Dear Payel,
I am feeling a bit uneasy to express myself but I am determined to do so. I can see the same uneasiness on your face but please be calm & cool while you go through this.
I would like to open up my heart to you, but I may lack the skill, or I'm short for words, because my heart harbors so many good feelings towards you that the dictionary seems to short to express all this.
When I saw you for the first time, I couldn¹t ever have imagined that your almost candid face, which holds a young and shy smile, was going to captivate me the way it did. We used to stand in lunch queue near each other and we used to look at each other very indifferently but one day your attention was caught my eyes leading me into the state of attraction, infatuation, bliss or whatever you say.
It perhaps started around two months back and with time the attraction or infatuation has shaped into a respect, all because of your ability to be simple while being attractive. I can see shy in your eyes (very uncommon these days) and your all way of talking, dressing etc brings delight to my heart because it's away from pomp and show.
I don't know if you have ever noticed my interest or this old passion, but now I am declaring it to you. Maybe this letter won't change at all the way you react to me, but I feel somewhat relieved for having clearly expressed these feelings I have nurtured for you for such a long time.
I have not written all this to impress you to become my girl friend and start spending weekends with me but just to be a simple friend so that I could know you better and respect you more than even before. Even you continue through e mails I don't mind.
Please do response I am eagerly waiting for it. If you don't respond I will take it as a silent acceptance. I apologize if this letter has caused any kind of trouble to you and I promise I would never try to contact you or speak about you any further but only when you let me know your views.
With Regards& Respect
Nishikant
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Tuesday, October 11, 2011
पायल से तो घायल होना हीं था (Hindi Love Stories)
कॉलेज से निकलते हीं मुझे एक सॉफ्टवेर कंपनी में नौकरी मिल गयी |कॉलेज में बहुत सुन रखा था कि कंपनियों में एक से बढ़कर एक सुन्दर लड़कियां काम करती है |सोचा प्यार की नैया जो कॉलेज में पानी में तक उतर ना पायी थी उसे कंपनी में गहरे समुंदर तक ले जाऊँगा |मैं यहाँ आते हीं उस अप्सरा की खोज में लग गया जिसे इस कहानी की नायिका बनना था पर किस्मत ने यहाँ भी साथ नहीं दिया |कोई भी लड़की पसंद नहीं आई | जो प्यार नहीं करते वो लड़कियों की बातें करते है | मैं भी उनसे अलग नहीं हूँ | यहाँ कंपनी में मेरी कई लोगो से दोस्ती हो गयी थी और सबकी मेरी जैसी हीं स्थिति थी | जिस प्रकार कामसूत्र के रचयिता वात्स्यान ने नारी जाती को मोरनी ,हिरनी आदि भागो में विभक्त किया है वैसे हीं उनसे प्रेना पाकर हमने भी लड़कियों की कोडिंग स्कीम तैयार कर ली थी |हमने लड़कियों को चार भागो में बांटा
१. वेरी गुड आईडिया
२. गुड आईडिया
३. नोट अ बैड आईडिया
४. नोट अ आईडिया एट ऑल
साथ हीं हमने सभी के पर्यावाची नाम भी रख दिए थे | उदाहरण के तौर पे मेरे सामने वाली लाइन में बैठी दो युवतियों का नाम हमने रूपमती और डबल बैटरी रखा था क्योकि एक बहुत सुंदर थी दूसरी बहुत मोटी |इस प्रकार के नाम कारन की आवश्यकता इस लिए पड़ी क्योंकि हमें किसी का नाम पता नहीं था |गुणों के हिसाब से नाम रखने पर याद करने में आसानी होती थी |इससे एक और लाभ यह था कि सामने वाले को मालुम नहीं चल पता था कि आप किसकी बात कर रहे है |
मेरे सीट के तीन चार पंक्ति पीछे एक सीधी सादी लड़की बैठती थी |नाम तो उसका पता नहीं था सो हम उसे नोट अ बैड आईडिया कहा करते थे |काफी दिनों के बाद पता चला कि उसका नाम पायल है | पायल और घायल कितना मिलता जुलता है और मेरे जैसा सड़क छाप कवि अगर शब्दों के जाल बुनकर उसमें ना उलझे तो कवि कैसा ?
देर से हीं सही पर घायल होना हीं था | ऑफिस में इतनी सारी लडकियां थी पर मुझे वो हीं पसंद क्यों आई ये सवाल बार बार तंग करता | मंथन करने पर भीतर से उत्तर आया कि मुझे एक ऐसी लड़की चाहिए जो सुंदर होने के साथ साथ कोमल ह्रदय वाली हो और बुद्धिमान होते हुवे भी भोली हो | जिसकी आँखों में शर्म हो व अपने देश कि संस्कृति झलके |मैं नहीं जानता पायल कितनी समझदार थी या सह्रिदयनि थी पर उसकी अंकों में वो लज्जा थी जिसकी मुझे तलाश थी |उसका चल चलन बात ब्योहार एक विशिष्ट शालीनता समेटे हुवे था |
पहले उसमे मेरी बहुत रूचि नहीं थी हमें दोपहर के खाने के लिए बसेमेंट में लाइन लगाना पड़ता था |अक्सर वो एक दो लोगों के आगे या पीछे लगती |कभी कभी एक दुसरे पर नज़रें पड़ जातीं पर हमारे दर्शन में सहजता रहती कोई विशेष बात नहीं |एक दिन मैं ऑफिस के बाहर किसी का इंतज़ार कर रहा था पास में हीं पायल भी किसी का इंतज़ार कर रही थी |शायद किस्मत को इसी घड़ी का इंतज़ार था |हम मौन होकर भी बातें कर रहे थे | मैं खुद को उसके इतना पास महसूस कर रहा था कि उसकी आँखों की शीतलता मन में कप कपी पैदा कर रही थी | कुछ दिनों के बाद जब मैं अपने दोस्तों के साथ दोपहर का भोजन कर रहा था तभी ध्यान दिया कि पायल एक लड़के के आड़ में जो कि उसके साथ खाना खा रहा था मुझे घूर रही है |अचानक उस लड़के ने अपना सर पीछे किया और हमारी नज़रें टकरा गयीं |उसने ना नज़रें हटाई ना नीची कीं |एक टक घूरते हुवे मुस्कुरा दी | मैंने शर्म से आँखे नीची कर ली | हम लड़के तो कत्ल होने के लिए तैयार बैठे रहते है | उधर नज़रों का तीर चला नहीं की हम घायल होकर आंहे भरने लगते है |
अगले दिन जब मैं बसेमेंट से नास्ता करके उपर आ रहा था कि कुछ साथी मिल गए और मैं हंसी के गोले दागने लगा जिससे पूरा बसेमेंट गुंजयमान हो उठा |मैं हँसता हुआ सीढियां चढ़ रहा था कि पायल उतरती हुई दिख गयी |मुझे देख कर हंसी और दौड़ती हुई नीचे उतर गयी |उसकी हंसी ने मन में एक उत्सुकता जगा दी | मैं बार बार अपनी सीट से पीछे मुड़कर देखता कि कहीं वो मुझे देख तो नहीं रही है और एक दो बार तो ऐसा करते हुवे पकड़ भी लिया तब से रोज़ पुरे दिन यही सिलसिला चलता रहता |कभी वो छुप छुप के देखती कभी मैं |सारा दिन कभी पानी पिने के बहाने कभी चाय पिने के बहाने किसी ना किसी काम से निकलता रहता |बन्सीवाले तेरे खेल निराले है | धीरे धीरे मेरी उत्सुकता में बैचनी और जलन का रस घुलने लगा | कोई भी उससे बात करता तो मन में टीस होती |दिल को समझना पड़ता कि किसी भी लड़के से उसकी दोस्ती नहीं हो सकती सिवाए मेरे बल्कि मेरे अलावा कोई उसके काबिल हीं नहीं है | दिन भर के कोलाहल के बाद कमरे पे लौट के प्यार वाले मीठे मीठे गीत सुनता |एक दिन ध्यान आया कि ऑफिस में हुवे जश्न में उसकी भी है तस्वीर है तब से रह रह के उसकी तस्वीर को देख लेता | कभी बेवजह हीं कुश हो जाता तो कभी बिना कारण हीं मन भारी हो जाता | मेरा दिल अब मेरा नहीं रह गया था | उस पर कोई और राज करने लगा था | मैं एक ऐसे रास्ते पर चल रहा था जिस पर अंगारें हीं अंगारें थे और आगे बढ़ने के साथ साथ उनकी की ताप बढती चली जा रही थी |
मैंने अपने दोस्त रमेश को सारी कहानी सुनाई |"यार मैं सोंच रहा हूँ क्योना पायल को एक इ मेल लिंखू |अगर वह जवाब देती है तो ठीक है वरना कोई बात नहीं | मेरी प्यार की कहानी काफी दिनों से एक मोड़ हीं पर अटकी पड़ी है आगे तो बढे |वह बोला " नहीं नहीं ऐसा मत करो |शांतनु रोज़ उससे ऑरकुट पर पायल के किसी दोस्त द्बारा भेजे गए एक स्क्रैप के लिए लड़ता रहता है |तुम्हारा इ मेल देख तो तूफ़ान मचा देगा | " "पर ये शांतनु है कौन ? " "उसका बॉय फ्रेंड " उसने एक लड़के के तरफ इशारा करते हुवे बोला | " शांतनु और पायल कॉलेज से हीं दोस्त है और इस कंपनी में भी दोनों ने साथ हीं ज्वाइन किया था |"
ह्रदय की एक एक धड़कन में लहू की जगह जहर समां गया था | मैं फिर अपने किस्मत को कोसने लगा | मैं उसके प्यार में इतना अँधा हो चूका था कि मुझे यह भी दिखाई नहीं दिया कि कोई और उसका प्यार है |उसकी स्वाभाविक हंसी को मैं प्यार का गीत समझ कर ना जाने क्या क्या सपने देखने लगा था | खुद को बहुत समझाने का प्रयास कि उसे भूल जाऊं पर रह रह के मन में यही ख्याल आता कि वो भी मुझसे थोड़ा हीं सही पर प्यार ज़रूर करती है | उसका मुझे देख कर शर्मा जाना इस बात का प्रतिक था | बहुत कोशिश कि मन उसकी तरफ से हट जाए पर जितना मैं उसे भूलने कि कोशिश करता उतना हीं याद आती |वक्त हर दर्द कि दवा है | सोंचा एक दो महीने में आकर्षण अपने आप कम जो जाएगा और मैं दर्द के सागर से उबर जाऊँगा पर ऐसा नहीं हुआ | रोज पायल और शांतनु को हंसते बोलते देखना और दिल को नया घाव लगाना जैसे आदत सी बन गई थी | २- ३ महीनें और निकल गए पर फिर भी जब मैं मोहपाश से न निकल सका तब आखिरकार इ मेल लिखने कि ठानी |
बात करने की हिम्मत तो थी सो बस इ मेल का हीं सहारा था | मैंने एक नयी आईडी बानायी और एक अच्छा सा मेल लिख कर भेज दिया कि मैं उससे दोस्ती करना चाहता हूँ |सोचा अगर कुछ बात हो गयी तो कह दूंगा कि ये इ मेल मेरा नहीं है किसी ने तुम्हारे साथ मज़ाक किया है |इ मेल भेजते वक्त बार बार रमेश की बातें याद आ रही थी पर मन में आया कि अगर किसी रिश्ते में साधारण मेल या स्क्रैप पर टूटने की नौबत आ जाये तो ऐसे रिश्ते को टूट हीं जाना चाहिए |
