स्नेहा, मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ !
दोपहर का भोजन करके अभी बैठा हीं था कि नितिन का फोन आया | नितिन "हाय
निशि कैसे हो ? बहुत दिनों से तुमसे बात नहीं हुई | सोचा क्यों न
तुम्हारा हाल चाल ले लूँ |" "यह तो तुमने बहुत अच्छा किया नीतू ,मैं खुद
हीं बहुत दिनों से तुमसे बात करने की सोच रहा था |" नितिन मेरे सबसे
पुरानेदोस्तों
में से एक था | मेरे स्कूल का दोस्त | प्यार से मैं उसे नीतू बुलाता था |
नीतू हमारी हीं कक्षा की उस लड़की का नाम था जिसने पहली बार मेरे मासूम
हृदय का
हरण किया था | नितिन को पता था कि मैं उसे नीतू क्यों कहता हूँ पर उसने
कभी ऐतराज नहीं किया | उसे भी मालुम था कि इस शब्द से मुझे कितना लगाव था
| क्या हुआ जो नीतू से कभी कुछ कह नहीं पाया , कम से कम उसके नाम को
जुबान पे ला के थोड़े देर के लिए हीं सही उन पुराणी यादों में खो तो सकता
हूँ | नितिन -"यार बहुत दिन हुए तुमसे मिले हुए |" "आज्ञा कीजिये
नीतूजी ,कहिये तो आज हीं मिलने आ जाऊं !" "तो फिर आ जाओ ना ,तुमसे बहुत
सारी बातें करनी है | मैं बोला -"ठीक है मैं शाम को ओफीस के बाद तुम्हारे
यहाँ आता हूँ | चलो फिर शाम को मिलते है |"
मैंने ट्रांसपोर्ट अधिकारी से पांडव नगर जाने वाली गाड़ी के बारे में पूछा
तो उसने ५-६ लोगो के नाम और मोबाइल नंबर दिए और कहा कि इनमे से किसी से
भी बात
करके उनके साथ चला जाऊं | इन ५-६ लोगों में से एक नाम था जो मुझे पसंद
आया स्नेहा | आप समझ हीं गए होंगे क्यों !! मैं उसके पास जाकर बोला
-"माफ़ कीजियेगा स्नेहाजी क्या आपके कैब में जगह होगी मुझे पांडव नगर तक
जाना है |" "हाँ क्यों नहीं पर आइ एम सॉरी मैं आपको जानती नहीं |" मेरा
नाम निशिकांत है, मैं रेलवे प्रोजेक्ट वाली टीम में काम करता हूँ |""ठीक
है मैं शाम को जाने वक्त आपको बुला लुंगी ,आप अपना नंबर देते जाइए |"
शाम को स्नेह मुझे लेने आई
| कैब के तरफ बढ़ते हुए वो बहुत अफ़सोस जता रही थी की मुझे उसका नाम मालुम
है पर उसे मेरा नहीं |स्नेहा --"पहले कंपनी में ५०-१०० लोग थे सो सभी एक
दुसरे को जानते थे पर अब इतने ज्यादा हो गए है कि सबको जान पाना मुस्किल
है पर आप मुझे कैसे जानते है ? "अरे आपको कौन नहीं जानता |" स्नेहा
-"क्यों भला "| " अच्छा तो आप मेरे मुंह से अपनी तारीफ़ सुनना चाहती है
क्यों ?" वो थोड़ा शर्मा गई |"और रही बात मुझे जानने कि तो इसमें इतना
अफ़सोस जताने की कोई बात नहीं |आप तो पहले मुझसे कभी नहीं मिली है यहाँ तो
जब मैं अपनी टीम में आये एक नए बन्दे को सबसे मिलवाने गया तो एक लड़की
मुझसे हाथ मिलकर बोली कि कंपनी में आपका स्वागत है |वो लड़की कुछ दिन पहले
हीं मेरे साथ ट्रेनिंग कर चुकी थी | इसपर वो हंस कर बोली पर मैं ऐसी नहीं
हूँ | एक बार जिससे मिल लेती हूँ उसे कभी नहीं भूलती | बातें करते हुए हम
कैब में समा गए | मुझसे वो काफी प्रभावित थी | स्नेहा दूध की तरह गोरी तो
