-आध बार मिलने लगी |बारहवीं पास करते हीं प्रकाश का चयन दिल्ली के एक मशहूर मेडिकल कॉलेज में हो गया |उसका मन तो बिलकुल नहीं था कि वर्धमान छोड़ कर दिल्ली जाए पर क्या करता कैरिरार का सवाल था ,सो जाना पड़ा | उधर सौम्या का दाखिला वर्धमान के हीं एक कॉमर्स कॉलेज में हो गया |



दोनों को दिन अब सूना-सूना मालूम पड़ता | रात को झींगुर विरह गीत जाते सुनाई पड़ते |फोन पर चाहे जितनी बाँतें हो जाए पर वो नज़रों का टकराना ,शर्म से कपोलो का लाल हो जाना ,वो अदाएं ,वो इठलाना सब जाता रहा | प्रकाश अकसर ये गीत "हो कर मजबूर उसने बुलाया होगा " सुनता रहता | वो जानता था कि सौम्या तो शहर से बाहर जा नहीं सकती सो वो ही दो तीन महीने पर उससे मिलने वर्धमान चला जाता | वक्त इंसान को हर हाल में रहना सिखा हीं देता है | समय के साथ इन्होने भी एक तरह से समझौता कर लिया | मिलने की तड़प कम हो गई सो प्रकाश का वर्धमान जाना भी कम हो गया | हाँ पर फोन पे बाँतें होतीं रहती | वह हमेशा सौम्या से आग्रह करता रहता "सौम्या कभो तो दिल्ली आओ |"करीब दो साल बाद उसकी मुराद पूरी हुई | सौम्या ने ट्रेनिंग की झूठी कहानी बना कर अपने पिता को मना लिया | उसने कहा कि दिल्ली में अपने सखी के साथ गिर्ल्स हॉस्टल में ठहरेगी |

ट्रेन से उतरते हीं वो प्रकाश के बांहों में कुछ इस तरह समा गई जैसे कोई चंचल नदी रेगिस्तान में समा जाती है | वो उसे सीधे अपने कमरे पर ले आया |पिताजी को यकीन दिलाने के लिए सौम्या ने प्रकाश के हीं कॉलेज के किसी लड़की का नंबर दे दिया और कह दिया को वो उसके साथ रह रही है |फिर से वही पुराने सुख के दिन लौट आये थे | प्रकाश ने कॉलेज जाना बंद कर दिया | दिन भर उससे बाँतें करना ,उसके जुल्फों से खेलना ,उसे घुमाने ले जाना |उसका अब बस यही काम रह गया था | उसने सौम्या को दिल्ली की हर घुमने वाली जगह दिखाई ,दोस्तों से उधार लेकर खूब सारी खरीददारी कराई | अब दिन ज्यादा उज्जवल और रातें और भी गहरी नज़र आती | एक रोज़ दिन सही में बहुत उज्जवल था | बहुत तेज धूप के बावजूद दोनों लाल किला घुमने गए | शाम को कमरे पर लौटते लौटते गर्मी से हालत खराब हो गई सो आज वो जल्दी सो गयी | प्रकाश अभी तक जाग रहा था | यह रात बाकी रातों से अलग थी | सौम्या के केश बिखरे पड़े थे | कपड़ो में सिलवटे पड़ गयीं थीं | उसके अलसाए यौवन का उभार प्रकाश पर रह रह के प्रहार कर रहा था | वो लाख नज़रें हठाने की कोशिश करता पर कुछ हीं पलों में आँखे वही टिक जाती |पहली बार उसने सौम्या को ऐसे देखा था | पहली बार उसने इतने करीब से महसूस किया कि अब वह बच्ची नहीं रही | बंद कली सुंदर फूलों का आकार ले चुकी थी | वो काम-ज्वर से तपने लगा |