हर घंटे इ मेल खोल के देखता कि जवाब आया कि नहीं पर एक सप्ताह निकल गया कोई जवाब नहीं आया |उसकी खामोशी सब ब्यान कर रही थी और मैं था कि सब कुछ जानकर भी मानने को तैया नहीं था | एक दिन मैं जिद्द पे अड़ गया कि आज जवाब लेकर हीं रहूँगा |उसे बहुत देर तक घूरता रहा और ऐसा हीं शाम को आखिर जवाब आ हीं गया | "हमें आपकी दोस्ती मंजूर है पर कृपया करके उससे ज्यादा कुछ मत समझियेगा |" मेल पढ़ के बड़ी प्रसन्नता हुई |महीनो के सींचने के बाद बाग़ में फुल जो आने लगे थे |यह छोटा सा मेल अपने आप में बड़े मायने समेटे हुए था | मैंने आज तक उससे एक बार भी बात नहीं की थी | मेरा मौन व्रत जैसे वज्र सा हो गया था जिसे तोड़ना मुझे असंभव जान पड़ता था |
मैं रोज उसके सीट के पास जाता पर उससे बात करने के बजाये अगल बगल के लोंगो से बात करके लौट आता |लौट कर स्वयं को कोसता भी पर अगले दिन फिर वही करता | ऐसे हीं एक महीना निकल गया |शनिवार का दिन था |मैं कमरे में बैठा दीवारों और छत को घंटो निहारता हुआ सोच में डूबा था | मैं कितना कायर हूँ | एक लड़की तक से बात नहीं कर सकता जबकि उसने हामी भी भर दी है | मैंने दृढ प्रतिज्ञा ली कि सोमवार को हर हालत में उससे बात करूँगा और अपने बर्ताव के लिए मारी भी मांगूंगा |
सोमवार को ऑफिस नहीं आई | मंगलवार का दिन भी खाली गया |पूरा सप्ताह निकल गया पर उसका कोई खबर नहीं थी | मुझे अपने आप को साबित करना था कि मैं उतना भी कायर नहीं हूँ | जब वह अगले सप्ताह भी नहीं आई तो मैंने मेल लिखा |"
पायल ,
मैं आशंकित हूँ कि कहीं तुम्हारी तबियत तो खराब नहीं हो गयी है |पिछले १५ दिनों से तुम ऑफिस जो नहीं आई हो | तुम कहाँ हो ? तुमसे बात करने का बड़ा मन कर रहा है | तुम सोचोगी कि मैं भी अजीब हूँ जब तुम सामने थी तो कभी बात नहीं किया और अब बात करने के लिए बेताब हो रहा हूँ |पायल मैं मजबूर था | मैं डरता था कि मुझे बात करते देख शांतनु शायद तुमसे लड़ने ना लगे | मैं तुम्हे हमेशा खुश देखना चाहता हूँ पर मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम्हारे चेहरे पर हमेशा एक हलकी सी वेदना छाई रहती है |पता नहीं ये सच है गलत | शायद मुझे यह पूछने का कोई हक़ नहीं फिर भी अगर तुम बता सकती तो मन को शांति मिलती |जल्दी आने की कोशिश करना |मुझे बेसब्री से तुम्हारा इंतज़ार रहेगा |
उसने जवाब में लिखा
रितेश मैंने कंपनी छोड़ दी है और अपने घर कोलकाता चली आई हूँ | शांतनु ने मेरा जीना हराम कर दिया था | बात इतनी बढ़ गयी कि पिताजी तक जा पहुंची और वे मुझे गुडगाँव आकर ले गए | मैं अब कभी नहीं आ सकती |
तुम्हारी दोस्त
पायल
यह पढ़ के सदमा सा लगा | मैं समझता था कि पायल और शांतनु में गहरा प्यार है और दोनों जल्द हीं शादी करने वाले है पर यहाँ तो बात कुछ और हीं थी | काश मैं उससे पहले बात कर लेता तो उसे जाने से रोक पाता | उसका कैरियर बर्बाद होने से रोक लेता | मेरा मन मुझे धिक्कारने लगा | छुट्टी हो चुकी थी | मैं भारी क़दमों से राह में पड़े पत्थरों को ठोकर मारता हुआ कमरे की तरफ बढ़ने लगा | रास्ते में इतनी धुल थी की जैसे में उसमे खो गया था | एक पत्थर से चोट लग गयी और अंगूठे से खून बहने लगा | अच्छा हुआ मुझे और भी बड़ी सजा मिलनी चाहिए |
मैं और जोर जोर से ठोकरें मारने लगा | खून से बने पग चिह्न सड़क पर नहीं मेरे दिल पर पड़ रहे थे | कई इ मेल लिखे मोबाइल नो ० माँगा पर कोई जवाब नहीं आया | मेरा इंतज़ार एक कभी न ख़त्म होने वाला इंतज़ार बन के रह गया था | इश्वर से बस यही प्रार्थना करता कि कोई भी उसकी जिन्दगी में आए पर मेरे जैसा कोई ना आये |पता नहीं वह किस हाल में होगी | घरवाले अब उसे शायद कभी नौकरी करने नहीं देंगे| पास होकर भी मैं उसके इतने पास नहीं था जितना कि अब हो गया हूँ | उसकी सिसकियों को सुन सकता हूँ | उसके घुटन को महसूस करके रह रह के गला रुंध जाता है |
Hindi Love Stories - Payal se to ghayal hona tha by Nishikant Tiwari
कविता की कहानी (Hindi Love Stories)
नभ को काले बादलों ने घेर लिया था | दिन भर की गर्मी के बाद मौसम थोड़ा ठंडा हो गया था | मैं हमेशा की तरह अपने छत पर संध्या भ्रमण कर रहा था | एकाएक तेज़ हवाएं चलने लगीं | पेडो से पत्ते टूट कर आकाश की तरफ चले जा रहे थे | मैं खुद भी को एक पत्ता समझ कर उड़ने जैसा आनंद ले रहा था | तेज़ हवाएं अब आंधी का रूप लें चुकी थी | अचानक कविता दौड़ते हुए अपने छत पर आई और तार से कपड़े उतरने लगी | यह उसका रोज़ का काम था | लेकिन ये क्या ? आज वो गई नहीं बल्कि छत के किनारे आकर मुझे घूरने लगी | कुछ कहना चाहती थी पर चुप हीं रही |मेरा तो आज जम कर भींगने का मन कर रहा था और अब तो वर्षा भी तेज होने लगी थी |मैं मयूर सा झूमता पानी की बूंदों से खेलने लगा | कविता अभी तक गयी नहीं थी |सारे सूखे कपड़े गिले हो चुके थे | वो अब भी वहीँ खड़े निहार रही थी मुझे | यहाँ जल वर्षा के साथ साथ शबनम की भी बारिश हो रही थी | दोनों को एक साथ सहन करना मेरे बस में नहीं था | दिल में एक तूफ़ान सा उठने लगा | मैं नीचे उतर आया |
कई बार उसके हाव भाव से लगा कि शायद वह मुझे चाहती है और इशारे से अपने दिल की बात कह रही है पर मैं सदेव इसे अपना भ्रम समझ कर नकार देता | यह पहली बार था जब उसने खुल के अपने प्यार का इज़हार किया था | आग तो इधर भी लगी थी | दिन भर उसके सपने देखता रहता | रात रात भर जाग कर उसके बारे में सोचता रहता पर इस तरह अपनी चाहत को दिखना मुझे फूहड़पन लगता |इसलिए कभी भी मैंने अपनी चाहत को होंठों क्या आँखों तक भी नहीं आने दिया |मैं जब भी छत पर टहल रहा होता वो किसी ना किसी बहाने से अपने छत पर चली आती |वो बिना धुप के भी मिर्चियाँ सुखाती ,बेसमय अपने चाचा के लड़के सोनू को खेलाने ऊपर चढ़ जाती | कभी किसी सखी से छत के कोने में जाकर मेरी तरफ देख कर कुछ बातें करती | उसके आते हीं मेरा व्यवहार स्वतः बनावटी हो जाता | दोस्तों से जोर जोर से बातें करता ,ठहाके लगाता | छोटे बच्चो पर रॉब झाड़ता |किसी ना किसी तरह उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करता और जब वो मेरी तरफ देखने लगती तो मैं कहीं और देखने लगता |
उस शबनम की वर्षा के बाद भी मेरे भीतर कोई बदलाव नहीं आया था | उसके खुल के इज़हार करने पर भी मैं भाव नहीं दे रहा था | मेरी बेरुखी से वो बहुत आहत हुई | हमेशा दिखाने की कोशिश करने लगी कि अब उसे भी मुझमें कोई रूचि नहीं है पर जितना हीं नफ़रत करने का ढोंग करती उतनी हीं उसकी चाहत साफ़ झलकती |
करीब ४-५ महीने ऐसे हीं निकल गए | एक दिन कविता के घर सभी औरतें गाने बजाने के लिए जमा हुईं | सारे बच्चे मेरे कमरे में इकठ्ठा हुए थे | कविता भी थी | हम पलंग पे एक गोला बना कर बैठ गए |कविता मेरे बगल में बैठी | खेल शुरू हो गया | छोटे बच्चो के अजीब खेल होते है | मेरा बिलकुल मन नहीं लग रहा था पर मज़बूरी में खेलना पड़ रहा था | आखिर उन्हें शांत रखने की जिम्मेदारी मेरे और कविता पर जो थी |ठण्ड हलकी थी |सब एक हीं रजाई पैर तक ओढे बैठे थे | खेल खेल में हीं रजाई के भीतर कविता ने अपना हाथ मेरे हाथ पर रख दिया |
मैंने हाथ हटाने का प्रयास किया तो उसने जोर से पकड़ लिया | खिंचा तानी करने में समझदारी नहीं थी |मैं सहम गया कि अगर गलती से भी इसकी भनक इन शैतानो को लग गई तो पुरे मोहल्ले में नगाड़ा बजा देंगे |आज के बच्चे जितने छोटे दीखते है उतने होते नहीं है |दसवीं कक्षा में भी जाकर जिन विषयों का मैंने प्रथम अध्याय हीं पढ़ा था ,इन शैतानो ने चौथी पांचवी में हीं पूरी पुस्तक पढ़ डाली थी | एक डेढ़ घंटे के बाद जब खेल समाप्त हुआ तब जा के जान में जान आई |वो मुसीबत तो गयी पर एक और मुसीबत छोड़ गई |रजाई के नीचे एक पर्चा पड़ा था | मैंने झट से जेब में डाल लिया |
रात को जब सब सो गए तब मैंने वो पर्चा निकाला |
कुशल ,
तुम तो जानते हीं को मैं तुम्हे कितना प्यार करती हूँ | तुम्हारे सामने आते हीं मेरी धड़कने बढ़ जाती हैं | तुम सब जानकार भी क्यों अनजान बने रहते हो ? मैं लाख तुम्हे दिल से निकालने की कोशिश करती हूँ फिर भी बार बार मेरा मन तुम्हारी तरफ खिंच जाता है |
शायद मैं तुम्हारे काबिल नहीं इसीलिए तुम हमेशा रुखा रुखा बर्ताव करते हो |ठीक है तुम्हारी यही मर्ज़ी तो यही सही | अब ये तड़पन हीं मेरा नसीब है |
तुम्हारी
तुम जानते हो |
मैंने उसके ख़त को सैकड़ो बार पढ़ा और हर बार मुझे कोई घटना याद आ जाती कि कैसे प्यार से मेरी तरफ देखी थी या बात करने की कोशिश की थी और हर बार उसे मायूसी झेलनी पड़ी थी |एक दिन उसके पिताजी अपने भाई के साथ काम से बहार गए हुए थे | कविता की माँ ने बड़े संकोच से आकर कहा " देखो न कविता की आज अंतिम परीक्षा है और ऑटो की हड़ताल हो गयी है | क्या तुम उसे कॉलेज छोड़ दोगे ?" "हाँ हाँ क्यों नहीं |चाचीजी आप चिंता मत कीजिये |मैं उसे ले भी आऊंगा | मैंने अपनी मोटरसाईकिल निकाली और उसे लेकर कॉलेज के तरफ चल पड़ा |
पुरे रास्ते हम दोनों में से किसी ने मुह नहीं खोला | वह थोड़ी परेशान लग रही थी | शायद परीक्षा की वजह से | उसे कॉलेज उतार कर गेट के बाहर हीं प्रतीक्षा करने लगा |थोड़ी देर बाद एक सिपाही चीखता हुआ मेरी तरफ दौड़ा |"ऐ लड़के तुम गिर्ल्स कॉलेज के सामने क्या कर रहे हो ?चलो भागो यहाँ से नहीं तो ये डंडा देखत हो | इसने बड़ों बड़ों के आशकी के भूत उतारे हैं | "मैं यहाँ किसी को परीक्षा दिलाने आया हूँ |" झूट मत बोलो |नहीं मैं सच कह रहा हूँ | नाम बताओ उसका | मैंने अकड़ के कहा कविता | रोल नंबर ?"७८६८९०" |ठीक है साइड में खड़े रहो |
तीन घंटे बाद जब वो परीक्षा देकर बाहर निकली उसका चेहरा गुलाब सा खिला हुआ था | आज मैंने ध्यान दिया कि कितनी सुंदर है वो | उसकी आँखें ,उसके गाल , उसके होंठ रेशमी जुल्फे सब से जैसे सौंदर्य टपक रहा हो | शायद पेपर अच्छा हुआ था पर पास आते हीं फिर से शांत हो गई | मैंने भी चुपचाप बाइक स्टार्ट कि और उसे बैठाकर चल दिया | आधे रास्ते में अचानक एक साइकल वाला सामने आ गया | उसे बचाने के चक्कर में मुझे बाए मोड़ना पड़ गया |वो रास्ता कुंवर सिंह पार्क को जाता था | पुरे शहर में दिवानों के मिलने की एक मात्र सुरक्षित जगह थी | मैंने बाइक वापस नहीं ली ,चलता रहा | पार्क पहुँचते ही जोर से ब्रेक मारी | अपने दोस्तों को कई बार ऐसा करते देखा था जो मेरे से भी अपने आप ब्रेक लग गई थी | वो गिरते गिरते बची | बाइक साइड लगा कर हम पार्क में घुस गए | वो अब भी शांत थी | मैंने चुप्पी तोड़ी " आज इतनी शांत क्यों हो ? कुछ बोलती क्यों नहीं ?"