नहीं थी चहरे पर हल्का सा सावालापन था पर थी गजब की मोहिनी | सबसे ज्यादा
कमाल के थे उसके नयन, इतने चंचल , इतने चमकीले ,उसके साथ साथ उसके नयन भी
बात करते मालुम पड़ते |उनमें वैसी हीं उत्सुकता और जिज्ञासा थी जैसे
खिड़की पर खड़े सड़क को निहार रहे किसी बच्चे के चेहरे पर होती है | मैंने
उसे बताया कि मुझे मदर डेरी के पास उतरना है |बेचारे वाहन चालक तो फूटी
किस्मत लेकर हीं पैदा होते है | हर लड़की उन्हें भैया कह के बुलाती है |
यहाँ भी बात कुछ अलग नहीं थी | बोली भैया इन्हें मदर डेयरी पर उतार
दीजिएगा | वो थोड़ी थोड़ी देर पर भैया कह के पुकारती रही और हर बार भैया
वो भैया शब्द सुनकर खीजता रहा | मेरे से वो ख़ास कर नाराज़ था क्योकि मेरे
कारण हीं उसे इतनी बार ये सब्द सुनना पड़ा |
उसका अपनापन देखकर मैं दंग था | किसी ऐसे व्यक्ति जिससे वो पहली बार मिली
हो इतना अपनापन कैसे दिखा सकती है ! उसका बात-व्यवहार मेरे दिल को छू
गया | सामान्यतः सुन्दर लडकियां गुरुर के मत में चूर रहती हैं पर ये तो
गंगा की तरह शांत और शीतल थी जैसे उसे अपने विशालता का पता हीं ना हो |
पहली बार में हीं किसी से इतना प्रभावित मैं आज तक नहीं हुआ था | इतनी
अच्छी लड़की से मेल-जोल ज़रूर बढ़ाऊंगा | ऑफिस में कहीं भी दिखेगी तो कम
से कम हाय जरुर कहूँगा | कुछ इसी तरह के इरादों के साथ मैं कैब से उतरा
और नितिन के घर के तरफ बढ़ चला | मेरा खिला चेहरा देखकर नितिन खुश हो गया
| उसके लगा की मैं उसका एक मात्र ऐसा दोस्त हूँ जिसे उससे मिलने पर इतनी
ख़ुशी होती है |
अगले दिन मैं स्नेहा से बात करने के इरादे से उस पंक्ति में गया जहां वो
बैठती थी ,उसने मुझे आते हुए देखा पर चुप चाप अपना काम करती रही | हाँ
थोड़ा सजग जरुर हो गई पर पास पहुचते हीं संकोच के मारे उससे बात ना करके
विनय से बात करने लगा | विनिय मेरे एक दोस्त का दोस्त था और वह कुछ दिन
पहले ही कंपनी में आया था | स्नेहा की सजगता में एक इंतज़ार छुपा रहा |
उसे लगा कि शायद विनय से बात करने के बाद मैं उससे बात करूं पर ऐसा कुछ
भी नहीं हुआ |
मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि मैं उससे बिना बात किये लौट
आया | दिल को समझाया फुसलाया और अगले दिन फिर गया | अब आपको क्या बताएं
अगले दिन भी मैंने वैसे ही किया | मैं खुद अपने हीं घाव पे नश्तर पर
नश्तर चला कर दुखी हो रहा था | गुस्सा केवल इस बात पर नहीं था कि मैं एक
लड़की से बात नहीं कर पा रहा हूँ या वो मेरे बारे में क्या सोचेगी बल्कि
इस बात का कि मैं कभी सुधर नहीं सकता | जब इंसान को यह लगता है कि वो कोई
काम नहीं कर सकता तो उसके अहम् को चोट पहुँचती है और उससे उत्पन्न होता
है दुःख और निराशा | मैं भी किसी से अलग नहीं हूँ लेकिन मैंने जिंदगी
में कभी जल्दी हार मानना नहीं सीखा है | खुद को फिर से तैयार किया उसके
पास तब गया जब विनय अपनी सीट पर नहीं था | अब मेरे पास बचने का कोई बहाना