वह बार बार उसके तरफ बढ़ता और पास जाते हीं वापस आ जाता | इस अंतर्द्वंद से निकल पाना उसके लिए इतना आसान नहीं | कभी उसे लगता कि ये सब गलत है,पाप है तो कभी सही ,बल्कि उसका अधिकार है और ये अधिकार सौम्या ने हीं उसे दिया है | न रात ख़त्म हो रही थी न उसे नींद हीं आ रही थी | बत्ती बुझा कर अगर सोने की कोशिश भी करता तो कुछ हीं देर में फिर उठकर निहारने लगता | किसी तरह रात कटी | अगले दिन प्रकाश सौम्या से नज़रें नहीं मिला पा रहा था | अचानक प्रकाश के व्यवहार में आये बदलाव को सौम्या समझ नहीं पा रही थी | वह जब भी उससे इस बारे में पूछती ,वो टाल जाता | सौम्या भी कम नहीं थी ,उसने खाना-पीना छोड़ दिया | आखिरकार मजबूर होकर प्रकाश ने रात की सारी घटना कह सुनाई |

सौम्या - छिः कैसी गन्दी बातें करते हो |तुम्हे तनिक भी शर्म नहीं आती क्या ? प्रकाश - "इसमें गलत क्या है ? हम इतने दिनों से एक दुसरे को चाहते है ,साथ जीने मरने की कसमें खाते है तो फिर ये संकोच क्यों ?" सौम्या - "मान मर्यादा भी कोई चीज़ होती है | यह सब हमारें संस्कृति के खिलाफ है |न बाबा न ,शादी से पहले यह सब कुछ नहीं |" प्रकाश - "तो ठीक है शादी कर लेते है |" सौम्या - "शादी कोई मजाक है जो एक क्षण में लिए फैसले से कर लिया जाए " |


इस बात को लेकर रोज़ दोनों में जम के बहस होती | प्रकाश कई बार बहुत हीं ज्यादा उग्र हो जाता | प्रकाश जिसे सौम्या के प्यार ने इंसान बनाया था आज वही प्यार उसे हैवान बनने पर मजबूर कर रहा था | एक दिन प्रकाश इतना गुस्सा हो गया कि जैसे सौम्या को
मार हीं बैठेगा | सौम्या डर गई ,बोली अब मैं एक पल नहीं रुकुंगी यहाँ | मुझे तो अब तुमसे डर लगने लगा गई | तुम हैवान बन गए हो | प्रकाश - "यह तुम क्या कह रही हो !,मैंने सारी दुनिया से केवल तुम्हारी खातिर दुश्मनी मोल लिए बैठा हूँ और तुम्हे मुझसे डर लग रहा है ? प्रकाश ने बहुत मनाया, समझाया, सैकड़ो बार माफ़ी मांगी पर वो नहीं मानी ,रोते रोते अपना सामान बंधने लगी | प्रकाश- "पर तुम जाओगी कहाँ ? तुम तो कह के आई थी ट्रेनिंग ३ सप्ताह की है | अभी तो बस १५ दिन हीं हुए है |"दिल्ली में हीं मेरी एक दोस्त रहती है ,उसी के पास चली जाउंगी |" जब वो कमरे से सामन लेकर निकले लगी तो प्रकाश ने उसका हाथ पकड़ लिया | सौम्या उसे नाख़ून से चीरती हुई निकल गई | जाते हुए एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा | ये कहावत है कि इन्सान को कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए पर जिंदगी में कभी कभी ऐसे हालत बन जाते है जब उसे पीछे मुड़कर देखना पड़ता है | आज इसकी बेहद जरुरत थी पर सौम्या ने ऐसा नहीं किया | प्रकाश भक सा दरवाजे पर खड़ा उसे जाते हुए निहारता रह गया |


Hindi Love Stories - Pyaar ka Bhram by Nishikant Tiwari

मैं चाटवाला

मैं चाटवाला हर शाम यहीं, इसी चौराहे पर
अपनी ठेला गाडी लाकर लगा देता हूँ |
लोग आते है और मेरे बनाए स्वादिस्ट चाट का चटकारा लगाकर चले जाते
मैं भी औरो की तरह एक मामूली चाटवाला होता
अगर एक दिन वो ना आती
जाने वो कौन थी ,ना जाने क्या नाम था उसका
पहले दिन हीं बस देखते रह गए थे उसे
उसके चहरे पर उठता खट्टा मीठा भाव
जैसे एक लहर सी उठती थी
और मेरे दिल से जो कि अब तक पत्थर का था
टकरा कर मिटटी सा किये जाती थी |