वो फिर भी चुप रही |
कविता तुम जानती नहीं हो | जैसा मैं दिखाने की कोशिश करता हूँ वैसा हूँ नहीं | भले मैं तुमसे बात ना करूँ | तुम्हे देख कर नज़रंदाज़ करूँ पर सच कहूँ तो तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो | जाने कितनी रातें तुम्हारे बारे में सोचते हुए काटीं है | तुम्हारे सपने देखता हूँ ,तुमसे अकेले में बात किया करता हूँ पर तुम्हारे सामने आते हीं जाने क्या हो जाता है | तुम्हे ये क्यों लगता है कि तुम मेरे काबिल नहीं हो | तुम इतनी सुंदर इतनी अच्छी हो बल्कि मैं हीं तुम्हारे लायक नहीं हूँ | ""नहीं नहीं ऐसा मत कहो "| आखिरकार कविता का मौन टूटा | इतना कह के वो फिर चुप हो गई | उसे अब भी मुझ पर भरोसा नहीं था | मैंने सबके सामने उसका हाथ थाम लिया | उसने छुडाने की कोशिश की तो मैंने पकड़ मजबूत कर ली | सभी हमारी तरफ देखने लगे | भीड़ से अलग गुलमोहर के पेड़ के नीचे एक बेंच था | हम वहीँ जाकर बैठ गए | उसके नैनों में एक नई चमक और कपोलों पर हया छाने लगी | आज पहली बार मैंने उसे शर्माते हुए देखा था | उसकी चन्दन काया से सर्प की भाँती लिपट जाने का मन कर रहा था |
उसका यौवन रह रह के मुझसे शरारत कर रहा था पर मैं विवश था | बातों का दौर चलता रहा | उसने जमकर मुझ पर भड़ास निकाली फिर शुरू हुआ प्यार भरी बातों का सिलसिला | ऐसी मदहोशी छाई कि घंटो बीत गए पता हीं नहीं चला | अँधेरा छाने पर गार्ड ने आकर सिटी बजाई | हम घबराए से बाइक की तरफ दौड़े | घर जाकर क्या बहाना बनाएंगे कुछ समझ नहीं आ रहा था | घर पहुँचते हीं कविता की माँ मिल गयीं | बड़ी घबराई सी लग रहीं थी | "सब ठीक तो है ? इतनी देर कहाँ लगा दी ? मेरा कलेजा पानी पानी हुआ जा रहा था |" कविता कुछ बोलना चाही पर मैं बीच में हीं बात काटते हुए बोला "ऑटो यूनियन वालों ने रास्ता जाम कर रखा था | किसी को जाने हीं नहीं दे रहे थे | हड़ताल जब ख़त्म हुई तब जाकर रास्ता खुला और हम आ सके |"ओहो बेटा मेरे कारण तुम्हे कितनी तकलीफ उठानी पड़ी " |" क्या कह रहीं है चाचीजी ,अब मुझे शर्मिंदा मत कीजिये |
हमारी प्रेम कहानी जाने कब से धीमे धीमे सुलग रही थी पर उसे आग का रूप दिया उस पार्क वाली मुलाक़ात ने | अब हम अक्सर कभी पार्क तो कभी सिनेमा जाने लगे | खूब बातें होती | एक दुसरे को छेड़ते, शरारतें करते | हमारे बीच इतनी निकटता आ गई कि एक दुसरे को कुछ कहने के लिए शब्दों का सहारा नहीं लेना पड़ता | आँखों आँखों में हीं आधे से ज्यादा बातें हो जातीं |किसी दिन अगर लड़ाई हो जाती तो अगले दिन खुद हीं मान जाते |कभी एक दुसरे को मनाने की ज़रूरत नहीं पड़ती |कितने खुश थे हम |
उसके पिताजी अक्सर बीमार रहते पर थोड़े दिनों से जब उनका स्वास्थ अधिक खराब रहने लगा तो मैं हीं कॉलेज जाते वक्त कविता को लेते जाता और शाम को आते समय लेते आता | सब कुछ अच्छा चल रहा था कि एक दिन अचानक उसके पिताजी की हालत ज्यादा खराब हो गई | हम उन्हें अस्पताल लेकर भागे | करीब १० दिनों के चौबीसों घंटे इलाज के बावजूद भी उनका निधन हो गया | अगले दो महीने हम कहीं घुमने नहीं गए | उसके पिताजी सरकारी कर्मचारी थे और अभी सेवा निवृत नहीं हुए थे सो अनुकम्पा के आधार पर कविता को चपरासी की नौकरी मिल गई | ज्वाइन करने के लिए उसे रामनगर जाना था | मैंने उसे पार्क में बुलाया और समझाया "क्या जरुरत है तुम्हे ये चपरासी की नौकरी करने की |पहले अपनी पढ़ाई पूरी कर लो फिर नौकरी के बारे में सोचना | क्या ये अच्छा लगेगा कि तुम प्लेट - बर्तन उठाती फिरो और वहां के बाबु किरानी सब तुम्हें गन्दी नज़र से देखते रहें ?" कुशल क्या तुम नहीं जानते कि कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता और ऐसे भी सरकारी नौकरी किस्मत वालों को भी जीवन में बस एक बार ही मिलती है " |तुम चाहे कुछ भी कहो पर मैं ये नौकरी करुँगी |" कविता किताबी बातें और असल जिंदगी में फर्क होता है | मैंने मानता हूँ कि कोई काम छोटा बड़ा नहीं होता फिर भी अगर तुम ये नौकरी करोगी तो मुझे बहुत बुरा लगेगा | तुम्हारी ऐसी कोई मज़बूरी नहीं है कि तुम ये नौकरी करो |" हमारे बीच घंटों बहस चलती रही पर आखिरकार उसके जिद के आगे मैंने हार मान ली | मुझे लगता था कि वो मेरी हर बात मानती है और मेरी ख़ुशी हीं उसकी ख़ुशी है पर ऐसा नहीं था |
अगले महीने वो अपनी माँ को लेकर रामनगर चली गई | पहले तो हर रोज़ मुझे फोन करती | दिन भर क्या हुआ हर एक बात बताती फिर एक दिन बीच करके फोन करने लगी | थोड़े समय के बाद सप्ताह पंद्रह दिन में २-४ ही बात हो पाती |
५ महीने बाद परीक्षा देने वापस पटना आई | परीक्षा ख़त्म होने के बाद हीं हम मिल पाए |काफी दिनों के बाद मिली थी | बड़ी खुश थी | इतने दिनों में बातों का खजाना सा जमा हो गया था उसके पास | वो लगातार बोलती रही ,मैं चुप चाप सुनता रहा | बार बार जाने क्यों मन में आता कि वह पहले जैसी नहीं रही | उसके कपोलो पर वो हया की लाली नहीं थी ,न आँखों में वो चमक और नाहीं उसके बाल पहले जैसे रेशमी मालूम पड़ते थे | रह रह के ख्याल आता कि एक चपरासन के साथ बैठा हूँ | दिल को बहुत समझाया पर मन मानता हीं नहीं था | बातों ही बातों में उसने पूछा "शादी कब कर रहे हो मुझसे ? अपनी माँ को कब बताओगे ?" कविता समझ भी रही हो कि क्या बोल रही हो तुम ? मैं किस मुंह से तुम्हारी बात करुँ |
वो क्या बोलेंगी कि सारे जाहान में तुम एक चपरासन हीं पसंद आई | कविता : "उनके बोलने से क्या होता है ? तुम कह देना कि तुम मुझसे प्यार करते हो और शादी भी मुझी से करोगे | "नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता | अपने माँ - बाप की इज्जत मिटटी में नहीं मिला सकता | लोग तरह तरह की बातें करेंगे | वे कहीं मुंह दिखने तक के लायक नहीं रह जायेंगे | कविता तुमने मुझे इस काबिल भी नहीं छोड़ा कि सब के सामने तुम्हारा हाथ भी थाम सकूँ |
कविता की आँखों से बड़ी बड़ी बुँदे टपकने लगीं मानो उसकी बेगुनाही साबित करने के लिए अपनी कुर्बानी दिए जा रहीं हो | होठ थर्राने लगे | खुद को सँभालते हुए बोली " तुमने कभी मुझसे सच्चा प्यार किया हीं नहीं वरना आज तुम ये बात नहीं कहते | उस दिन पार्क में जब सबके सामने तुमने मेरा हाथ थमा था तो मुझे लगा कि तुम मुझे बेहद प्यार करते हो और इसके लिए पूरी दुनिया तक से लड़ सकते हो पर आज ये भ्रम टूट गया | चलो अच्छा हुआ लेकिन ......| वो खुद को संभाल नहीं पायी और दौड़ते हुए पार्क से बाहर निकल गई |
Hindi Love Stories - Kavita Ki Kahani by Nishikant Tiwari
Saturday, October 8, 2011
आवाज़ मैं ना दूंगा (Hindi Love Stories)
स्नेहा, मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ !
दोपहर का भोजन करके अभी बैठा हीं था कि नितिन का फोन आया | नितिन "हाय
निशि कैसे हो ? बहुत दिनों से तुमसे बात नहीं हुई | सोचा क्यों न
तुम्हारा हाल चाल ले लूँ |" "यह तो तुमने बहुत अच्छा किया नीतू ,मैं खुद
हीं बहुत दिनों से तुमसे बात करने की सोच रहा था |" नितिन मेरे सबसे
पुरानेदोस्तों
में से एक था | मेरे स्कूल का दोस्त | प्यार से मैं उसे नीतू बुलाता था |
नीतू हमारी हीं कक्षा की उस लड़की का नाम था जिसने पहली बार मेरे मासूम
हृदय का
हरण किया था | नितिन को पता था कि मैं उसे नीतू क्यों कहता हूँ पर उसने
कभी ऐतराज नहीं किया | उसे भी मालुम था कि इस शब्द से मुझे कितना लगाव था
| क्या हुआ जो नीतू से कभी कुछ कह नहीं पाया , कम से कम उसके नाम को
जुबान पे ला के थोड़े देर के लिए हीं सही उन पुराणी यादों में खो तो सकता
हूँ | नितिन -"यार बहुत दिन हुए तुमसे मिले हुए |" "आज्ञा कीजिये
नीतूजी ,कहिये तो आज हीं मिलने आ जाऊं !" "तो फिर आ जाओ ना ,तुमसे बहुत
सारी बातें करनी है | मैं बोला -"ठीक है मैं शाम को ओफीस के बाद तुम्हारे
यहाँ आता हूँ | चलो फिर शाम को मिलते है |"
मैंने ट्रांसपोर्ट अधिकारी से पांडव नगर जाने वाली गाड़ी के बारे में पूछा
तो उसने ५-६ लोगो के नाम और मोबाइल नंबर दिए और कहा कि इनमे से किसी से
भी बात
करके उनके साथ चला जाऊं | इन ५-६ लोगों में से एक नाम था जो मुझे पसंद
आया स्नेहा | आप समझ हीं गए होंगे क्यों !! मैं उसके पास जाकर बोला
-"माफ़ कीजियेगा स्नेहाजी क्या आपके कैब में जगह होगी मुझे पांडव नगर तक
जाना है |" "हाँ क्यों नहीं पर आइ एम सॉरी मैं आपको जानती नहीं |" मेरा
नाम निशिकांत है, मैं रेलवे प्रोजेक्ट वाली टीम में काम करता हूँ |""ठीक
है मैं शाम को जाने वक्त आपको बुला लुंगी ,आप अपना नंबर देते जाइए |"
शाम को स्नेह मुझे लेने आई
| कैब के तरफ बढ़ते हुए वो बहुत अफ़सोस जता रही थी की मुझे उसका नाम मालुम
है पर उसे मेरा नहीं |स्नेहा --"पहले कंपनी में ५०-१०० लोग थे सो सभी एक
दुसरे को जानते थे पर अब इतने ज्यादा हो गए है कि सबको जान पाना मुस्किल
है पर आप मुझे कैसे जानते है ? "अरे आपको कौन नहीं जानता |" स्नेहा
-"क्यों भला "| " अच्छा तो आप मेरे मुंह से अपनी तारीफ़ सुनना चाहती है
क्यों ?" वो थोड़ा शर्मा गई |"और रही बात मुझे जानने कि तो इसमें इतना
अफ़सोस जताने की कोई बात नहीं |आप तो पहले मुझसे कभी नहीं मिली है यहाँ तो
जब मैं अपनी टीम में आये एक नए बन्दे को सबसे मिलवाने गया तो एक लड़की
मुझसे हाथ मिलकर बोली कि कंपनी में आपका स्वागत है |वो लड़की कुछ दिन पहले
हीं मेरे साथ ट्रेनिंग कर चुकी थी | इसपर वो हंस कर बोली पर मैं ऐसी नहीं
हूँ | एक बार जिससे मिल लेती हूँ उसे कभी नहीं भूलती | बातें करते हुए हम
कैब में समा गए | मुझसे वो काफी प्रभावित थी | स्नेहा दूध की तरह गोरी तो
नहीं थी चहरे पर हल्का सा सावालापन था पर थी गजब की मोहिनी | सबसे ज्यादा