नहीं था |
मैंने उससे बड़े प्यार से बात की और उसने उतने ही प्यार से मेरे सवालों
का जवाब हीं नहीं दिया और भी ढेर सारीं बातें कीं | मैं अक्सर(लगभग रोज़)
उसके सीट पर जाता और दो चार बातें करता | वह कभी भी दूर से देख कर न
हंसती ना हीं अभिवादन करती पास करने का इंतज़ार करती | धीरे धीरे उसका
रूप लावण्य मुझे अपने बस में करने लगा | उसे छुप छुप कर देखना मेरी आदत
सी बन गई | वह भी इस बात से अनजान नहीं थी | मैंने उसे ऑरकुट पर धुंध
निकाला और उसकी खूबसूरती पर दो चार पंक्तियाँ भी लिख दीं |
उसकी तारीफ़ लिखने के बाद उसके सामने जाने में बड़ा संकोच हो रहा था |
संकोच के मारे कई दिन से उसके सामने जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी |
आखिरकार मैंने फिर नितिन की घर जाने कि सोची ताकि कैब में हिम्मत जुटाकर
थोडा बहुत बात कर सकूँ | कैब में साथ बैठे भी पर मैंने कोई बात नहीं की |
नितिन के रूम पर रात भर नींद नहीं आई | अपने व्यवहार को याद करके खुद को
कोसता रहा | अगले दिन ऑफिस आते वक्त उसने चुइंग गम दिया पर मैंने लेने से
मना कर दिया | मैं अभी भी चुप बैठा था | अन्दर से आवाज़ आती रही |"अबे
कुछ बोलता क्यों नहीं ?" धीरे धीरे ये आवाज़ तेज़ होने लगी | अब मेरे लिए
चुप रहना मुस्किल हो गया था | मैं अगर अब भी कुछ नहीं बोलता तो अन्दर की
आवाज़ खुद ब खुद बहार आकर बोलने लगती | सो मैंने बात की और उसने हमेशा की
तरह प्यार से मेरे हर बात का जवाब दिया |
इसके बाद मेरी झिझक खुल गई | मैं अब बड़ी सहजता से उससे बात करने लगा था
| वो भी अब सीट में छुपे रहकर मेरे पास आने का इंतज़ार नहीं करती बल्कि
दूर से देखते हीं अभिवादन करती | मेरे जीवन में एक नई स्फूर्ति आ गई थी |
प्यार का रोमांच मुझे जिंदगी के नए मायने समझा रहा था | अब ऑफिस जाना बोझ
नहीं लगता | रोज़ मर्रा की घिसी पिटी जिंदगी में एक हलचल सी होने लगी
थी जिसकी लहरों पर सवार होकर मैं उस किनारे तक पहुँचने की कोशिश करने लगा
जहाँ जिंदगी के कड़ी धुप में आराम करने के लिए जुल्फों की घनी छाया नसीब
होती है जहाँ किसी की हंसी से दिन निकलता है ,उसके आखें मुंदने से रात
होती है |जहां सारे जहाँ का सौंदर्य किसी के चेहरे में दिखने लगता है |
जहां प्यार हीं बादल बनकर बरसता है और प्यार हीं ठंडी हवाएं बनकर दिल को
सहलातीं है | एक ऐसा जहां ,जहाँ जीने लिए बस प्यार की जरुरत होती है ,बस
प्यार की ! वलेंटाइन दिवस आने वाला था | मन हीं मन पूरी तैयारी कर ली
थी कि इस दिन को मैं ख़ास बनाऊंगा अपने प्यार का इजहार करके | वलेंटाइन
दिवस शनिवार को पड़ने के कारण ऑफिस बंद था |
सोचा फोन पे दिन का हाल ब्यान कर दूँ पर हिमात जवाब दे गई | सो उसे प्यार
भरा एक एस ऍम एस भेजा जो इशारे में मेरे दिल की बेकरारी कह रहा था |
सोमवार को जब ऑफिस पहुंचा तो फिर वहीँ संकोच मुझे उससे नज़ारे नहीं मिलाने
