वो भी क्या दिन थे जब आशिक लड़कियों के रुमाल के लिए मरा करते थे |अगर गलती से किसी लड़की का रुमाल मिल जाए तो खुद को खुशनसीब समझते थे |उस रुमाल को जान से भी ज्यादा प्यार करते |उसे तकिये के नीचे रख के सोते |मैं भी सदा यही सपने देखा करता कि काश किसी लड़की का रुमाल मेरे हाथ में भी आता | इस रुमाल को लेकर हमारे गीतकारों ने जाने कितने गीत लिखे |जैसे काली टोपी लाल रुमाल ,रेशम का रुमाल आदि | ये रुमाल जो इतना सर आँखों पर चढा था स्वेन फ्लू ने इसकी ऐसी तैसी करके रख दी है | इस रुमाल, जिसे मैं पाने के सपने देखा करता था कल अचानक से मेरे पास आ गया |हुआ यूँ कि कल एक सहेली मुझसे बात करते करते अपना रुमाल भूल गयी |
पर इस रुमाल को लेकर मै बड़ी दुविधा में पड़ गया हूँ | आप पूछेंगे , भला क्यों ? अरे इस स्वेन फ्लू की वजह से | इस रुमाल को न फेंकते बनता है न रखते | इस पर मुझे एक गाना याद आ रहा है ..
हांथो में आ गया जो कल रुमाल आपका
बेचैन केर रहा है ख्याल आपका ... कि कहीं आपको स्वेन फ्लू तो नहीं क्योकि कल आप छींक रहीं थी |
एक तो ऐसे भी आज कल रुमाल रखने का चलन कम हो गया है ,लोग नेपकिन प्रयोग करने लगे है |फिर जाने कब इस रुमाल को पाने का सौभाग्य प्राप्त हो | अगर फेंक दूँ तो उस युवती पर अत्याचार होगा और अगर ना फेंकू तो शायद फिर कभी कोई अत्याचार करने के लिए हीं ना बचूं | बड़े संकट में हूँ | आप हीं कोई उपाय सुझाये |
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Friday, September 18, 2009
Wednesday, August 12, 2009
Hindi comedy poem bhrahm bhoj
आप ने दिया इतना सम्मान
कि याद करते हीं मुंह में आ जाता है पान
अब तक नाच रहा है जिह्वा पर खीर का स्वाद
सदा सुखी रहो है दरिद्र का आर्शीवाद |
छोले ,पूरियाँ ,आचार वो रायता
भूले कैसे पालक-पनीर का जायका
पर क्या कहे हुआ कितना अफ़सोस था
मन तो भरा नहीं ,पेट ठूस के हो गया ठोस था |
टूट गया धर्म मेरा पहली बार इस भोज में
ना बाँध के ले जा सका कुछ भी मैं संकोच में
पर चिंता मत कीजिये हमारा कम हीं पाप से मुक्ति दिलाना है
तो बस इतना बता दीजिये फिर कब भोज पे आना है |
Nishikant Tiwari
कि याद करते हीं मुंह में आ जाता है पान
अब तक नाच रहा है जिह्वा पर खीर का स्वाद
सदा सुखी रहो है दरिद्र का आर्शीवाद |
छोले ,पूरियाँ ,आचार वो रायता
भूले कैसे पालक-पनीर का जायका
पर क्या कहे हुआ कितना अफ़सोस था
मन तो भरा नहीं ,पेट ठूस के हो गया ठोस था |
टूट गया धर्म मेरा पहली बार इस भोज में
ना बाँध के ले जा सका कुछ भी मैं संकोच में
पर चिंता मत कीजिये हमारा कम हीं पाप से मुक्ति दिलाना है
तो बस इतना बता दीजिये फिर कब भोज पे आना है |
Nishikant Tiwari
Friday, August 7, 2009
दिल के टुकड़े
इन आँखों के सैलाब से दो बूंद पानी मांग लेते
तुम्हे हक़ था मेरी जवानी मांग लेते
जाते जाते इतना तो रहम किया होता
कि मुझसे अपनी वो प्यार की निशानी मांग लेते
Nishikant Tiwari
तुम्हे हक़ था मेरी जवानी मांग लेते