कमाल के थे उसके नयन, इतने चंचल , इतने चमकीले ,उसके साथ साथ उसके नयन भी
बात करते मालुम पड़ते |उनमें वैसी हीं उत्सुकता और जिज्ञासा थी जैसे
खिड़की पर खड़े सड़क को निहार रहे किसी बच्चे के चेहरे पर होती है | मैंने
उसे बताया कि मुझे मदर डेरी के पास उतरना है |बेचारे वाहन चालक तो फूटी
किस्मत लेकर हीं पैदा होते है | हर लड़की उन्हें भैया कह के बुलाती है |
यहाँ भी बात कुछ अलग नहीं थी | बोली भैया इन्हें मदर डेयरी पर उतार
दीजिएगा | वो थोड़ी थोड़ी देर पर भैया कह के पुकारती रही और हर बार भैया
वो भैया शब्द सुनकर खीजता रहा | मेरे से वो ख़ास कर नाराज़ था क्योकि मेरे
कारण हीं उसे इतनी बार ये सब्द सुनना पड़ा |
उसका अपनापन देखकर मैं दंग था | किसी ऐसे व्यक्ति जिससे वो पहली बार मिली
हो इतना अपनापन कैसे दिखा सकती है ! उसका बात-व्यवहार मेरे दिल को छू
गया | सामान्यतः सुन्दर लडकियां गुरुर के मत में चूर रहती हैं पर ये तो
गंगा की तरह शांत और शीतल थी जैसे उसे अपने विशालता का पता हीं ना हो |
पहली बार में हीं किसी से इतना प्रभावित मैं आज तक नहीं हुआ था | इतनी
अच्छी लड़की से मेल-जोल ज़रूर बढ़ाऊंगा | ऑफिस में कहीं भी दिखेगी तो कम
से कम हाय जरुर कहूँगा | कुछ इसी तरह के इरादों के साथ मैं कैब से उतरा
और नितिन के घर के तरफ बढ़ चला | मेरा खिला चेहरा देखकर नितिन खुश हो गया
| उसके लगा की मैं उसका एक मात्र ऐसा दोस्त हूँ जिसे उससे मिलने पर इतनी
ख़ुशी होती है |
अगले दिन मैं स्नेहा से बात करने के इरादे से उस पंक्ति में गया जहां वो
बैठती थी ,उसने मुझे आते हुए देखा पर चुप चाप अपना काम करती रही | हाँ
थोड़ा सजग जरुर हो गई पर पास पहुचते हीं संकोच के मारे उससे बात ना करके
विनय से बात करने लगा | विनिय मेरे एक दोस्त का दोस्त था और वह कुछ दिन
पहले ही कंपनी में आया था | स्नेहा की सजगता में एक इंतज़ार छुपा रहा |
उसे लगा कि शायद विनय से बात करने के बाद मैं उससे बात करूं पर ऐसा कुछ
भी नहीं हुआ |
मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि मैं उससे बिना बात किये लौट
आया | दिल को समझाया फुसलाया और अगले दिन फिर गया | अब आपको क्या बताएं
अगले दिन भी मैंने वैसे ही किया | मैं खुद अपने हीं घाव पे नश्तर पर
नश्तर चला कर दुखी हो रहा था | गुस्सा केवल इस बात पर नहीं था कि मैं एक
लड़की से बात नहीं कर पा रहा हूँ या वो मेरे बारे में क्या सोचेगी बल्कि
इस बात का कि मैं कभी सुधर नहीं सकता | जब इंसान को यह लगता है कि वो कोई
काम नहीं कर सकता तो उसके अहम् को चोट पहुँचती है और उससे उत्पन्न होता
है दुःख और निराशा | मैं भी किसी से अलग नहीं हूँ लेकिन मैंने जिंदगी
में कभी जल्दी हार मानना नहीं सीखा है | खुद को फिर से तैयार किया उसके
पास तब गया जब विनय अपनी सीट पर नहीं था | अब मेरे पास बचने का कोई बहाना
नहीं था |
मैंने उससे बड़े प्यार से बात की और उसने उतने ही प्यार से मेरे सवालों
का जवाब हीं नहीं दिया और भी ढेर सारीं बातें कीं | मैं अक्सर(लगभग रोज़)
उसके सीट पर जाता और दो चार बातें करता | वह कभी भी दूर से देख कर न
हंसती ना हीं अभिवादन करती पास करने का इंतज़ार करती | धीरे धीरे उसका
रूप लावण्य मुझे अपने बस में करने लगा | उसे छुप छुप कर देखना मेरी आदत
सी बन गई | वह भी इस बात से अनजान नहीं थी | मैंने उसे ऑरकुट पर धुंध
निकाला और उसकी खूबसूरती पर दो चार पंक्तियाँ भी लिख दीं |
उसकी तारीफ़ लिखने के बाद उसके सामने जाने में बड़ा संकोच हो रहा था |
संकोच के मारे कई दिन से उसके सामने जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी |
आखिरकार मैंने फिर नितिन की घर जाने कि सोची ताकि कैब में हिम्मत जुटाकर
थोडा बहुत बात कर सकूँ | कैब में साथ बैठे भी पर मैंने कोई बात नहीं की |
नितिन के रूम पर रात भर नींद नहीं आई | अपने व्यवहार को याद करके खुद को
कोसता रहा | अगले दिन ऑफिस आते वक्त उसने चुइंग गम दिया पर मैंने लेने से
मना कर दिया | मैं अभी भी चुप बैठा था | अन्दर से आवाज़ आती रही |"अबे
कुछ बोलता क्यों नहीं ?" धीरे धीरे ये आवाज़ तेज़ होने लगी | अब मेरे लिए
चुप रहना मुस्किल हो गया था | मैं अगर अब भी कुछ नहीं बोलता तो अन्दर की
आवाज़ खुद ब खुद बहार आकर बोलने लगती | सो मैंने बात की और उसने हमेशा की
तरह प्यार से मेरे हर बात का जवाब दिया |
इसके बाद मेरी झिझक खुल गई | मैं अब बड़ी सहजता से उससे बात करने लगा था
| वो भी अब सीट में छुपे रहकर मेरे पास आने का इंतज़ार नहीं करती बल्कि
दूर से देखते हीं अभिवादन करती | मेरे जीवन में एक नई स्फूर्ति आ गई थी |
प्यार का रोमांच मुझे जिंदगी के नए मायने समझा रहा था | अब ऑफिस जाना बोझ
नहीं लगता | रोज़ मर्रा की घिसी पिटी जिंदगी में एक हलचल सी होने लगी
थी जिसकी लहरों पर सवार होकर मैं उस किनारे तक पहुँचने की कोशिश करने लगा
जहाँ जिंदगी के कड़ी धुप में आराम करने के लिए जुल्फों की घनी छाया नसीब
होती है जहाँ किसी की हंसी से दिन निकलता है ,उसके आखें मुंदने से रात
होती है |जहां सारे जहाँ का सौंदर्य किसी के चेहरे में दिखने लगता है |
जहां प्यार हीं बादल बनकर बरसता है और प्यार हीं ठंडी हवाएं बनकर दिल को
सहलातीं है | एक ऐसा जहां ,जहाँ जीने लिए बस प्यार की जरुरत होती है ,बस
प्यार की ! वलेंटाइन दिवस आने वाला था | मन हीं मन पूरी तैयारी कर ली
थी कि इस दिन को मैं ख़ास बनाऊंगा अपने प्यार का इजहार करके | वलेंटाइन
दिवस शनिवार को पड़ने के कारण ऑफिस बंद था |
सोचा फोन पे दिन का हाल ब्यान कर दूँ पर हिमात जवाब दे गई | सो उसे प्यार
भरा एक एस ऍम एस भेजा जो इशारे में मेरे दिल की बेकरारी कह रहा था |
सोमवार को जब ऑफिस पहुंचा तो फिर वहीँ संकोच मुझे उससे नज़ारे नहीं मिलाने
दे रहा था | समझ में नहीं आ रहा था कि बार बार अड़चन बन कर आ रहे इस
संकोच की बिमारी का क्या करूँ ? खुद को समझाऊं , सजा दूँ आखिर करूँ क्या
? खैर तीन-चार दिन के बाद जब मैं उससे बात कि तो उसमे पहले जैसी आत्मीयता
नहीं दिखी | वो पहले की तरह उत्सुकता से मेरी बातें सुनाने के बजाय जल्दी
से वार्तालाप खत्म करने की कोशिश करती दिखी | जब कई बार ऐसा हुआ तो दिल
बैठ गया | मुझे लगा कि मैंने एस एम् एस भेज कर बहुत बड़ी गलती कर दी |
पहले कम से कम अच्छी दोस्त तो थी पर अब शायद वो भी ना रहे |
फिर दिल में ख्याल आया कि मैं हीं क्यों उसके पीछे पीछे घूमूं | वो तो
कभी मेरे सीट पर नहीं आती है |मैं हीं क्यों रोज़ रोज़ उससे मिलने जाता
रहता हूँ | जब मर्जी हुई हंस के बात कर लिया मर्जी ना हुई तो नाराज़ हो
गई | यह भी कोई बात हुई !l इंसान खुद को फुसलाना बड़ी अच्छी तरह जानता
है | सोचा हो सकता है किसी और बात से परेशान हो लेकिन जब मैंने देखा कि
ऑरकुट पर मेरे द्वारा लिखी हुई तारीफ़ भी उसने हटा दी है तो यकीं हो गया
कि कुछ गड़बड़ है | अब तो वो मुझसे नज़रें तक मिलाने से कतरा रही थी |
स्नेहा पर रह रह के गुस्सा आता -एक एस एम् एस हीं तो भेजा है ऐसा कौन सा
गुनाह कर दिया है जो वो इस तरह बर्ताव कर रही है | विश्वाश नहीं हो रहा
था स्नेहा जिसे मैं प्यार की गंगा समझ रहा था असल में गुलाब में छिपा एक
कांटा है | उसके मोहक अंदाज़ से हर कोई उसके पास खिंचा चला आता है पर पास
जाकर हीं उस कांटे की टीस महसूस होती है |
जब मुझसे न रहा गया तो उसके पास जाकर पूछा -"स्नेहा तुम मुझसे नाराज़
क्यों हो ?" स्नेहा -"निशि तुम ऐसा क्यों कह रहे हो ?" वो ऐसा दिखाने की
कोशिश कर रही थी कि जैसे कुछ हुआ हीं ना हो "| "तो तुमने मेरा ऑरकुट से
स्क्रैप क्यों हटा दिया ?" "वो मैंने नहीं मेरे पति ने हटाया है | वो
थोड़े वैसे हैं | उन्हें अच्छा नहीं लगता ये सब |मैं चौंका -"तुम्हारा
पति !!!!!!!!!!!" | स्नेहा - "हाँ " | "पर तुमने तो कभी बताया नहीं "|
"मुझे लगा तुम्हे मालुम होगा " |
मैं अब और वहां खड़ा नहीं रह सका | सारे सपने एक झटके में हीं टूट गए |
मैं जिस किनारे का सपना देख रहा था वहां तो पहले से हीं कोई घर बनाए हुए
बैठा था | मैंने उसे कितना गलत समझा ये सोच के ग्लानी हो रही है | अब समझ
में आया कि वो मुझसे नज़ारे क्यों नहीं मिला पा रही थी | उसके पति ने कोई
गलती नहीं की थी | उसके जगह कोई और होता तो यही करता या शायद इससे कुछ
ज्यादा हीं फिर भी वो शर्मिंदा थी | कितनी अच्छी है वो | अपना भारत देश
बदलने लगा है | किसी विवाहित भारतीय स्त्री का भी पुरुष मित्र हो सकता है
| स्नेहा -मैं तुम्हे पहले से भी अधिक प्यार करने लगा हूँ |
चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे फिर भी कभी अब नाम को तेरे आवाज़ मैं ना
दूंगा .... | आवाज़ मैं ना दूंगा |
Hindi Love Stories - Awaaz Main Na Dunga by Nishikant Tiwari
दोपहर का भोजन करके अभी बैठा हीं था कि नितिन का फोन आया | नितिन "हाय
निशि कैसे हो ? बहुत दिनों से तुमसे बात नहीं हुई | सोचा क्यों न
तुम्हारा हाल चाल ले लूँ |" "यह तो तुमने बहुत अच्छा किया नीतू ,मैं खुद
हीं बहुत दिनों से तुमसे बात करने की सोच रहा था |" नितिन मेरे सबसे
पुरानेदोस्तों
में से एक था | मेरे स्कूल का दोस्त | प्यार से मैं उसे नीतू बुलाता था |
नीतू हमारी हीं कक्षा की उस लड़की का नाम था जिसने पहली बार मेरे मासूम
हृदय का
हरण किया था | नितिन को पता था कि मैं उसे नीतू क्यों कहता हूँ पर उसने
कभी ऐतराज नहीं किया | उसे भी मालुम था कि इस शब्द से मुझे कितना लगाव था
| क्या हुआ जो नीतू से कभी कुछ कह नहीं पाया , कम से कम उसके नाम को
जुबान पे ला के थोड़े देर के लिए हीं सही उन पुराणी यादों में खो तो सकता
