रमेश भाई को जब तक हुए बाल बच्चे, उन्के सर के एक भी बाल नही बचे, कुछ बच्चे उन्हे टकला टकला कह कर चिढाते, तो कुछ सर पे मार के भाग जाते । सारे मुहल्ले मे किस्सा मश्हुर था, कि इन्के बाल यो ही नही उङॆ बल्की ऊङाए गये है, बेचारे पत्नी द्वारा बहुत सताए गये है, घर मे बीबी की डाट पडती, दफ़्तर मे बॉस देता धमकी, तुमसे मेरी बर्षॊ पुरानी यारी है, वर्ना काम मांगाने वालो मे आधी लड़किय़ाँ कुवाँरी है । जब दाढी बनवाने सैलून जाते ,नाई भी ईन पर चिल्लाते, ससुरजी भी कहते कि अगर तू शादी के पहले टकला हो जाता, तो हमारे दहेज़ का खर्चा बच जाता, जब वो बच्चो को स्कुल छोड़ने जाते , बच्चे ईन्हे अपना नौकर बताते, भाई आज के फैशन और खुबसुरती के ज़माने मे गंजा होना श्राप है, अब बच्चे कैसे बताँए कि टकला उन्का बाप है । एक सामाजिक संस्था तो यँहा तक कहती है, हर टकले को शादी करने से रोका जाए , कहीं ऐसा ना हो यह बिमारी पीढी दर पीढी फैलते फैलते, सारा संसार टकला हो जाये । ऊधर एक फिलोसोफर का कहना है , जिन्की सोंच गिरी हुई होती है उन्के बाल जल्दी गिर जाते है, ऐसे पतीतो को गोली मार देनी चाहिये , मुझे आशचर्य है वे खुद शर्म से क्यों नही मर ...
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