चाहे इसे खुद कि तारीफ़ कहें या जो भी
मेरे हाथ का चाट खाने के बाद हर कोई दुबारा आता है ज़रूर
वो भी अक्सर आती और सिर्फ मेरे ठेले पर हीं आती
मैं जो दूसरों के जीवन में रस भरा करता था
कोई मेरी भी जिंदगी में रस भरने लगा था
बड़ा अफ़सोस हुआ था मुझे जब दसवीं पास करके भी
चाट बेचना शुरू करना पड़ा था मुझे
पर अब तो जिस नज़र से देखती
मुझे खुद पे गर्व होने लगा था
हाय वो खाते खाते कैसे लजा जाती थी
हाँ पर जाते जाते अपनी हंसी जरुर छोड़ जाती थी
क्या क्या सपने देखने लगा था मैं उसके बारे में
मैं खुद सोच के शर्मा जाता हूँ |

एक दिन उसे मिर्ची लगी ,बोली भैया पानी दीजिये
मिर्ची उसे क्या ,मिर्ची तो मुझे लगी और बहुत तेज़ लगी
ये दिल जो पत्थर से मिटटी का हो चला था
एक झटके में हीं टूट गया और टूट गया ये भ्रम
कि मैं भी कोई दिलवाला हूँ
भूल गया था , मैं तो एक मामूली चाटवाला हूँ
पर इस मिर्ची ने मुझे जीना सिखा दिया
अब मैं दिल टूटने का इंतज़ार नहीं करता
खुद हीं दिल तोड़ लेता हूँ
किसी सुंदरी के आते हीं डाल के ज्यादा मिर्ची
निगाहें फेर लेता हूँ |

शालिनी को प्रेम पत्र

क्या सभी लड़के एक जैसे होते है ? शायद नहीं | पहले मैं भी यही सोचता था क्योंकिं मैं खुद को दूसरो से अलग मानता था |अपनी तारीफ़ कौन नहीं करता |मेरे अंदर वो छिछोरापन नहीं जो किसी भी लड़की को देखते हीं उछंक्रिलता पर उतर जाए |मैं सभी लड़कियों की इज्ज़त करता हूँ और शायद हीं कभी अपनी मर्यादा का उलंघन करता हूँ |यही सोच के सुमित ने मेरी आपसे जान-पहचान कराई थी |वह इतनी दूर अमेरिका में है और आप दिल्ली में |आपका ख्याल नहीं रख सकता तभी तो उसने मेरी आपसे दोस्ती कराई ताकि आपको कोई परेशानी या समस्या होतो आपकी मदद कर सकूँ | उसे मुझ पर पूरा भरोसा था और मुझे अपने आप पर भी लेकिन आपसे इतना घुल मिल जाने के बाद मेरा अपने आप से भरोसा उठने लगा है | अब मैं क्या कहूँ ,आपसे यह सब कहते हुए बड़ा संकोच हो रहा है पर कहना ज़रूरी है | धीरे-धीरे आपका नशा दिलोदिमाग पर इस तरह से छा गया है कि लाख नहीं चाह कर भी मन आपके बारे में हीं सोचता रहता है | आपके साथ बिताये एक-एक पल को रात रात भर जाग केर याद करता रहता हूँ |जब भी मोबाइल की घंटी बजती है ,लगता है आप हीं का फ़ोन है | आप कहा करती थी ना कोई भी लड़का आपका दोस्त बन कर नहीं सकता उसे आपसे प्यार हो ही जाता है | हाँ आप सही थीं | आप जितनी हीं खुबसूरत है उतना हीं खुबसूरत है आपका स्वभाव | आपके व्यक्तित्व का आकर्षण हीं ऐसा है कि कोई खींचे बिना नहीं रह सकता | दीवाना बन हीं जाता है | मुझे अपनेआप पर भरोसा था गुरुर की हद तक पर अब तो मुझमें आप हीं आप हैं मैं ना जाने कहाँ खो गया | समझ में नहीं आता की इल्जाम किस पर लगाऊं, अपने आप पर या आपकी अदाओं पर |