हूँ | नितिन -"यार बहुत दिन हुए तुमसे मिले हुए |" "आज्ञा कीजिये
नीतूजी ,कहिये तो आज हीं मिलने आ जाऊं !" "तो फिर आ जाओ ना ,तुमसे बहुत
सारी बातें करनी है | मैं बोला -"ठीक है मैं शाम को ओफीस के बाद तुम्हारे
यहाँ आता हूँ | चलो फिर शाम को मिलते है |"
मैंने ट्रांसपोर्ट अधिकारी से पांडव नगर जाने वाली गाड़ी के बारे में पूछा
तो उसने ५-६ लोगो के नाम और मोबाइल नंबर दिए और कहा कि इनमे से किसी से
भी बात
करके उनके साथ चला जाऊं | इन ५-६ लोगों में से एक नाम था जो मुझे पसंद
आया स्नेहा | आप समझ हीं गए होंगे क्यों !! मैं उसके पास जाकर बोला
-"माफ़ कीजियेगा स्नेहाजी क्या आपके कैब में जगह होगी मुझे पांडव नगर तक
जाना है |" "हाँ क्यों नहीं पर आइ एम सॉरी मैं आपको जानती नहीं |" मेरा
नाम निशिकांत है, मैं रेलवे प्रोजेक्ट वाली टीम में काम करता हूँ |""ठीक
है मैं शाम को जाने वक्त आपको बुला लुंगी ,आप अपना नंबर देते जाइए |"
शाम को स्नेह मुझे लेने आई
| कैब के तरफ बढ़ते हुए वो बहुत अफ़सोस जता रही थी की मुझे उसका नाम मालुम
है पर उसे मेरा नहीं |स्नेहा --"पहले कंपनी में ५०-१०० लोग थे सो सभी एक
दुसरे को जानते थे पर अब इतने ज्यादा हो गए है कि सबको जान पाना मुस्किल
है पर आप मुझे कैसे जानते है ? "अरे आपको कौन नहीं जानता |" स्नेहा
-"क्यों भला "| " अच्छा तो आप मेरे मुंह से अपनी तारीफ़ सुनना चाहती है
क्यों ?" वो थोड़ा शर्मा गई |"और रही बात मुझे जानने कि तो इसमें इतना
अफ़सोस जताने की कोई बात नहीं |आप तो पहले मुझसे कभी नहीं मिली है यहाँ तो
जब मैं अपनी टीम में आये एक नए बन्दे को सबसे मिलवाने गया तो एक लड़की
मुझसे हाथ मिलकर बोली कि कंपनी में आपका स्वागत है |वो लड़की कुछ दिन पहले
हीं मेरे साथ ट्रेनिंग कर चुकी थी | इसपर वो हंस कर बोली पर मैं ऐसी नहीं
हूँ | एक बार जिससे मिल लेती हूँ उसे कभी नहीं भूलती | बातें करते हुए हम
कैब में समा गए | मुझसे वो काफी प्रभावित थी | स्नेहा दूध की तरह गोरी तो
नहीं थी चहरे पर हल्का सा सावालापन था पर थी गजब की मोहिनी | सबसे ज्यादा
कमाल के थे उसके नयन, इतने चंचल , इतने चमकीले ,उसके साथ साथ उसके नयन भी
बात करते मालुम पड़ते |उनमें वैसी हीं उत्सुकता और जिज्ञासा थी जैसे
खिड़की पर खड़े सड़क को निहार रहे किसी बच्चे के चेहरे पर होती है | मैंने
उसे बताया कि मुझे मदर डेरी के पास उतरना है |बेचारे वाहन चालक तो फूटी
किस्मत लेकर हीं पैदा होते है | हर लड़की उन्हें भैया कह के बुलाती है |
यहाँ भी बात कुछ अलग नहीं थी | बोली भैया इन्हें मदर डेयरी पर उतार
दीजिएगा | वो थोड़ी थोड़ी देर पर भैया कह के पुकारती रही और हर बार भैया
वो भैया शब्द सुनकर खीजता रहा | मेरे से वो ख़ास कर नाराज़ था क्योकि मेरे
कारण हीं उसे इतनी बार ये सब्द सुनना पड़ा |
उसका अपनापन देखकर मैं दंग था | किसी ऐसे व्यक्ति जिससे वो पहली बार मिली
हो इतना अपनापन कैसे दिखा सकती है ! उसका बात-व्यवहार मेरे दिल को छू
गया | सामान्यतः सुन्दर लडकियां गुरुर के मत में चूर रहती हैं पर ये तो
गंगा की तरह शांत और शीतल थी जैसे उसे अपने विशालता का पता हीं ना हो |
पहली बार में हीं किसी से इतना प्रभावित मैं आज तक नहीं हुआ था | इतनी
अच्छी लड़की से मेल-जोल ज़रूर बढ़ाऊंगा | ऑफिस में कहीं भी दिखेगी तो कम
से कम हाय जरुर कहूँगा | कुछ इसी तरह के इरादों के साथ मैं कैब से उतरा
और नितिन के घर के तरफ बढ़ चला | मेरा खिला चेहरा देखकर नितिन खुश हो गया
| उसके लगा की मैं उसका एक मात्र ऐसा दोस्त हूँ जिसे उससे मिलने पर इतनी
ख़ुशी होती है |
अगले दिन मैं स्नेहा से बात करने के इरादे से उस पंक्ति में गया जहां वो
बैठती थी ,उसने मुझे आते हुए देखा पर चुप चाप अपना काम करती रही | हाँ
थोड़ा सजग जरुर हो गई पर पास पहुचते हीं संकोच के मारे उससे बात ना करके
विनय से बात करने लगा | विनिय मेरे एक दोस्त का दोस्त था और वह कुछ दिन
पहले ही कंपनी में आया था | स्नेहा की सजगता में एक इंतज़ार छुपा रहा |
उसे लगा कि शायद विनय से बात करने के बाद मैं उससे बात करूं पर ऐसा कुछ
भी नहीं हुआ |
मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आ रहा था क्योंकि मैं उससे बिना बात किये लौट
आया | दिल को समझाया फुसलाया और अगले दिन फिर गया | अब आपको क्या बताएं
अगले दिन भी मैंने वैसे ही किया | मैं खुद अपने हीं घाव पे नश्तर पर
नश्तर चला कर दुखी हो रहा था | गुस्सा केवल इस बात पर नहीं था कि मैं एक
लड़की से बात नहीं कर पा रहा हूँ या वो मेरे बारे में क्या सोचेगी बल्कि
इस बात का कि मैं कभी सुधर नहीं सकता | जब इंसान को यह लगता है कि वो कोई
काम नहीं कर सकता तो उसके अहम् को चोट पहुँचती है और उससे उत्पन्न होता
है दुःख और निराशा | मैं भी किसी से अलग नहीं हूँ लेकिन मैंने जिंदगी
में कभी जल्दी हार मानना नहीं सीखा है | खुद को फिर से तैयार किया उसके
पास तब गया जब विनय अपनी सीट पर नहीं था | अब मेरे पास बचने का कोई बहाना
नहीं था |
मैंने उससे बड़े प्यार से बात की और उसने उतने ही प्यार से मेरे सवालों
का जवाब हीं नहीं दिया और भी ढेर सारीं बातें कीं | मैं अक्सर(लगभग रोज़)
उसके सीट पर जाता और दो चार बातें करता | वह कभी भी दूर से देख कर न
हंसती ना हीं अभिवादन करती पास करने का इंतज़ार करती | धीरे धीरे उसका
रूप लावण्य मुझे अपने बस में करने लगा | उसे छुप छुप कर देखना मेरी आदत
सी बन गई | वह भी इस बात से अनजान नहीं थी | मैंने उसे ऑरकुट पर धुंध
निकाला और उसकी खूबसूरती पर दो चार पंक्तियाँ भी लिख दीं |
उसकी तारीफ़ लिखने के बाद उसके सामने जाने में बड़ा संकोच हो रहा था |
संकोच के मारे कई दिन से उसके सामने जाने की हिम्मत नहीं हो रही थी |
आखिरकार मैंने फिर नितिन की घर जाने कि सोची ताकि कैब में हिम्मत जुटाकर
थोडा बहुत बात कर सकूँ | कैब में साथ बैठे भी पर मैंने कोई बात नहीं की |
नितिन के रूम पर रात भर नींद नहीं आई | अपने व्यवहार को याद करके खुद को
कोसता रहा | अगले दिन ऑफिस आते वक्त उसने चुइंग गम दिया पर मैंने लेने से
मना कर दिया | मैं अभी भी चुप बैठा था | अन्दर से आवाज़ आती रही |"अबे
कुछ बोलता क्यों नहीं ?" धीरे धीरे ये आवाज़ तेज़ होने लगी | अब मेरे लिए
चुप रहना मुस्किल हो गया था | मैं अगर अब भी कुछ नहीं बोलता तो अन्दर की
आवाज़ खुद ब खुद बहार आकर बोलने लगती | सो मैंने बात की और उसने हमेशा की
तरह प्यार से मेरे हर बात का जवाब दिया |
इसके बाद मेरी झिझक खुल गई | मैं अब बड़ी सहजता से उससे बात करने लगा था
| वो भी अब सीट में छुपे रहकर मेरे पास आने का इंतज़ार नहीं करती बल्कि
दूर से देखते हीं अभिवादन करती | मेरे जीवन में एक नई स्फूर्ति आ गई थी |
प्यार का रोमांच मुझे जिंदगी के नए मायने समझा रहा था | अब ऑफिस जाना बोझ
नहीं लगता | रोज़ मर्रा की घिसी पिटी जिंदगी में एक हलचल सी होने लगी
थी जिसकी लहरों पर सवार होकर मैं उस किनारे तक पहुँचने की कोशिश करने लगा
जहाँ जिंदगी के कड़ी धुप में आराम करने के लिए जुल्फों की घनी छाया नसीब
होती है जहाँ किसी की हंसी से दिन निकलता है ,उसके आखें मुंदने से रात
होती है |जहां सारे जहाँ का सौंदर्य किसी के चेहरे में दिखने लगता है |
जहां प्यार हीं बादल बनकर बरसता है और प्यार हीं ठंडी हवाएं बनकर दिल को
सहलातीं है | एक ऐसा जहां ,जहाँ जीने लिए बस प्यार की जरुरत होती है ,बस
प्यार की ! वलेंटाइन दिवस आने वाला था | मन हीं मन पूरी तैयारी कर ली
थी कि इस दिन को मैं ख़ास बनाऊंगा अपने प्यार का इजहार करके | वलेंटाइन
दिवस शनिवार को पड़ने के कारण ऑफिस बंद था |
सोचा फोन पे दिन का हाल ब्यान कर दूँ पर हिमात जवाब दे गई | सो उसे प्यार
भरा एक एस ऍम एस भेजा जो इशारे में मेरे दिल की बेकरारी कह रहा था |
सोमवार को जब ऑफिस पहुंचा तो फिर वहीँ संकोच मुझे उससे नज़ारे नहीं मिलाने
दे रहा था | समझ में नहीं आ रहा था कि बार बार अड़चन बन कर आ रहे इस
संकोच की बिमारी का क्या करूँ ? खुद को समझाऊं , सजा दूँ आखिर करूँ क्या
? खैर तीन-चार दिन के बाद जब मैं उससे बात कि तो उसमे पहले जैसी आत्मीयता
नहीं दिखी | वो पहले की तरह उत्सुकता से मेरी बातें सुनाने के बजाय जल्दी
से वार्तालाप खत्म करने की कोशिश करती दिखी | जब कई बार ऐसा हुआ तो दिल
बैठ गया | मुझे लगा कि मैंने एस एम् एस भेज कर बहुत बड़ी गलती कर दी |
पहले कम से कम अच्छी दोस्त तो थी पर अब शायद वो भी ना रहे |
फिर दिल में ख्याल आया कि मैं हीं क्यों उसके पीछे पीछे घूमूं | वो तो
कभी मेरे सीट पर नहीं आती है |मैं हीं क्यों रोज़ रोज़ उससे मिलने जाता
रहता हूँ | जब मर्जी हुई हंस के बात कर लिया मर्जी ना हुई तो नाराज़ हो
गई | यह भी कोई बात हुई !l इंसान खुद को फुसलाना बड़ी अच्छी तरह जानता
है | सोचा हो सकता है किसी और बात से परेशान हो लेकिन जब मैंने देखा कि
ऑरकुट पर मेरे द्वारा लिखी हुई तारीफ़ भी उसने हटा दी है तो यकीं हो गया
कि कुछ गड़बड़ है | अब तो वो मुझसे नज़रें तक मिलाने से कतरा रही थी |
स्नेहा पर रह रह के गुस्सा आता -एक एस एम् एस हीं तो भेजा है ऐसा कौन सा
गुनाह कर दिया है जो वो इस तरह बर्ताव कर रही है | विश्वाश नहीं हो रहा
था स्नेहा जिसे मैं प्यार की गंगा समझ रहा था असल में गुलाब में छिपा एक
कांटा है | उसके मोहक अंदाज़ से हर कोई उसके पास खिंचा चला आता है पर पास
जाकर हीं उस कांटे की टीस महसूस होती है |
जब मुझसे न रहा गया तो उसके पास जाकर पूछा -"स्नेहा तुम मुझसे नाराज़
क्यों हो ?" स्नेहा -"निशि तुम ऐसा क्यों कह रहे हो ?" वो ऐसा दिखाने की
कोशिश कर रही थी कि जैसे कुछ हुआ हीं ना हो "| "तो तुमने मेरा ऑरकुट से
