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Saturday, March 24, 2012

एक समझौता कर लेता हूँ

जब याद करके तेरा उदास मुखड़ा हृदय फटने लगता है
और अपनी रिश्ते की अनिश्चिताओं में मन भटकने लगता है
काम करते करते ,सब के सामने जब आँखों में नमी सी उभरने लग जाती है
एक समझौता कर लेता हूँ
रोने का भी वक्त कहाँ ,दो चार आहें भर लेता हूँ |

थक कर जब तेरे कंधे पर सर रख के सोने का मन करता है
सब छोड़ जब तेरे पास आ जाने का मन करता है
जब तुम बिन जीवन का अर्थ और उद्देश्य धूमिल दिखाई पड़ते है
एक समझौता कर लेता हूँ
तू न सही ,तेरी तस्वीर को बांहों में भर लेता हूँ |

दिल को कितना समझाया पर जजबात नहीं बदलते
सब करके देखा ,हालात नहीं बदलते
जब बदल नहीं सकता इन हांथो की लकीरों को
एक समझौता कर लेता हूँ
डूब कर प्यालों में शाम बदल लेता हूँ |

तुम बिन कितना घर खाली, कितने हम अधूरे हैं
इन्टरनेट,फिल्मे,टीवी मन बहलाने के साधन तो बहुतेरे हैं
फिर भी अकेलेपन से जब जी घबराने लग जाता है
एक समझौता कर लेता हूँ
लोग कहे इसे पागलपन ,मैं आईने से बाते कर लेता हूँ |

Nishikant

Hindi Love Poem

3 comments:

  1. Its really very good and touching!

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  2. kitne najdik se samjha hai aapne jivan ke marm ko, kafi khubsoorat kavita likhi hai aapne

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