आपको यह सब पढ़ के बहुत दुःख पहुंचा होगा और मुझे भी बहुत बुरा लग रहा है पर मैं क्या करूं ? मुझे गलत मत समझिये |मैं आपसे कुछ मांग नहीं रहा हूँ | बस इतनी गुजारिश है कि मुझसे मेल जोल बंद कर दीजिये | मैं नहीं चाहता कि ये प्यार का अंकुर एक वृक्ष बन जाए जिसे उखाड़ना मुस्किल हो |
पर कोई भी समस्या या चिंता हो तो मुझे ज़रूर याद कीजियेगा | मैं सदैव आपके साथ हूँ | मुझे पता है यह सब कहकर मैं क्या खो रहा हूँ पर चिंता मत कीजिये , खुद को संभल लूँगा | मैंने प्यार किया है और मेरी यही सजा है | वैसे भी इश्क के मारो का दर्द हीं दवा है | आप खुश रहिये |प्रकृति का नियम समझ के भूल जाइए | ये सब इतना आसन नहीं होगा पर आप भी क्या कर सकती है मोर को अपने पंखो की कीमत तो चुकानी हीं पड़ती है |

मैं यह सब आपसे मिल कर कहना चाहता था पर हिम्मत नहीं हुई |इंसान बड़ा स्वार्थी होता है, जानता हूँ कि आप किसी और की हैं फिर भी मेरे मन में ऐसा ख्याल आया | हो सके तो मुझे और मेरे नादान दिल को माफ़ कर दीजिये |

आपका दोस्त
एक पागल प्रेमी

Monday, October 3, 2011

चुभन

थकी हारी दीवारों के उपर एक गीली गीली छत है
हर शाम वही बैठ कर आँखे भिजाने की लत है
सैकडों बार अँधेरे में भी पढ़ चूका हूँ मै
जाने किस स्याही से वो लिख गई ख़त है

बिखरी है चंपा कोई रख दे जरा उठाकर
हाथ है मैले मेरे, बैठा हूँ चूल्हा जलाकर
राख पोत ली हमने उनकी शाख बचाने की खातिर
फिर भी हंस गई वो जाते जाते आइना दिखाकर |

Monday, September 19, 2011

Hindi Love Stories



  • तुम कब बोलोगे


  • मै इश्क को पहचानता नहीं
  • तुम कब बोलोगे (Hindi Love Stories)

    मैं हर रोज़ की तरह ऑफिस जाने के लिए तैयार होकर बरामदे में. खड़ी सड़क को निहार रही थी | मैं रोज़ ऐसा करती थी | इस भागम भाग भरी जिंदगी में यही वो कुछ पल होते थें जो मैं शांत भाव से गुजारती थी | बड़ा सुकून मिलता और जब मन पूरी तरह शांत हो जाता तो दिन भर का कार्यक्रम तय करती | आज जितनी ताजगी महसूस हो रही थी उतनी जाने कब से नहीं हुई थी | मैंने ऑफिस की गाड़ी के बजाय रिक्शा से ऑफिस जाने का फैसला किया | गुडगाँव में fortune 500 में से कम से कम २०० कम्पनियों के ऑफिस है फिर भी यहाँ रिक्शा चलना आम बात है | मुझे भी रिक्शा ढूढने में कोई परेशानी नहीं हुई | ऊँची ऊँची इमारतो के बीच से टूटे-फूटे रास्तो से गुजरते हुए ऐसा मालुम हो रहा था जैसे किसी ने धोती के उपर कोट पहन ली हो |जब तक रिक्शा गली से निकला नहीं था तब तक तो बड़ा अच्छा लगा पर मेन रोड पर आते हीं धूल ने सारे मेक उप का सत्यानाश कर दिया |अपने फैसले पर अफ़सोस हो रहा था पर क्या कर सकती थी | किसी तरह ऑफिस पहुंची | रोज़ की हीं तरह मैं शिखा को लेकर चौथे मंजिल पर गई जहाँ कैंटीन है | नास्ता करते हुए मैंने देखा कि एक लड़का मुझे घूर रहा है |जैसे हीं मैंने उसकी तरफ देखा वो सर नीचा करके नास्ता करने लगा | थोड़ी देर बाद वो फिर मुझे घूरने लगा | मैंने शिखा के कान में धीरे से कहा - देखो सामने वाली टेबल पर बैठा लड़का मुझे कब से घूरे जा रहा है |
    शिखा - "तुम उसे जानती हो क्या ?"
    अरे नहीं रे मैं उसे नहीं जानती | वो तो जो एक नई आईटी कंपनी उपने हीं बिल्डिंग के नीचले मंजिल पर खुली है उसमे काम करता है | देखती नहीं उसने गले में अपनी कम्पनी का पट्टा पहना हुआ है |
    शिखा - "हाँ मैं भी उसे कब से देखे जा रही हूँ कि वो हमारी तरफ देख रहा है | हो सकता है कि वो तुम्हे देख रहा हो पर मुझे लगा कि वो मुझे घूर रहा है क्योकि बीच - बीच जब मैंने उससे नैना चार करना चाहा तो उसने नजरें नीची नहीं कीं | मुझे लगा कि नज़रे नीची नहीं करके वो जताना चाहता है कि मैं उसे पसंद हूँ |"
    मैंने मन हीं मन कहा शिखा क्या समझती है अपने आप को | उससे मै कहीं ज्यादा सुंदर हो तो फिर कोई मुझे छोड़ के उसे क्यों देखेगा |