स्क्रैप क्यों हटा दिया ?" "वो मैंने नहीं मेरे पति ने हटाया है | वो
थोड़े वैसे हैं | उन्हें अच्छा नहीं लगता ये सब |मैं चौंका -"तुम्हारा
पति !!!!!!!!!!!" | स्नेहा - "हाँ " | "पर तुमने तो कभी बताया नहीं "|
"मुझे लगा तुम्हे मालुम होगा " |
मैं अब और वहां खड़ा नहीं रह सका | सारे सपने एक झटके में हीं टूट गए |
मैं जिस किनारे का सपना देख रहा था वहां तो पहले से हीं कोई घर बनाए हुए
बैठा था | मैंने उसे कितना गलत समझा ये सोच के ग्लानी हो रही है | अब समझ
में आया कि वो मुझसे नज़ारे क्यों नहीं मिला पा रही थी | उसके पति ने कोई
गलती नहीं की थी | उसके जगह कोई और होता तो यही करता या शायद इससे कुछ
ज्यादा हीं फिर भी वो शर्मिंदा थी | कितनी अच्छी है वो | अपना भारत देश
बदलने लगा है | किसी विवाहित भारतीय स्त्री का भी पुरुष मित्र हो सकता है
| स्नेहा -मैं तुम्हे पहले से भी अधिक प्यार करने लगा हूँ |
चाहूँगा मैं तुझे साँझ सवेरे फिर भी कभी अब नाम को तेरे आवाज़ मैं ना
दूंगा .... | आवाज़ मैं ना दूंगा |
Hindi Love Stories - Awaaz Main Na Dunga by Nishikant Tiwari
प्यार का भ्रम (Hindi Love Stories)
इश्क में धोखा मिले या प्यार ये तो अपने अपने किस्मत की बात है | इस कम्बख्त इश्क ने अनगिनत लोगो को बर्बाद किया है | रोज़ बर्बादी के नए नए किस्से सुनते है फिर भी प्यार करना नहीं छोड़ते | आखिर क्यों ? कभी कभी तो ऐसा लगता है जैसे प्यार से प्यारी दुनिया में कोई चीज नहीं तो कभी यह सब एक झूठ ,छलावा मालूम पड़ता है | यह प्यार हीं है जो जानवर को इंसान बनता है और ये ही वक्त आने पर उसे हैवान बना देता है | तो कुल मिलकर नुक्सान हीं हुआ ना ,जानवर से हैवान बन गए | प्रकाश पार्क के बेंच पर बैठा यही सब सोच रहा था |अपने प्यार के सफ़र के हर एक पड़ाव को याद करके मंथन में लगा हुआ था |सौम्या जिसे वो आंठवी कक्षा से प्यार करता था ऐसा करेगी उसने सपने में भी नहीं सोचा था |उससे जुड़ी छोटी से छोटी याद आँखों से बड़ी बड़ी बूंदों को नीचे घास पर धकेले जा रही थी |
उसके प्यार की शुरुआत तब हुई जब वो सत्य निकेतन के आठवी कक्षा में पड़ता था |हॉस्टल के कमरे में इसके साथ विपुल रहता था | वो पांचवी कक्षा में पड़ता था | विपुल के माता पिता अक्सर उसे मिलने आया करते थे |वे बड़े अछे लोग थे ,हर बार प्रकाश के लिए कुछ ना कुछ ज़रूर लाते |एक रविवार की बात है ,प्रकाश बदन सिकोड़े, चादर लपेटे सोया हुआ था | इतनी देर तक कोई सोता है भला | एक मीठी सी आवाज़ आई | प्रकाश सपना देख रहा था ,उसे लगा कोई लड़की उसे सपने में जगा रही है | एक दो बार पुकारने के बाद भी कोई हलचल न हुई देख कर लड़की ने चादर जोर से खिंचा | प्रकाश हड़बड़ा कर उठा | सामने एक सुन्दर सी लड़की खड़ी थी |उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब भी वो सपना देख रहा है या सही में कोई उसके सामने खड़ा है | घूरता रहा | आखिरकार लड़की ने चुप्पी तोड़ी "मुझे माफ़ कर दीजिये "| मुझे लगा की विपुल है | मैं उसकी बड़ी बहन हूँ |
प्रकाश अभी भी हतप्रभ था |समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे फिर भी खुद को संभालता हुआ बोला "कोई बात नहीं ,बल्कि अच्छा हुआ आपने जगा दिया |मैं तो विल्कुल आलसी हो गया हूँ | विपुल खेलने गया होगा |बैठिये मैं उसे बुला कर लाता हूँ | यह कहते हुए प्रकाश विपुल को ढूढ़ने निकल गया | कुछ देर में लौट कर बोला ,वो तो मिल नहीं रहा है | आप यही इंतज़ार कीजिये थोड़ी देर में आ जाएगा |कमरे में सन्नाटा छा गया |एक एक पल घंटो के समान मालूम पड़ने लगे |दोनों सर निचे किये हुए बैठे हुए थे | बीच बीच में एक दुसरे को देखने की कोशिश करते और कभी नज़रे टकराते हीं शर्म से पलके नीची कर लेते |
उस रात जब प्रकाश सोने गया तो आँखों में नींद नहीं |उसी ध्यान लगा हुआ था |अफ़सोस करता ,काश कुछ बाँतें कर लेता | जाने कब फिर किसी लड़की से बात करने का मौका मिले |कम से कम नाम तो पूछ हीं लेता | वो बेसब्री से अगले रविवार का इंतज़ार करने लगा कि शायद वो फिर आये | ऐसा हुआ भी पर उस दिन विपुल कमरे में मौजूद था सो बात के नाम केवल औपचारिकता हीं हुई | प्यार की चिंगारी किसी दीया-बाती की मोहताज़ नहीं ,नाहीं उसे शोला बनने के लिए घी तेल की आवश्यकता पड़ती है |वो तो कभी भी ,कही भी भड़क सकती है | रूप नारी का सबसे बड़ा श्रृंगार होता है और सोम्या में इसकी कोई कमी नहीं थी | उसके एक हीं मुस्कान से ऐसी चिंगारी भड़की कि प्रकाश दिन रात उसकी जलन में तड़पने लगा | आग के करतब दिखाने वाले भी अक्सर उसी आग से जल जाते हैं | सोम्या भी कहाँ बचने वाली थी | दो चार मुलाकातों में हीं ये शोला सोम्या को भी जलाने लगा | पहले तो वो पगली सकुचाई फिर उसे एहसास हुआ कि अगर कोई निहारने वाला हीं ना हो तो ये रूप ,ये श्रृंगार किस काम का | जिस तरह कोई भवरा किसी सुंदर कली के चारो ओर चक्कर काटता रहता है उसी प्रकार प्रकाश की भी दुनिया सोम्या तक सिमित हो गई | उसकी हर बात सोम्य से शुरू होती और सोम्या पर हीं ख़त्म होती | वे छुप छुप के मिलते | खूब सारीं बातें होतीं | साथ जीने मरने की कसमें खायी जातीं |फिल्मों के डायलेक्ट चुरा-चुरा के सुनाये जाते | उनका प्यार ,प्यार कम बचपना ज्यादा मालूम पड़ता था | लेकिन समय के साथ उनमें परिपक्वता आ गई | तीन साल बीत गए | सब कुछ अच्छा चल रहा था कि अचानक विपुल ने दोनों को साथ देख लिया |एक झटके में हीं सब समझ गया | घरवालों को सारी खबर दे दी |
सौम्या के पिताजी आग बबूला हो गए | उसका घर से निकलना बंद कर दिया |उन्होंने सौम्या को कसम खिलाई कि वह प्रकाश से अब कभी नहीं मिलेगी |जब प्यार सर चढ़ के बोलता है तो कुछ नहीं सूझता | प्यार के नाम पर किया गया हर काम सही लगता है |उस काम को इश्वर के पूजा से तुलना की जाती है |सौम्या की भक्ति कम नहीं हुई पर उसका प्रकाश से मिलना पहले से ज़रूर कम हो गया | जहाँ वो पहले सप्ताह में २-३ मिल लेती थी ,वहीँ २-३ सप्ताह में एक-आध बार मिलने लगी |बारहवीं पास करते हीं प्रकाश का चयन दिल्ली के एक मशहूर मेडिकल कॉलेज में हो गया |उसका मन तो बिलकुल नहीं था कि वर्धमान छोड़ कर दिल्ली जाए पर क्या करता कैरिरार का सवाल था ,सो जाना पड़ा | उधर सौम्या का दाखिला वर्धमान के हीं एक कॉमर्स कॉलेज में हो गया |
दोनों को दिन अब सूना-सूना मालूम पड़ता | रात को झींगुर विरह गीत जाते सुनाई पड़ते |फोन पर चाहे जितनी बाँतें हो जाए पर वो नज़रों का टकराना ,शर्म से कपोलो का लाल हो जाना ,वो अदाएं ,वो इठलाना सब जाता रहा | प्रकाश अकसर ये गीत "हो कर मजबूर उसने बुलाया होगा " सुनता रहता | वो जानता था कि सौम्या तो शहर से बाहर जा नहीं सकती सो वो ही दो तीन महीने पर उससे मिलने वर्धमान चला जाता | वक्त इंसान को हर हाल में रहना सिखा हीं देता है | समय के साथ इन्होने भी एक तरह से समझौता कर लिया | मिलने की तड़प कम हो गई सो प्रकाश का वर्धमान जाना भी कम हो गया | हाँ पर फोन पे बाँतें होतीं रहती | वह हमेशा सौम्या से आग्रह करता रहता "सौम्या कभो तो दिल्ली आओ |"करीब दो साल बाद उसकी मुराद पूरी हुई | सौम्या ने ट्रेनिंग की झूठी कहानी बना कर अपने पिता को मना लिया | उसने कहा कि दिल्ली में अपने सखी के साथ गिर्ल्स हॉस्टल में ठहरेगी |
ट्रेन से उतरते हीं वो प्रकाश के बांहों में कुछ इस तरह समा गई जैसे कोई चंचल नदी रेगिस्तान में समा जाती है | वो उसे सीधे अपने कमरे पर ले आया |पिताजी को यकीन दिलाने के लिए सौम्या ने प्रकाश के हीं कॉलेज के किसी लड़की का नंबर दे दिया और कह दिया को वो उसके साथ रह रही है |फिर से वही पुराने सुख के दिन लौट आये थे | प्रकाश ने कॉलेज जाना बंद कर दिया | दिन भर उससे बाँतें करना ,उसके जुल्फों से खेलना ,उसे घुमाने ले जाना |उसका अब बस यही काम रह गया था | उसने सौम्या को दिल्ली की हर घुमने वाली जगह दिखाई ,दोस्तों से उधार लेकर खूब सारी खरीददारी कराई | अब दिन ज्यादा उज्जवल और रातें और भी गहरी नज़र आती | एक रोज़ दिन सही में बहुत उज्जवल था | बहुत तेज धूप के बावजूद दोनों लाल किला घुमने गए | शाम को कमरे पर लौटते लौटते गर्मी से हालत खराब हो गई सो आज वो जल्दी सो गयी | प्रकाश अभी तक जाग रहा था | यह रात बाकी रातों से अलग थी | सौम्या के केश बिखरे पड़े थे | कपड़ो में सिलवटे पड़ गयीं थीं | उसके अलसाए यौवन का उभार प्रकाश पर रह रह के प्रहार कर रहा था | वो लाख नज़रें हठाने की कोशिश करता पर कुछ हीं पलों में आँखे वही टिक जाती |पहली बार उसने सौम्या को ऐसे देखा था | पहली बार उसने इतने करीब से महसूस किया कि अब वह बच्ची नहीं रही | बंद कली सुंदर फूलों का आकार ले चुकी थी | वो काम-ज्वर से तपने लगा |
वह बार बार उसके तरफ बढ़ता और पास जाते हीं वापस आ जाता | इस अंतर्द्वंद से निकल पाना उसके लिए इतना आसान नहीं | कभी उसे लगता कि ये सब गलत है,पाप है तो कभी सही ,बल्कि उसका अधिकार है और ये अधिकार सौम्या ने हीं उसे दिया है | न रात ख़त्म हो रही थी न उसे नींद हीं आ रही थी | बत्ती बुझा कर अगर सोने की कोशिश भी करता तो कुछ हीं देर में फिर उठकर निहारने लगता | किसी तरह रात कटी | अगले दिन प्रकाश सौम्या से नज़रें नहीं मिला पा रहा था | अचानक प्रकाश के व्यवहार में आये बदलाव को सौम्या समझ नहीं पा रही थी | वह जब भी उससे इस बारे में पूछती ,वो टाल जाता | सौम्या भी कम नहीं थी ,उसने खाना-पीना छोड़ दिया | आखिरकार मजबूर होकर प्रकाश ने रात की सारी घटना कह सुनाई |