दे रहा था | समझ में नहीं आ रहा था कि बार बार अड़चन बन कर आ रहे इस
संकोच की बिमारी का क्या करूँ ? खुद को समझाऊं , सजा दूँ आखिर करूँ क्या
? खैर तीन-चार दिन के बाद जब मैं उससे बात कि तो उसमे पहले जैसी आत्मीयता
नहीं दिखी | वो पहले की तरह उत्सुकता से मेरी बातें सुनाने के बजाय जल्दी
से वार्तालाप खत्म करने की कोशिश करती दिखी | जब कई बार ऐसा हुआ तो दिल
बैठ गया | मुझे लगा कि मैंने एस एम् एस भेज कर बहुत बड़ी गलती कर दी |
पहले कम से कम अच्छी दोस्त तो थी पर अब शायद वो भी ना रहे |
फिर दिल में ख्याल आया कि मैं हीं क्यों उसके पीछे पीछे घूमूं | वो तो
कभी मेरे सीट पर नहीं आती है |मैं हीं क्यों रोज़ रोज़ उससे मिलने जाता
रहता हूँ | जब मर्जी हुई हंस के बात कर लिया मर्जी ना हुई तो नाराज़ हो
गई | यह भी कोई बात हुई !l इंसान खुद को फुसलाना बड़ी अच्छी तरह जानता
है | सोचा हो सकता है किसी और बात से परेशान हो लेकिन जब मैंने देखा कि
ऑरकुट पर मेरे द्वारा लिखी हुई तारीफ़ भी उसने हटा दी है तो यकीं हो गया
कि कुछ गड़बड़ है | अब तो वो मुझसे नज़रें तक मिलाने से कतरा रही थी |
स्नेहा पर रह रह के गुस्सा आता -एक एस एम् एस हीं तो भेजा है ऐसा कौन सा
गुनाह कर दिया है जो वो इस तरह बर्ताव कर रही है | विश्वाश नहीं हो रहा
था स्नेहा जिसे मैं प्यार की गंगा समझ रहा था असल में गुलाब में छिपा एक
कांटा है | उसके मोहक अंदाज़ से हर कोई उसके पास खिंचा चला आता है पर पास
जाकर हीं उस कांटे की टीस महसूस होती है |
जब मुझसे न रहा गया तो उसके पास जाकर पूछा -"स्नेहा तुम मुझसे नाराज़
क्यों हो ?" स्नेहा -"निशि तुम ऐसा क्यों कह रहे हो ?" वो ऐसा दिखाने की
कोशिश कर रही थी कि जैसे कुछ हुआ हीं ना हो "| "तो तुमने मेरा ऑरकुट से
स्क्रैप क्यों हटा दिया ?" "वो मैंने नहीं मेरे पति ने हटाया है | वो
थोड़े वैसे हैं | उन्हें अच्छा नहीं लगता ये सब |मैं चौंका -"तुम्हारा
पति !!!!!!!!!!!" | स्नेहा - "हाँ " | "पर तुमने तो कभी बताया नहीं "|
"मुझे लगा तुम्हे मालुम होगा " |
मैं अब और वहां खड़ा नहीं रह सका | सारे सपने एक झटके में हीं टूट गए |
मैं जिस किनारे का सपना देख रहा था वहां तो पहले से हीं कोई घर बनाए हुए
बैठा था | मैंने उसे कितना गलत समझा ये सोच के ग्लानी हो रही है | अब समझ
में आया कि वो मुझसे नज़ारे क्यों नहीं मिला पा रही थी | उसके पति ने कोई
गलती नहीं की थी | उसके जगह कोई और होता तो यही करता या शायद इससे कुछ
ज्यादा हीं फिर भी वो शर्मिंदा थी | कितनी अच्छी है वो | अपना भारत देश
बदलने लगा है | किसी विवाहित भारतीय स्त्री का भी पुरुष मित्र हो सकता है
| स्नेहा -मैं तुम्हे पहले से भी अधिक प्यार करने लगा हूँ |
चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे फिर भी कभी अब नाम को तेरे आवाज़ मैं ना
दूंगा .... | आवाज़ मैं ना दूंगा |
Hindi Love Stories - Awaaz Main Na Dunga by Nishikant Tiwari