    लंच के समय वो नहीं दिखा | अगले दिन भी नहीं | शुक्रवार को नास्ता करते समय फिर देखा , हमें घूरते हुए | रात को जब बिस्तर पर लेटी तो उसी का ख्याल आया | मैंने भी ध्यान दिया कि जब शिखा उसे देखती है तो वो नज़रे नहीं झुकाता और मेरे देखते हीं सर झुका लेता है | शायद शिखा ठीक सोच रही हो कि वो लड़का उसे पसंद करता हो पर क्यों ? क्यों मेरी जैसी खुबसूरत लड़की को छोड़ कर कोई शिखा को ........ | यही सोचते सोचते जाने कब आँख लग गई |

    सोमवार को खूब बन ठन के ऑफिस पहुंची | किलर जींस और रेड टी सर्ट पहन कर | आज देखती हूँ वो किसे देखता है | आज वो नास्ता करने नहीं आया | बहुत देर तक कैंटीन में बैठी सोचती रही कि क्यों मैं अपने जीने का तरीका बदल रही हूँ ,वह भी एक ऐसे इन्सान के लिए जिसके बारे में कुछ नहीं जानती | यह भी नहीं कि वो मुझे पसंद करता भी है या नहीं | शिखा कोई बच्ची नहीं थी |वो खूब समझ रही थी कि आज मै जान बूझ कर ज्यादा सज सवर के आई हूँ और कुछ न कुछ बहाने बना के उसका इन्तजार कर रही हूँ | वो नहीं आया |

    अगले दिन मैं साधारण सा सलवार सूट पहन के ऑफिस पहुंची | आज फिर वो लंच में हमें घूरता हुआ दिख गया | मन हीं मन अफ़सोस हो रहा था कि काश आज कल जैसे कपडे पहने होते | उस दिन के बाद से मैं रोज़ न चाह कर भी सज सवर के ऑफिस आने लगी | इस आँख मिचौली में एक महिना निकल गया फिर भी यह सुनिश्चित नहीं हो पाया कि उसे कौन पसंद है | कई बार कोशिश की कि अकेले कैंटीन जाऊं पर शिखा की बच्ची साथ छोडती ही न थी जैसे कंपनी ने उसे इसीलिए रखा है कि मेरे पीछे पीछे घूमें |मेरे हर गतिविधि पर निगरानी रखे |


    सुमित से मेरे झगड़े बढ़ते जा रहे थे |उससे दोस्ती बनाय रखना मुस्किल जान पड़ रहा था | सुमित हैन्सम है ,स्मार्ट है और होशियार भी पर वो इतना घमंडी और स्वार्थी होगा यह नहीं मालूम था | मैं अपने ऑफिस में सबसे ज्यादा सुंदर हूँ और ऑफिस का सबसे स्मार्ट लड़का हीं मेरा ब्याय फ्रेंड हो यही सोचकर उसकी तरफ दोस्ती का हाथ बढाया था | हर समय अपनी मनमानी करता रहता | एक नम्बर का जिद्दी लड़का है वो | मुझे जैसे खेलने की चीज़ समझता हो | उसके बर्तावों से मेरे स्वाभिमान को बहुत ठेस पहुंची थी | मैं उससे दोस्ती तोडना चाहती थी पर समझ नहीं आ रहा था कैसे |