जाते जाते इतना तो रहम किया होता
कि मुझसे अपनी वो प्यार की निशानी मांग लेते
Nishikant Tiwari
Thursday, June 25, 2009
एक ठोकर लगाने आ जाते

एक इशारा तो किया होता ,कब मैं तुमसे दूर थी
तुमने हाथ तभी माँगा जब हो चुकी मजबूर थी
वर्षों किया इंतजार मैंने पर तू पल भर भी न ठहर सका
पूरा किया वो काम जो न कर कभी जहर सका
सब कुछ भुला दिया इस कदर की ना मेरा नाम याद रखा
मैं बेवफा हूँ ये इल्जाम याद रखा
कभी तो लौट के आओगे जाने क्यों ये भरोसा था
प्यार का तूफ़ान समझा जिसे वो तो बस एक चाहत का झोकां था
प्यार नहीं एहसान सही ,थोड़ी दया दिखाने आ जाते
अभी भी छुपे हैं दिल में अरमान कई ,एक ठोकर लगाने आ जाते
Nishikant Tiwari
तुमने हाथ तभी माँगा जब हो चुकी मजबूर थी
वर्षों किया इंतजार मैंने पर तू पल भर भी न ठहर सका
पूरा किया वो काम जो न कर कभी जहर सका
सब कुछ भुला दिया इस कदर की ना मेरा नाम याद रखा
मैं बेवफा हूँ ये इल्जाम याद रखा
कभी तो लौट के आओगे जाने क्यों ये भरोसा था
प्यार का तूफ़ान समझा जिसे वो तो बस एक चाहत का झोकां था
प्यार नहीं एहसान सही ,थोड़ी दया दिखाने आ जाते
अभी भी छुपे हैं दिल में अरमान कई ,एक ठोकर लगाने आ जाते
Nishikant Tiwari
Tuesday, June 23, 2009
फेर लड़कियों के नाम की मनका
जलता रहा है दिल कब से, अब सिर्फ राख बाकी है
मिल ना सका प्यार जो उसकी अभी भी तलाश बाकी है
यू नहीं गुजारते रात जाग कर
और नींद में भी चीखते रहे
मुझे प्यार कर ,मुझे प्यार कर
दुरिया मिटाने की हर संभव प्रयास जारी है
हर लड़की लगती खुबसूरत हर लड़की लगती प्यारी है
फिर भी कोई पास ना आए तो दिल क्या करे,
टकटकी लगा कर देख रहे सबको हम खड़े खड़े
जाने कितनी गालियाँ पड़ी और पिट चूका कई बार है
पर प्यार के लिए हर जिल्लत, हर मार करनी पड़ती स्वीकार है
ऐ दोस्त मेरे तू गम ना कर वो दिन कभी तो आएगा
कोई तो देख तुम्हे शर्माएगी जब तू देख उसे मुस्काएगा
मत सोचो गोरी है या काली, सुंदरी के कई रूप है
जो मिल जाए अपना लो ,सब एक ही चाहत की धुप है
अर्जुन की तरह तुम्हारा लक्ष्य केवल पाना प्यार है
चाहे जो भी करना पड़े तुम्हे अगर सब स्वीकार है
तो जान लो ये कि तेरा इतना मेहनत करना बेकार है
आज कल प्यार बिकाऊ है ,सारी दुनिया खरीदार है
अगर पैसा है ,बना सकते हो बातें गोल गोल
तो तेरी भी बज सकती है फटी ढोल
खुल के बोली लगा दे किसी के नाम की
तुझे ज़रूर मिलेगी तेरे काम की
क्या कहा, ना बातें बड़ी नाही पैसा है
तो तू भी मेरे जैसा है
आ बैठ , फेर लड़कियों के नाम की मनका
बन के दिखाओ विश्वामित्र तब आएगी मेनका
Nishikant Tiwari
मिल ना सका प्यार जो उसकी अभी भी तलाश बाकी है
यू नहीं गुजारते रात जाग कर
और नींद में भी चीखते रहे
मुझे प्यार कर ,मुझे प्यार कर
दुरिया मिटाने की हर संभव प्रयास जारी है
हर लड़की लगती खुबसूरत हर लड़की लगती प्यारी है
फिर भी कोई पास ना आए तो दिल क्या करे,
टकटकी लगा कर देख रहे सबको हम खड़े खड़े