दोपहर का भोजन करके अभी बैठा हीं था कि नितिन का फोन आया | नितिन "हाय
निशि कैसे हो ? बहुत दिनों से तुमसे बात नहीं हुई | सोचा क्यों न
तुम्हारा हाल चाल ले लूँ |" "यह तो तुमने बहुत अच्छा किया नीतू ,मैं खुद
हीं बहुत दिनों से तुमसे बात करने की सोच रहा था |" नितिन मेरे सबसे
पुरानेदोस्तों
में से एक था | मेरे स्कूल का दोस्त | प्यार से मैं उसे नीतू बुलाता था |
नीतू हमारी हीं कक्षा की उस लड़की का नाम था जिसने पहली बार मेरे मासूम
हृदय का
हरण किया था | नितिन को पता था कि मैं उसे नीतू क्यों कहता हूँ पर उसने
कभी ऐतराज नहीं किया | उसे भी मालुम था कि इस शब्द से मुझे कितना लगाव था
| क्या हुआ जो नीतू से कभी कुछ कह नहीं पाया , कम से कम उसके नाम को
जुबान पे ला के थोड़े देर के लिए हीं सही उन पुराणी यादों में खो तो सकता
हूँ | नितिन -"यार बहुत दिन हुए तुमसे मिले हुए |" "आज्ञा कीजिये
नीतूजी ,कहिये तो आज हीं मिलने आ जाऊं !" "तो फिर आ जाओ ना ,तुमसे बहुत
सारी बातें करनी है | मैं बोला -"ठीक है मैं शाम को ओफीस के बाद तुम्हारे
यहाँ आता हूँ | चलो फिर शाम को मिलते है |"
मैंने ट्रांसपोर्ट अधिकारी से पांडव नगर जाने वाली गाड़ी के बारे में पूछा
तो उसने ५-६ लोगो के नाम और मोबाइल नंबर दिए और कहा कि इनमे से किसी से
भी बात
करके उनके साथ चला जाऊं | इन ५-६ लोगों में से एक नाम था जो मुझे पसंद
आया स्नेहा | आप समझ हीं गए होंगे क्यों !! मैं उसके पास जाकर बोला
-"माफ़ कीजियेगा स्नेहाजी क्या आपके कैब में जगह होगी मुझे पांडव नगर तक
जाना है |" "हाँ क्यों नहीं पर आइ एम सॉरी मैं आपको जानती नहीं |" मेरा
नाम निशिकांत है, मैं रेलवे प्रोजेक्ट वाली टीम में काम करता हूँ |""ठीक
है मैं शाम को जाने वक्त आपको बुला लुंगी ,आप अपना नंबर देते जाइए |"
शाम को स्नेह मुझे लेने आई
| कैब के तरफ बढ़ते हुए वो बहुत अफ़सोस जता रही थी की मुझे उसका नाम मालुम
है पर उसे मेरा नहीं |स्नेहा --"पहले कंपनी में ५०-१०० लोग थे सो सभी एक
दुसरे को जानते थे पर अब इतने ज्यादा हो गए है कि सबको जान पाना मुस्किल
है पर आप मुझे कैसे जानते है ? "अरे आपको कौन नहीं जानता |" स्नेहा
-"क्यों भला "| " अच्छा तो आप मेरे मुंह से अपनी तारीफ़ सुनना चाहती है
क्यों ?" वो थोड़ा शर्मा गई |"और रही बात मुझे जानने कि तो इसमें इतना
अफ़सोस जताने की कोई बात नहीं |आप तो पहले मुझसे कभी नहीं मिली है यहाँ तो
जब मैं अपनी टीम में आये एक नए बन्दे को सबसे मिलवाने गया तो एक लड़की
मुझसे हाथ मिलकर बोली कि कंपनी में आपका स्वागत है |वो लड़की कुछ दिन पहले
हीं मेरे साथ ट्रेनिंग कर चुकी थी | इसपर वो हंस कर बोली पर मैं ऐसी नहीं
हूँ | एक बार जिससे मिल लेती हूँ उसे कभी नहीं भूलती | बातें करते हुए हम
कैब में समा गए | मुझसे वो काफी प्रभावित थी | स्नेहा दूध की तरह गोरी तो
नहीं थी चहरे पर हल्का सा सावालापन था पर थी गजब की मोहिनी | सबसे ज्यादा