    एक दिन सुमित बोला - "चलो ३-४ दिन के लिए मनाली चले | जबरदस्त बर्फ़बारी हो रही है वहां | मैंने इनकार किया पर वो कहाँ मानने वाला था | उसे भी महसूस होने लगा था कि मै उससे दूर भागना चाहती हूँ इसलिए पहले से ज्यादा प्यार जताने लगा था | शायद मनाली भ्रमण इसी कड़ी का हिस्सा था | दो दिन के बाद दोपहर को सुमीत और मैं मनाली जाने के लिए ऑफिस से सामान लेकर नीचे उतरे | मैंने देखा कि वही लड़का जो कैंटीन में मुझे घूरता रहता है रिसेप्सन के सामने सोफे पर बैठा है | सुमित मेरा हाथ थामे हुए था | मैंने झट से अपना हाथ छुड़ाया और इशारे से उसे देखने लगी कि वो मुझे निहार रहा है या नहीं | वो हमेशा की तरह उसी अंदाज से मुझे देख रहा था तभी सुमित ने मुझे बांहों में भर लिया | उसे ये बिलकुल अच्छा नहीं लगा | मैं भी सुमित के इस दिखावे से तंग आ गई थी | मन में ऐसा विचार आ रहा था कि वो आय और मुझे सुमित के बांहों के कैद से मुक्त करा दे |

    बस में सुमित अपनी बकवास करता रहा |मै खिड़की से बाहर देखती रही और सोचती रही - सुमित मेरा ब्वाय फ्रेंड है यह वर्तमान है ,निश्चित है ,सच है | वो लड़का शायद मेरा दोस्त बन जाए यह भविष्य है ,अनिश्चित है | मैं क्यों निश्चित को छोड़ कर अनिश्चित के पीछे दौड़ना चाहती हूँ | वो सुमित सा हैन्सम भी नहीं पर इतना बुरा भी नहीं और रंग रूप हीं सब कुछ नहीं होता | मैंने देखा है उसके आँखों में सच्चाई है ,चहरे के भावों में गंभीरता है | वो सुमित सा बिलकुल नहीं | क्या होगा अगर उससे दोस्ती नहीं भी हो पाई तो | मै कोई कोमल बेल तो नहीं जिसे सीधे खड़े रहने के लिए किसी ना किसी सहारे की आवशयक्ता हो | बहुत देर तक अंतर्द्वंद चलता रहा |आखिरकार दिल ने फैसला किया | मैंने उस लड़के का नाम प्यार से जानू रख दिया !!!

    संकल्प में बड़ी शक्ति होती है | इसका असर भी जल्द दिखने लगा | एक दिन हम लंच कर रहे थे कि जानू ठीक मेरे सामने वाले टेबल पर बैठ गया | वो न तो कुछ खाने के लिए लाया न पिने के लिए | बस बैठा मुझे निहारता रहा | करीब दो-ढाई महीनों में पहली बार उसने मेरी आँखों में झाँका | मैं उसे देखती रही वो मुझे | मानो कह रहा हो "तुम कहाँ चली गई थी ,तुम्हे देखने के लिए मेरी आँखे तरस गई थी |" मुझे सुमित के साथ देख कर उसे बहुत दुःख हुआ था |उसकी आँखों में वो उदासी साफ झलक रही थी | उसके प्यार की आग मध्यम पड़ गई थी | आज मै फिर से उसके हृदय को शोलो से भर देना चाहती थी | खाना ख़त्म होते ही जूस लेकर बैठ गई और धीरे - धीरे थोडा थोड़ा करके पिने लगी |मेरे साथ के सब लोग चले गए |बस मैं और शिखा रह गए | जूस ख़त्म होते हीं आइसक्रीम ले आई |मैंने शिखा से कहा जानू मुझे पसंद करता है तुम्हे नहीं "|
    शिखा - " कौन जानू ?"
    मेरे सपनो का सौदागर जो सामने बैठा है |
    शिखा - "वो तुम्हारा जानू कब से हो गया ?"
    आज से , अभी से | वो मेरा जानू और मैं उसकी जानेमन ! शिखा अब और वहां न ठहर सकी | नागिन सी फुसफुसाती चली गई | जब जानू उठकर पानी पिने लगा तो मै भी हाथ धोने के लिए बेसिन की तरफ बढ़ चली |
    मेरा दिल जोर जोर से धक-धक करने लगा | वो कभी भी मेरी राह रोक कर अपने प्यार का इज़हार कर सकता था | उसके बगल से गुजरते वक्त तो जैसे मेरी साँस हीं रुक गई थी | जानू कुछ बोला नहीं | बस निहारता रहा |