सौम्या - छिः कैसी गन्दी बातें करते हो |तुम्हे तनिक भी शर्म नहीं आती क्या ? प्रकाश - "इसमें गलत क्या है ? हम इतने दिनों से एक दुसरे को चाहते है ,साथ जीने मरने की कसमें खाते है तो फिर ये संकोच क्यों ?" सौम्या - "मान मर्यादा भी कोई चीज़ होती है | यह सब हमारें संस्कृति के खिलाफ है |न बाबा न ,शादी से पहले यह सब कुछ नहीं |" प्रकाश - "तो ठीक है शादी कर लेते है |" सौम्या - "शादी कोई मजाक है जो एक क्षण में लिए फैसले से कर लिया जाए " |
इस बात को लेकर रोज़ दोनों में जम के बहस होती | प्रकाश कई बार बहुत हीं ज्यादा उग्र हो जाता | प्रकाश जिसे सौम्या के प्यार ने इंसान बनाया था आज वही प्यार उसे हैवान बनने पर मजबूर कर रहा था | एक दिन प्रकाश इतना गुस्सा हो गया कि जैसे सौम्या को
मार हीं बैठेगा | सौम्या डर गई ,बोली अब मैं एक पल नहीं रुकुंगी यहाँ | मुझे तो अब तुमसे डर लगने लगा गई | तुम हैवान बन गए हो | प्रकाश - "यह तुम क्या कह रही हो !,मैंने सारी दुनिया से केवल तुम्हारी खातिर दुश्मनी मोल लिए बैठा हूँ और तुम्हे मुझसे डर लग रहा है ? प्रकाश ने बहुत मनाया, समझाया, सैकड़ो बार माफ़ी मांगी पर वो नहीं मानी ,रोते रोते अपना सामान बंधने लगी | प्रकाश- "पर तुम जाओगी कहाँ ? तुम तो कह के आई थी ट्रेनिंग ३ सप्ताह की है | अभी तो बस १५ दिन हीं हुए है |"दिल्ली में हीं मेरी एक दोस्त रहती है ,उसी के पास चली जाउंगी |" जब वो कमरे से सामन लेकर निकले लगी तो प्रकाश ने उसका हाथ पकड़ लिया | सौम्या उसे नाख़ून से चीरती हुई निकल गई | जाते हुए एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा | ये कहावत है कि इन्सान को कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए पर जिंदगी में कभी कभी ऐसे हालत बन जाते है जब उसे पीछे मुड़कर देखना पड़ता है | आज इसकी बेहद जरुरत थी पर सौम्या ने ऐसा नहीं किया | प्रकाश भक सा दरवाजे पर खड़ा उसे जाते हुए निहारता रह गया |
Hindi Love Stories - Pyaar ka Bhram by Nishikant Tiwari
उसके प्यार की शुरुआत तब हुई जब वो सत्य निकेतन के आठवी कक्षा में पड़ता था |हॉस्टल के कमरे में इसके साथ विपुल रहता था | वो पांचवी कक्षा में पड़ता था | विपुल के माता पिता अक्सर उसे मिलने आया करते थे |वे बड़े अछे लोग थे ,हर बार प्रकाश के लिए कुछ ना कुछ ज़रूर लाते |एक रविवार की बात है ,प्रकाश बदन सिकोड़े, चादर लपेटे सोया हुआ था | इतनी देर तक कोई सोता है भला | एक मीठी सी आवाज़ आई | प्रकाश सपना देख रहा था ,उसे लगा कोई लड़की उसे सपने में जगा रही है | एक दो बार पुकारने के बाद भी कोई हलचल न हुई देख कर लड़की ने चादर जोर से खिंचा | प्रकाश हड़बड़ा कर उठा | सामने एक सुन्दर सी लड़की खड़ी थी |उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब भी वो सपना देख रहा है या सही में कोई उसके सामने खड़ा है | घूरता रहा | आखिरकार लड़की ने चुप्पी तोड़ी "मुझे माफ़ कर दीजिये "| मुझे लगा की विपुल है | मैं उसकी बड़ी बहन हूँ |
प्रकाश अभी भी हतप्रभ था |समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे फिर भी खुद को संभालता हुआ बोला "कोई बात नहीं ,बल्कि अच्छा हुआ आपने जगा दिया |मैं तो विल्कुल आलसी हो गया हूँ | विपुल खेलने गया होगा |बैठिये मैं उसे बुला कर लाता हूँ | यह कहते हुए प्रकाश विपुल को ढूढ़ने निकल गया | कुछ देर में लौट कर बोला ,वो तो मिल नहीं रहा है | आप यही इंतज़ार कीजिये थोड़ी देर में आ जाएगा |कमरे में सन्नाटा छा गया |एक एक पल घंटो के समान मालूम पड़ने लगे |दोनों सर निचे किये हुए बैठे हुए थे | बीच बीच में एक दुसरे को देखने की कोशिश करते और कभी नज़रे टकराते हीं शर्म से पलके नीची कर लेते |
उस रात जब प्रकाश सोने गया तो आँखों में नींद नहीं |उसी ध्यान लगा हुआ था |अफ़सोस करता ,काश कुछ बाँतें कर लेता | जाने कब फिर किसी लड़की से बात करने का मौका मिले |कम से कम नाम तो पूछ हीं लेता | वो बेसब्री से अगले रविवार का इंतज़ार करने लगा कि शायद वो फिर आये | ऐसा हुआ भी पर उस दिन विपुल कमरे में मौजूद था सो बात के नाम केवल औपचारिकता हीं हुई | प्यार की चिंगारी किसी दीया-बाती की मोहताज़ नहीं ,नाहीं उसे शोला बनने के लिए घी तेल की आवश्यकता पड़ती है |वो तो कभी भी ,कही भी भड़क सकती है | रूप नारी का सबसे बड़ा श्रृंगार होता है और सोम्या में इसकी कोई कमी नहीं थी | उसके एक हीं मुस्कान से ऐसी चिंगारी भड़की कि प्रकाश दिन रात उसकी जलन में तड़पने लगा | आग के करतब दिखाने वाले भी अक्सर उसी आग से जल जाते हैं | सोम्या भी कहाँ बचने वाली थी | दो चार मुलाकातों में हीं ये शोला सोम्या को भी जलाने लगा | पहले तो वो पगली सकुचाई फिर उसे एहसास हुआ कि अगर कोई निहारने वाला हीं ना हो तो ये रूप ,ये श्रृंगार किस काम का | जिस तरह कोई भवरा किसी सुंदर कली के चारो ओर चक्कर काटता रहता है उसी प्रकार प्रकाश की भी दुनिया सोम्या तक सिमित हो गई | उसकी हर बात सोम्य से शुरू होती और सोम्या पर हीं ख़त्म होती | वे छुप छुप के मिलते | खूब सारीं बातें होतीं | साथ जीने मरने की कसमें खायी जातीं |फिल्मों के डायलेक्ट चुरा-चुरा के सुनाये जाते | उनका प्यार ,प्यार कम बचपना ज्यादा मालूम पड़ता था | लेकिन समय के साथ उनमें परिपक्वता आ गई | तीन साल बीत गए | सब कुछ अच्छा चल रहा था कि अचानक विपुल ने दोनों को साथ देख लिया |एक झटके में हीं सब समझ गया | घरवालों को सारी खबर दे दी |
सौम्या के पिताजी आग बबूला हो गए | उसका घर से निकलना बंद कर दिया |उन्होंने सौम्या को कसम खिलाई कि वह प्रकाश से अब कभी नहीं मिलेगी |जब प्यार सर चढ़ के बोलता है तो कुछ नहीं सूझता | प्यार के नाम पर किया गया हर काम सही लगता है |उस काम को इश्वर के पूजा से तुलना की जाती है |सौम्या की भक्ति कम नहीं हुई पर उसका प्रकाश से मिलना पहले से ज़रूर कम हो गया | जहाँ वो पहले सप्ताह में २-३ मिल लेती थी ,वहीँ २-३ सप्ताह में एक-आध बार मिलने लगी |बारहवीं पास करते हीं प्रकाश का चयन दिल्ली के एक मशहूर मेडिकल कॉलेज में हो गया |उसका मन तो बिलकुल नहीं था कि वर्धमान छोड़ कर दिल्ली जाए पर क्या करता कैरिरार का सवाल था ,सो जाना पड़ा | उधर सौम्या का दाखिला वर्धमान के हीं एक कॉमर्स कॉलेज में हो गया |
दोनों को दिन अब सूना-सूना मालूम पड़ता | रात को झींगुर विरह गीत जाते सुनाई पड़ते |फोन पर चाहे जितनी बाँतें हो जाए पर वो नज़रों का टकराना ,शर्म से कपोलो का लाल हो जाना ,वो अदाएं ,वो इठलाना सब जाता रहा | प्रकाश अकसर ये गीत "हो कर मजबूर उसने बुलाया होगा " सुनता रहता | वो जानता था कि सौम्या तो शहर से बाहर जा नहीं सकती सो वो ही दो तीन महीने पर उससे मिलने वर्धमान चला जाता | वक्त इंसान को हर हाल में रहना सिखा हीं देता है | समय के साथ इन्होने भी एक तरह से समझौता कर लिया | मिलने की तड़प कम हो गई सो प्रकाश का वर्धमान जाना भी कम हो गया | हाँ पर फोन पे बाँतें होतीं रहती | वह हमेशा सौम्या से आग्रह करता रहता "सौम्या कभो तो दिल्ली आओ |"करीब दो साल बाद उसकी मुराद पूरी हुई | सौम्या ने ट्रेनिंग की झूठी कहानी बना कर अपने पिता को मना लिया | उसने कहा कि दिल्ली में अपने सखी के साथ गिर्ल्स हॉस्टल में ठहरेगी |
ट्रेन से उतरते हीं वो प्रकाश के बांहों में कुछ इस तरह समा गई जैसे कोई चंचल नदी रेगिस्तान में समा जाती है | वो उसे सीधे अपने कमरे पर ले आया |पिताजी को यकीन दिलाने के लिए सौम्या ने प्रकाश के हीं कॉलेज के किसी लड़की का नंबर दे दिया और कह दिया को वो उसके साथ रह रही है |फिर से वही पुराने सुख के दिन लौट आये थे | प्रकाश ने कॉलेज जाना बंद कर दिया | दिन भर उससे बाँतें करना ,उसके जुल्फों से खेलना ,उसे घुमाने ले जाना |उसका अब बस यही काम रह गया था | उसने सौम्या को दिल्ली की हर घुमने वाली जगह दिखाई ,दोस्तों से उधार लेकर खूब सारी खरीददारी कराई | अब दिन ज्यादा उज्जवल और रातें और भी गहरी नज़र आती | एक रोज़ दिन सही में बहुत उज्जवल था | बहुत तेज धूप के बावजूद दोनों लाल किला घुमने गए | शाम को कमरे पर लौटते लौटते गर्मी से हालत खराब हो गई सो आज वो जल्दी सो गयी | प्रकाश अभी तक जाग रहा था | यह रात बाकी रातों से अलग थी | सौम्या के केश बिखरे पड़े थे | कपड़ो में सिलवटे पड़ गयीं थीं | उसके अलसाए यौवन का उभार प्रकाश पर रह रह के प्रहार कर रहा था | वो लाख नज़रें हठाने की कोशिश करता पर कुछ हीं पलों में आँखे वही टिक जाती |पहली बार उसने सौम्या को ऐसे देखा था | पहली बार उसने इतने करीब से महसूस किया कि अब वह बच्ची नहीं रही | बंद कली सुंदर फूलों का आकार ले चुकी थी | वो काम-ज्वर से तपने लगा |
वह बार बार उसके तरफ बढ़ता और पास जाते हीं वापस आ जाता | इस अंतर्द्वंद से निकल पाना उसके लिए इतना आसान नहीं | कभी उसे लगता कि ये सब गलत है,पाप है तो कभी सही ,बल्कि उसका अधिकार है और ये अधिकार सौम्या ने हीं उसे दिया है | न रात ख़त्म हो रही थी न उसे नींद हीं आ रही थी | बत्ती बुझा कर अगर सोने की कोशिश भी करता तो कुछ हीं देर में फिर उठकर निहारने लगता | किसी तरह रात कटी | अगले दिन प्रकाश सौम्या से नज़रें नहीं मिला पा रहा था | अचानक प्रकाश के व्यवहार में आये बदलाव को सौम्या समझ नहीं पा रही थी | वह जब भी उससे इस बारे में पूछती ,वो टाल जाता | सौम्या भी कम नहीं थी ,उसने खाना-पीना छोड़ दिया | आखिरकार मजबूर होकर प्रकाश ने रात की सारी घटना कह सुनाई |
सौम्या - छिः कैसी गन्दी बातें करते हो |तुम्हे तनिक भी शर्म नहीं आती क्या ? प्रकाश - "इसमें गलत क्या है ? हम इतने दिनों से एक दुसरे को चाहते है ,साथ जीने मरने की कसमें खाते है तो फिर ये संकोच क्यों ?" सौम्या - "मान मर्यादा भी कोई चीज़ होती है | यह सब हमारें संस्कृति के खिलाफ है |न बाबा न ,शादी से पहले यह सब कुछ नहीं |" प्रकाश - "तो ठीक है शादी कर लेते है |" सौम्या - "शादी कोई मजाक है जो एक क्षण में लिए फैसले से कर लिया जाए " |