कमाल के थे उसके नयन, इतने चंचल , इतने चमकीले ,उसके साथ साथ उसके नयन भी
बात करते मालुम पड़ते |उनमें वैसी हीं उत्सुकता और जिज्ञासा थी जैसे
खिड़की पर खड़े सड़क को निहार रहे किसी बच्चे के चेहरे पर होती है | मैंने
उसे बताया कि मुझे मदर डेरी के पास उतरना है |बेचारे वाहन चालक तो फूटी
किस्मत लेकर हीं पैदा होते है | हर लड़की उन्हें भैया कह के बुलाती है |
यहाँ भी बात कुछ अलग नहीं थी | बोली भैया इन्हें मदर डेयरी पर उतार
दीजिएगा | वो थोड़ी थोड़ी देर पर भैया कह के पुकारती रही और हर बार भैया
वो भैया शब्द सुनकर खीजता रहा | मेरे से वो ख़ास कर नाराज़ था क्योकि मेरे
कारण हीं उसे इतनी बार ये सब्द सुनना पड़ा |
उसका अपनापन देखकर मैं दंग था | किसी ऐसे व्यक्ति जिससे वो पहली बार मिली
हो इतना अपनापन कैसे दिखा सकती है ! उसका बात-व्यवहार मेरे दिल को छू
गया | सामान्यतः सुन्दर लडकियां गुरुर के मत में चूर रहती हैं पर ये तो
गंगा की तरह शांत और शीतल थी जैसे उसे अपने विशालता का पता हीं ना हो |
पहली बार में हीं किसी से इतना प्रभावित मैं आज तक नहीं हुआ था | इतनी
अच्छी लड़की से मेल-जोल ज़रूर बढ़ाऊंगा | ऑफिस में कहीं भी दिखेगी तो कम
से कम हाय जरुर कहूँगा | कुछ इसी तरह के इरादों के साथ मैं कैब से उतरा
और नितिन के घर के तरफ बढ़ चला | मेरा खिला चेहरा देखकर नितिन खुश हो गया
| उसके लगा की मैं उसका एक मात्र ऐसा दोस्त हूँ जिसे उससे मिलने पर इतनी
ख़ुशी होती है |
अगले दिन मैं स्नेहा से बात करने के इरादे से उस पंक्ति में गया जहां वो
बैठती थी ,उसने मुझे आते हुए देखा पर चुप चाप अपना काम करती रही | हाँ
थोड़ा सजग जरुर हो गई पर पास पहुचते हीं संकोच के मारे उससे बात ना करके
विनय से बात करने लगा | विनिय मेरे एक दोस्त का दोस्त था और वह कुछ दिन
पहले ही कंपनी में आया था | स्नेहा की सजगता में एक इंतज़ार छुपा रहा |
उसे लगा कि शायद विनय से बात करने के बाद मैं उससे बात करूं पर ऐसा कुछ
भी नहीं हुआ |
मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि मैं उससे बिना बात किये लौट
आया | दिल को समझाया फुसलाया और अगले दिन फिर गया | अब आपको क्या बताएं
अगले दिन भी मैंने वैसे ही किया | मैं खुद अपने हीं घाव पे नश्तर पर
नश्तर चला कर दुखी हो रहा था | गुस्सा केवल इस बात पर नहीं था कि मैं एक
लड़की से बात नहीं कर पा रहा हूँ या वो मेरे बारे में क्या सोचेगी बल्कि
इस बात का कि मैं कभी सुधर नहीं सकता | जब इंसान को यह लगता है कि वो कोई
काम नहीं कर सकता तो उसके अहम् को चोट पहुँचती है और उससे उत्पन्न होता
है दुःख और निराशा | मैं भी किसी से अलग नहीं हूँ लेकिन मैंने जिंदगी
में कभी जल्दी हार मानना नहीं सीखा है | खुद को फिर से तैयार किया उसके
पास तब गया जब विनय अपनी सीट पर नहीं था | अब मेरे पास बचने का कोई बहाना
नहीं था |