    शिखा इस कदर नाराज़ हो गई कि मुझसे बात तक करना छोड़ दिया | उसे लगता था मैंने उसके प्यार को छिना है | वह अब मेरे साथ खाना खाने नहीं आती | ना आती ना आये | यहाँ कौन मरा जा रहा है उसके लिए | मैंने सुमित से भी आखिरकार खुद को आज़ाद कर लिया | शिखा और सुमित ने ऑफिस के सारे लोगो को भड़का के मेरे खिलाफ कर दिया |मैं बहुत दुखी और आहात थी | इधर जानू भी बस घूरता रहता कहता कुछ नहीं | कभी कभी उस पर इतना गुस्सा आता कि जाकर एक थप्पड़ लगाऊँ और बोलूं कि तुम्हे किसी के अरमानो से खेलने का कोई हक नहीं | अगर बोलने की हिम्मत नहीं है तो मेरी तरफ देखना भी बंद कर दो | ऑफिस में बस एक महेंदरजी थे जो मुझे समझते थे | मेरे से उम्र में १०-१५ साल बड़े थे फिर भी उनका साथ मुझे अच्छा लगता है | उनके जीवन के अनुभवों से बहुत कुछ सीखने को मिलता है और वो औरो की तरह मेरा मजाक नहीं उड़ाते | मैं उनके साथ कैंटीन आने-जाने लगी | शायद जानू कंपनी के किसी दुसरे ऑफिस में चला गया था | अब वो महीने में एक दो बार हीं दिखाई देता | हाँ पर जब भी आता उसकी नज़रे मुझे हीं तलाशती रहती |




    मुझे समझ में नहीं आ रहा था की क्या करूँ | मैं आगे बढ़ के दोस्ती का हाथ नहीं बढ़ा सकती थी | सुमित के साथ ऐसा कर के आज तक दर्द सह रही हूँ | आखिर क्या वजह हो सकती है | क्या वो भीरु किसम का इंसान है | दिल उसके बारे में कुछ भी बुरा नहीं सुन सकता | खुद की भी नहीं | यह भी हो सकता है कि मैं बहुत सुंदर और मॉडर्न दिखती हूँ और उसे लगता हो मैं उसके पहुँच से बाहर हूँ | किसी तरह मेरा मोबाइल नंबर या इ मेल उसके पास पहुँच जाय तो वो बात आगे बढाए | मैंने उसे ऑरकुट और फेसबुक पर बहुत ढूंढा पर मिले कैसे ,नाम तक तो पता नहीं उसका |


    एक- डेढ़ महीने वो फिर नहीं दिखा | सुना है रोने से मन हल्का हो जाता है | इतना रोया कि आंसू ख़त्म हो गए और साथ ही उसको दुबारा देखने की उम्मीद भी | समय के साथ समझौता करके मैं जीना सीख हीं रही थी कि अचानक वो फिर दिखा | मेरे हीं बगल में खड़े होकर मुझे सारे कैंटीन में तलाश रहा था | सच में उसे कभी एहसास हीं नहीं हुआ कि मैं उसके कितने करीब हूँ | तीन चार दिन दिखा और फिर गायब हो गया | मैं जब भी उसे भूलने की कोशिश करती वह आकर घावों को कुरेद जाता | ठहरे पानी में कंकड़ मार जाता और मैं लहरों के भंवर में उलझ के रह जाती |