इस बात को लेकर रोज़ दोनों में जम के बहस होती | प्रकाश कई बार बहुत हीं ज्यादा उग्र हो जाता | प्रकाश जिसे सौम्या के प्यार ने इंसान बनाया था आज वही प्यार उसे हैवान बनने पर मजबूर कर रहा था | एक दिन प्रकाश इतना गुस्सा हो गया कि जैसे सौम्या को
मार हीं बैठेगा | सौम्या डर गई ,बोली अब मैं एक पल नहीं रुकुंगी यहाँ | मुझे तो अब तुमसे डर लगने लगा गई | तुम हैवान बन गए हो | प्रकाश - "यह तुम क्या कह रही हो !,मैंने सारी दुनिया से केवल तुम्हारी खातिर दुश्मनी मोल लिए बैठा हूँ और तुम्हे मुझसे डर लग रहा है ? प्रकाश ने बहुत मनाया, समझाया, सैकड़ो बार माफ़ी मांगी पर वो नहीं मानी ,रोते रोते अपना सामान बंधने लगी | प्रकाश- "पर तुम जाओगी कहाँ ? तुम तो कह के आई थी ट्रेनिंग ३ सप्ताह की है | अभी तो बस १५ दिन हीं हुए है |"दिल्ली में हीं मेरी एक दोस्त रहती है ,उसी के पास चली जाउंगी |" जब वो कमरे से सामन लेकर निकले लगी तो प्रकाश ने उसका हाथ पकड़ लिया | सौम्या उसे नाख़ून से चीरती हुई निकल गई | जाते हुए एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा | ये कहावत है कि इन्सान को कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए पर जिंदगी में कभी कभी ऐसे हालत बन जाते है जब उसे पीछे मुड़कर देखना पड़ता है | आज इसकी बेहद जरुरत थी पर सौम्या ने ऐसा नहीं किया | प्रकाश भक सा दरवाजे पर खड़ा उसे जाते हुए निहारता रह गया |
Hindi Love Stories - Pyaar ka Bhram by Nishikant Tiwari
मैं चाटवाला
मैं चाटवाला हर शाम यहीं, इसी चौराहे पर
अपनी ठेला गाडी लाकर लगा देता हूँ |
लोग आते है और मेरे बनाए स्वादिस्ट चाट का चटकारा लगाकर चले जाते
मैं भी औरो की तरह एक मामूली चाटवाला होता
अगर एक दिन वो ना आती
जाने वो कौन थी ,ना जाने क्या नाम था उसका
पहले दिन हीं बस देखते रह गए थे उसे
उसके चहरे पर उठता खट्टा मीठा भाव
जैसे एक लहर सी उठती थी
और मेरे दिल से जो कि अब तक पत्थर का था
टकरा कर मिटटी सा किये जाती थी |
चाहे इसे खुद कि तारीफ़ कहें या जो भी
मेरे हाथ का चाट खाने के बाद हर कोई दुबारा आता है ज़रूर
वो भी अक्सर आती और सिर्फ मेरे ठेले पर हीं आती
मैं जो दूसरों के जीवन में रस भरा करता था
कोई मेरी भी जिंदगी में रस भरने लगा था
बड़ा अफ़सोस हुआ था मुझे जब दसवीं पास करके भी
चाट बेचना शुरू करना पड़ा था मुझे
पर अब तो जिस नज़र से देखती
मुझे खुद पे गर्व होने लगा था
हाय वो खाते खाते कैसे लजा जाती थी
हाँ पर जाते जाते अपनी हंसी जरुर छोड़ जाती थी
क्या क्या सपने देखने लगा था मैं उसके बारे में
मैं खुद सोच के शर्मा जाता हूँ |
एक दिन उसे मिर्ची लगी ,बोली भैया पानी दीजिये
मिर्ची उसे क्या ,मिर्ची तो मुझे लगी और बहुत तेज़ लगी
ये दिल जो पत्थर से मिटटी का हो चला था
एक झटके में हीं टूट गया और टूट गया ये भ्रम
कि मैं भी कोई दिलवाला हूँ
भूल गया था , मैं तो एक मामूली चाटवाला हूँ
पर इस मिर्ची ने मुझे जीना सिखा दिया
अब मैं दिल टूटने का इंतज़ार नहीं करता
खुद हीं दिल तोड़ लेता हूँ
किसी सुंदरी के आते हीं डाल के ज्यादा मिर्ची
निगाहें फेर लेता हूँ |
अपनी ठेला गाडी लाकर लगा देता हूँ |
लोग आते है और मेरे बनाए स्वादिस्ट चाट का चटकारा लगाकर चले जाते
मैं भी औरो की तरह एक मामूली चाटवाला होता
अगर एक दिन वो ना आती
जाने वो कौन थी ,ना जाने क्या नाम था उसका
पहले दिन हीं बस देखते रह गए थे उसे
उसके चहरे पर उठता खट्टा मीठा भाव
जैसे एक लहर सी उठती थी
और मेरे दिल से जो कि अब तक पत्थर का था
टकरा कर मिटटी सा किये जाती थी |
चाहे इसे खुद कि तारीफ़ कहें या जो भी
मेरे हाथ का चाट खाने के बाद हर कोई दुबारा आता है ज़रूर
वो भी अक्सर आती और सिर्फ मेरे ठेले पर हीं आती
मैं जो दूसरों के जीवन में रस भरा करता था
कोई मेरी भी जिंदगी में रस भरने लगा था
बड़ा अफ़सोस हुआ था मुझे जब दसवीं पास करके भी
चाट बेचना शुरू करना पड़ा था मुझे
पर अब तो जिस नज़र से देखती
मुझे खुद पे गर्व होने लगा था
हाय वो खाते खाते कैसे लजा जाती थी
हाँ पर जाते जाते अपनी हंसी जरुर छोड़ जाती थी
क्या क्या सपने देखने लगा था मैं उसके बारे में
मैं खुद सोच के शर्मा जाता हूँ |
एक दिन उसे मिर्ची लगी ,बोली भैया पानी दीजिये
मिर्ची उसे क्या ,मिर्ची तो मुझे लगी और बहुत तेज़ लगी
ये दिल जो पत्थर से मिटटी का हो चला था
एक झटके में हीं टूट गया और टूट गया ये भ्रम
कि मैं भी कोई दिलवाला हूँ
भूल गया था , मैं तो एक मामूली चाटवाला हूँ
पर इस मिर्ची ने मुझे जीना सिखा दिया
अब मैं दिल टूटने का इंतज़ार नहीं करता
खुद हीं दिल तोड़ लेता हूँ
किसी सुंदरी के आते हीं डाल के ज्यादा मिर्ची
निगाहें फेर लेता हूँ |
शालिनी को प्रेम पत्र
क्या सभी लड़के एक जैसे होते है ? शायद नहीं | पहले मैं भी यही सोचता था क्योंकिं मैं खुद को दूसरो से अलग मानता था |अपनी तारीफ़ कौन नहीं करता |मेरे अंदर वो छिछोरापन नहीं जो किसी भी लड़की को देखते हीं उछंक्रिलता पर उतर जाए |मैं सभी लड़कियों की इज्ज़त करता हूँ और शायद हीं कभी अपनी मर्यादा का उलंघन करता हूँ |यही सोच के सुमित ने मेरी आपसे जान-पहचान कराई थी |वह इतनी दूर अमेरिका में है और आप दिल्ली में |आपका ख्याल नहीं रख सकता तभी तो उसने मेरी आपसे दोस्ती कराई ताकि आपको कोई परेशानी या समस्या होतो आपकी मदद कर सकूँ | उसे मुझ पर पूरा भरोसा था और मुझे अपने आप पर भी लेकिन आपसे इतना घुल मिल जाने के बाद मेरा अपने आप से भरोसा उठने लगा है | अब मैं क्या कहूँ ,आपसे यह सब कहते हुए बड़ा संकोच हो रहा है पर कहना ज़रूरी है | धीरे-धीरे आपका नशा दिलोदिमाग पर इस तरह से छा गया है कि लाख नहीं चाह कर भी मन आपके बारे में हीं सोचता रहता है | आपके साथ बिताये एक-एक पल को रात रात भर जाग केर याद करता रहता हूँ |जब भी मोबाइल की घंटी बजती है ,लगता है आप हीं का फ़ोन है | आप कहा करती थी ना कोई भी लड़का आपका दोस्त बन कर नहीं सकता उसे आपसे प्यार हो ही जाता है | हाँ आप सही थीं | आप जितनी हीं खुबसूरत है उतना हीं खुबसूरत है आपका स्वभाव | आपके व्यक्तित्व का आकर्षण हीं ऐसा है कि कोई खींचे बिना नहीं रह सकता | दीवाना बन हीं जाता है | मुझे अपनेआप पर भरोसा था गुरुर की हद तक पर अब तो मुझमें आप हीं आप हैं मैं ना जाने कहाँ खो गया | समझ में नहीं आता की इल्जाम किस पर लगाऊं, अपने आप पर या आपकी अदाओं पर |
आपको यह सब पढ़ के बहुत दुःख पहुंचा होगा और मुझे भी बहुत बुरा लग रहा है पर मैं क्या करूं ? मुझे गलत मत समझिये |मैं आपसे कुछ मांग नहीं रहा हूँ | बस इतनी गुजारिश है कि मुझसे मेल जोल बंद कर दीजिये | मैं नहीं चाहता कि ये प्यार का अंकुर एक वृक्ष बन जाए जिसे उखाड़ना मुस्किल हो |
पर कोई भी समस्या या चिंता हो तो मुझे ज़रूर याद कीजियेगा | मैं सदैव आपके साथ हूँ | मुझे पता है यह सब कहकर मैं क्या खो रहा हूँ पर चिंता मत कीजिये , खुद को संभल लूँगा | मैंने प्यार किया है और मेरी यही सजा है | वैसे भी इश्क के मारो का दर्द हीं दवा है | आप खुश रहिये |प्रकृति का नियम समझ के भूल जाइए | ये सब इतना आसन नहीं होगा पर आप भी क्या कर सकती है मोर को अपने पंखो की कीमत तो चुकानी हीं पड़ती है |
मैं यह सब आपसे मिल कर कहना चाहता था पर हिम्मत नहीं हुई |इंसान बड़ा स्वार्थी होता है, जानता हूँ कि आप किसी और की हैं फिर भी मेरे मन में ऐसा ख्याल आया | हो सके तो मुझे और मेरे नादान दिल को माफ़ कर दीजिये |
आपका दोस्त
एक पागल प्रेमी
आपको यह सब पढ़ के बहुत दुःख पहुंचा होगा और मुझे भी बहुत बुरा लग रहा है पर मैं क्या करूं ? मुझे गलत मत समझिये |मैं आपसे कुछ मांग नहीं रहा हूँ | बस इतनी गुजारिश है कि मुझसे मेल जोल बंद कर दीजिये | मैं नहीं चाहता कि ये प्यार का अंकुर एक वृक्ष बन जाए जिसे उखाड़ना मुस्किल हो |
पर कोई भी समस्या या चिंता हो तो मुझे ज़रूर याद कीजियेगा | मैं सदैव आपके साथ हूँ | मुझे पता है यह सब कहकर मैं क्या खो रहा हूँ पर चिंता मत कीजिये , खुद को संभल लूँगा | मैंने प्यार किया है और मेरी यही सजा है | वैसे भी इश्क के मारो का दर्द हीं दवा है | आप खुश रहिये |प्रकृति का नियम समझ के भूल जाइए | ये सब इतना आसन नहीं होगा पर आप भी क्या कर सकती है मोर को अपने पंखो की कीमत तो चुकानी हीं पड़ती है |
मैं यह सब आपसे मिल कर कहना चाहता था पर हिम्मत नहीं हुई |इंसान बड़ा स्वार्थी होता है, जानता हूँ कि आप किसी और की हैं फिर भी मेरे मन में ऐसा ख्याल आया | हो सके तो मुझे और मेरे नादान दिल को माफ़ कर दीजिये |
आपका दोस्त
एक पागल प्रेमी
Monday, October 3, 2011
चुभन
थकी हारी दीवारों के उपर एक गीली गीली छत है
हर शाम वही बैठ कर आँखे भिजाने की लत है
सैकडों बार अँधेरे में भी पढ़ चूका हूँ मै
जाने किस स्याही से वो लिख गई ख़त है
बिखरी है चंपा कोई रख दे जरा उठाकर
हाथ है मैले मेरे, बैठा हूँ चूल्हा जलाकर
राख पोत ली हमने उनकी शाख बचाने की खातिर
फिर भी हंस गई वो जाते जाते आइना दिखाकर |
हर शाम वही बैठ कर आँखे भिजाने की लत है
सैकडों बार अँधेरे में भी पढ़ चूका हूँ मै
जाने किस स्याही से वो लिख गई ख़त है
बिखरी है चंपा कोई रख दे जरा उठाकर
हाथ है मैले मेरे, बैठा हूँ चूल्हा जलाकर
राख पोत ली हमने उनकी शाख बचाने की खातिर
फिर भी हंस गई वो जाते जाते आइना दिखाकर |
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