मैंने उससे बड़े प्यार से बात की और उसने उतने ही प्यार से मेरे सवालों
का जवाब हीं नहीं दिया और भी ढेर सारीं बातें कीं | मैं अक्सर(लगभग रोज़)
उसके सीट पर जाता और दो चार बातें करता | वह कभी भी दूर से देख कर न
हंसती ना हीं अभिवादन करती पास करने का इंतज़ार करती | धीरे धीरे उसका
रूप लावण्य मुझे अपने बस में करने लगा | उसे छुप छुप कर देखना मेरी आदत
सी बन गई | वह भी इस बात से अनजान नहीं थी | मैंने उसे ऑरकुट पर धुंध
निकाला और उसकी खूबसूरती पर दो चार पंक्तियाँ भी लिख दीं |
उसकी तारीफ़ लिखने के बाद उसके सामने जाने में बड़ा संकोच हो रहा था |
संकोच के मारे कई दिन से उसके सामने जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी |
आखिरकार मैंने फिर नितिन की घर जाने कि सोची ताकि कैब में हिम्मत जुटाकर
थोडा बहुत बात कर सकूँ | कैब में साथ बैठे भी पर मैंने कोई बात नहीं की |
नितिन के रूम पर रात भर नींद नहीं आई | अपने व्यवहार को याद करके खुद को
कोसता रहा | अगले दिन ऑफिस आते वक्त उसने चुइंग गम दिया पर मैंने लेने से
मना कर दिया | मैं अभी भी चुप बैठा था | अन्दर से आवाज़ आती रही |"अबे
कुछ बोलता क्यों नहीं ?" धीरे धीरे ये आवाज़ तेज़ होने लगी | अब मेरे लिए
चुप रहना मुस्किल हो गया था | मैं अगर अब भी कुछ नहीं बोलता तो अन्दर की
आवाज़ खुद ब खुद बहार आकर बोलने लगती | सो मैंने बात की और उसने हमेशा की
तरह प्यार से मेरे हर बात का जवाब दिया |
इसके बाद मेरी झिझक खुल गई | मैं अब बड़ी सहजता से उससे बात करने लगा था
| वो भी अब सीट में छुपे रहकर मेरे पास आने का इंतज़ार नहीं करती बल्कि
दूर से देखते हीं अभिवादन करती | मेरे जीवन में एक नई स्फूर्ति आ गई थी |
प्यार का रोमांच मुझे जिंदगी के नए मायने समझा रहा था | अब ऑफिस जाना बोझ
नहीं लगता | रोज़ मर्रा की घिसी पिटी जिंदगी में एक हलचल सी होने लगी
थी जिसकी लहरों पर सवार होकर मैं उस किनारे तक पहुँचने की कोशिश करने लगा
जहाँ जिंदगी के कड़ी धुप में आराम करने के लिए जुल्फों की घनी छाया नसीब
होती है जहाँ किसी की हंसी से दिन निकलता है ,उसके आखें मुंदने से रात
होती है |जहां सारे जहाँ का सौंदर्य किसी के चेहरे में दिखने लगता है |
जहां प्यार हीं बादल बनकर बरसता है और प्यार हीं ठंडी हवाएं बनकर दिल को
सहलातीं है | एक ऐसा जहां ,जहाँ जीने लिए बस प्यार की जरुरत होती है ,बस
प्यार की ! वलेंटाइन दिवस आने वाला था | मन हीं मन पूरी तैयारी कर ली
थी कि इस दिन को मैं ख़ास बनाऊंगा अपने प्यार का इजहार करके | वलेंटाइन
दिवस शनिवार को पड़ने के कारण ऑफिस बंद था |
सोचा फोन पे दिन का हाल ब्यान कर दूँ पर हिमात जवाब दे गई | सो उसे प्यार
भरा एक एस ऍम एस भेजा जो इशारे में मेरे दिल की बेकरारी कह रहा था |
सोमवार को जब ऑफिस पहुंचा तो फिर वहीँ संकोच मुझे उससे नज़ारे नहीं मिलाने
दे रहा था | समझ में नहीं आ रहा था कि बार बार अड़चन बन कर आ रहे इस