    कुछ दिनों के बाद जब मैं महेंदरजी के साथ लंच कर रही थी तभी उसके तीन चार दोस्त मेरे टेबल से सटे टेबल पर आकर बैठ गए | उसके दोस्त तो यहाँ बैठे है पर वो जूस काउंटर पर क्या कर रहा है ? काफी देर से वही खड़ा था | शायद मेरा इन्तजार कर रहा हो | मैं और ना ठहर सकी ,उठकर जूस के काउनटर पर पहुँच गई और मैंगो शेक देने को कहा | एक - दो पल के लिए रुकी , शायद वो कुछ कहे पर उसने तो मुंह ना खोलने की कसम खा ली थी | मैं ठहर ना सकी |बिना जूस लिए हीं लौट आई |

    हिद्रय में उथल पुथल मची हुई थी | उठी और दुबारा जूस वाले के पास गई इस आश में कि शायद इस बार वो कुछ बोले | वो बुत सा खड़ा रहा | मैं जूस लेकर आई जल्दी से पिया और रोते हुए नीचे उतर गई |

    इससे ज्यादा मैं क्या कर सकती थी | ना जाने कितने लड़के कितनी लड़कियों को घूरते रहते है | हर लड़की मेरी तरह बेचैन होकर आहें तो नहीं भरने लगती फिर मैं ऐसा क्यों कर रही हूँ ? सुमित और शिखा को दिखाने के लिए या सुमित की खाली जगह भरने के लिए या मैं सच में उसे प्यार करती हूँ ? कोई तो जा के उससे ये कह दे की आकर मेरा हाथ थाम ले या अपनी नजरो की तीरों से भेदना बंद कर दे | मैं टूट चुकीं हूँ | अब और सहन नहीं होता |

    Hindi Love Stories - tum kab bologi  by Nishikant Tiwari

    Friday, September 18, 2009

    हांथो में आ गया जो कल रुमाल आपका

    वो भी क्या दिन थे जब आशिक लड़कियों के रुमाल के लिए मरा करते थे |अगर गलती से किसी लड़की का रुमाल मिल जाए तो खुद को खुशनसीब समझते थे |उस रुमाल को जान से भी ज्यादा प्यार करते |उसे तकिये के नीचे रख के सोते |मैं भी सदा यही सपने देखा करता कि काश किसी लड़की का रुमाल मेरे हाथ में भी आता | इस रुमाल को लेकर हमारे गीतकारों ने जाने कितने गीत लिखे |जैसे काली टोपी लाल रुमाल ,रेशम का रुमाल आदि | ये रुमाल जो इतना सर आँखों पर चढा था स्वेन फ्लू ने इसकी ऐसी तैसी करके रख दी है | इस रुमाल, जिसे मैं पाने के सपने देखा करता था कल अचानक से मेरे पास आ गया |हुआ यूँ कि कल एक सहेली मुझसे बात करते करते अपना रुमाल भूल गयी |

    पर इस रुमाल को लेकर मै बड़ी दुविधा में पड़ गया हूँ | आप पूछेंगे , भला क्यों ? अरे इस स्वेन फ्लू की वजह से | इस रुमाल को न फेंकते बनता है न रखते | इस पर मुझे एक गाना याद आ रहा है ..

    हांथो में आ गया जो कल रुमाल आपका
    बेचैन केर रहा है ख्याल आपका ... कि कहीं आपको स्वेन फ्लू तो नहीं क्योकि कल आप छींक रहीं थी |
    एक तो ऐसे भी आज कल रुमाल रखने का चलन कम हो गया है ,लोग नेपकिन प्रयोग करने लगे है |फिर जाने कब इस रुमाल को पाने का सौभाग्य प्राप्त हो | अगर फेंक दूँ तो उस युवती पर अत्याचार होगा और अगर ना फेंकू तो शायद फिर कभी कोई अत्याचार करने के लिए हीं ना बचूं | बड़े संकट में हूँ | आप हीं कोई उपाय सुझाये |

    Aab mai kaya kahu ?  हो जज़्बात जितने हैं दिल में, मेरे ही जैसे हैं वो बेज़ुबान जो तुमसे मैं कहना न पाई, कहती हैं वो मेरी ख़ामोशियाँ सुन स...