संकोच की बिमारी का क्या करूँ ? खुद को समझाऊं , सजा दूँ आखिर करूँ क्या
? खैर तीन-चार दिन के बाद जब मैं उससे बात कि तो उसमे पहले जैसी आत्मीयता
नहीं दिखी | वो पहले की तरह उत्सुकता से मेरी बातें सुनाने के बजाय जल्दी
से वार्तालाप खत्म करने की कोशिश करती दिखी | जब कई बार ऐसा हुआ तो दिल
बैठ गया | मुझे लगा कि मैंने एस एम् एस भेज कर बहुत बड़ी गलती कर दी |
पहले कम से कम अच्छी दोस्त तो थी पर अब शायद वो भी ना रहे |
फिर दिल में ख्याल आया कि मैं हीं क्यों उसके पीछे पीछे घूमूं | वो तो
कभी मेरे सीट पर नहीं आती है |मैं हीं क्यों रोज़ रोज़ उससे मिलने जाता
रहता हूँ | जब मर्जी हुई हंस के बात कर लिया मर्जी ना हुई तो नाराज़ हो
गई | यह भी कोई बात हुई !l इंसान खुद को फुसलाना बड़ी अच्छी तरह जानता
है | सोचा हो सकता है किसी और बात से परेशान हो लेकिन जब मैंने देखा कि
ऑरकुट पर मेरे द्वारा लिखी हुई तारीफ़ भी उसने हटा दी है तो यकीं हो गया
कि कुछ गड़बड़ है | अब तो वो मुझसे नज़रें तक मिलाने से कतरा रही थी |
स्नेहा पर रह रह के गुस्सा आता -एक एस एम् एस हीं तो भेजा है ऐसा कौन सा
गुनाह कर दिया है जो वो इस तरह बर्ताव कर रही है | विश्वाश नहीं हो रहा
था स्नेहा जिसे मैं प्यार की गंगा समझ रहा था असल में गुलाब में छिपा एक
कांटा है | उसके मोहक अंदाज़ से हर कोई उसके पास खिंचा चला आता है पर पास
जाकर हीं उस कांटे की टीस महसूस होती है |
जब मुझसे न रहा गया तो उसके पास जाकर पूछा -"स्नेहा तुम मुझसे नाराज़
क्यों हो ?" स्नेहा -"निशि तुम ऐसा क्यों कह रहे हो ?" वो ऐसा दिखाने की
कोशिश कर रही थी कि जैसे कुछ हुआ हीं ना हो "| "तो तुमने मेरा ऑरकुट से
स्क्रैप क्यों हटा दिया ?" "वो मैंने नहीं मेरे पति ने हटाया है | वो
थोड़े वैसे हैं | उन्हें अच्छा नहीं लगता ये सब |मैं चौंका -"तुम्हारा
पति !!!!!!!!!!!" | स्नेहा - "हाँ " | "पर तुमने तो कभी बताया नहीं "|
"मुझे लगा तुम्हे मालुम होगा " |
मैं अब और वहां खड़ा नहीं रह सका | सारे सपने एक झटके में हीं टूट गए |
मैं जिस किनारे का सपना देख रहा था वहां तो पहले से हीं कोई घर बनाए हुए
बैठा था | मैंने उसे कितना गलत समझा ये सोच के ग्लानी हो रही है | अब समझ
में आया कि वो मुझसे नज़ारे क्यों नहीं मिला पा रही थी | उसके पति ने कोई
गलती नहीं की थी | उसके जगह कोई और होता तो यही करता या शायद इससे कुछ
ज्यादा हीं फिर भी वो शर्मिंदा थी | कितनी अच्छी है वो | अपना भारत देश
बदलने लगा है | किसी विवाहित भारतीय स्त्री का भी पुरुष मित्र हो सकता है
| स्नेहा -मैं तुम्हे पहले से भी अधिक प्यार करने लगा हूँ |
चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे फिर भी कभी अब नाम को तेरे आवाज़ मैं ना
दूंगा .... | आवाज़ मैं ना दूंगा |
Hindi Love Stories - Awaaz Main Na Dunga by Nishikant Tiwari
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