जाने कितनी गालियाँ पड़ी और पिट चूका कई बार है
पर प्यार के लिए हर जिल्लत, हर मार करनी पड़ती स्वीकार है
ऐ दोस्त मेरे तू गम ना कर वो दिन कभी तो आएगा
कोई तो देख तुम्हे शर्माएगी जब तू देख उसे मुस्काएगा
मत सोचो गोरी है या काली, सुंदरी के कई रूप है
जो मिल जाए अपना लो ,सब एक ही चाहत की धुप है
अर्जुन की तरह तुम्हारा लक्ष्य केवल पाना प्यार है
चाहे जो भी करना पड़े तुम्हे अगर सब स्वीकार है
तो जान लो ये कि तेरा इतना मेहनत करना बेकार है
आज कल प्यार बिकाऊ है ,सारी दुनिया खरीदार है
अगर पैसा है ,बना सकते हो बातें गोल गोल
तो तेरी भी बज सकती है फटी ढोल
खुल के बोली लगा दे किसी के नाम की
तुझे ज़रूर मिलेगी तेरे काम की
क्या कहा, ना बातें बड़ी नाही पैसा है
तो तू भी मेरे जैसा है
आ बैठ , फेर लड़कियों के नाम की मनका
बन के दिखाओ विश्वामित्र तब आएगी मेनका
Nishikant Tiwari
Friday, June 5, 2009
मै शायद इश्क को पहचानता नहीं (Hindi Love Stories)
कौन है वो ?क्या नाम है उसका ?अब हर तरफ ऑफिस में यही चर्चा है सब मुझसे आकर पूछ रहे है और पूछे भी क्यों न मेरे कोने वाली सीट पर एक नई लड़की ने ज्वाइन किया है बाकी कुछ तो पता नहीं पर उम्र से तो काफी कम मालूम पड़ती है
बीच बीच में उठते बैठते नज़रें टकरा जातीं हैं वो भी कभी कभी मेरी तरफ देख लेती है जब वो मेरी तरफ देख रही होती है मैं अपनी नज़र कंप्यूटर के स्क्रीन पर टिका लेता हूं ताकि उसे ये ना मालूम पड़े कि मै उसे देख रहा हूँ एक सप्ताह बीत गए मैंने उसे हाय तक नहीं कहा मन में बड़ी ग्लानी हो रही थी सो सोमवार को जाते ही उसे हाय बोला , वह भी मुस्कुरा कर हेलो बोली आपका नाम क्या है बोली "मृदुला राजपूत" आपको कितने साल का एक्सपेरिएंस है ?"मैं फ्रेशेर हूँ "
मैं वेद हूँ जावा में काम करता हूँ आपको कितना एक्सपेरिएंस है ? "दो साल " क्या आप मेरे साथ चाय पीना पसंद करेंगी ? मेरे मुंह से अचानक निकल गया इससे पहले मैंने कभी किसी लड़की को चाय के लिए नहीं बोला था पर आज ना जाने क्यों पहली मुलाकात में हीं यह बात निकल गयी वह एक आधुनिक लड़की थी उसके लिए लड़को के साथ चाय पीना कोई नयी या विशेष बात नहीं थी वो बेहिचक बोली "हाँ चाय पी सकते हैं
ऑफिस के केंटिन में हम दोनों बैठे चाय की चुस्की लेते हुवे बातें करने लगे सुबह का समय था सो नास्ता करने वालों का ताँता लगा हुवा था सभी का ध्यान हमारी हीं तरफ था कुछ लोग तो बिलकुल बेशर्म हो चुके थे
एक टक टक - टकी लगाए हुवे थे मुझे बड़ा अजीब लग रहा था पश्चात्ताप भी हो रहा था कि बेकार में इसे चाय पीने को कहा वह काफी समझदार थी झट से मेरे मनोदशा को भांपते हुवे बोली "हम लोग कुछ गलत थोड़े हीं ना कर रहे हैं फिर आप बेकार में परेशान क्यों हो रहे हैं " उसके इस बात से थोडी राहत मिली फिर भी मन में हलचल मची रही अब घर आकर बस उसी का ख्याल है उसकी वो केंटिन वाली बात बार बार मन में आ रही थी कि हम कुछ गलत थोड़े ना कर रहे है जब वो एक लड़की होकर इतना साहस दिखा सकती है तो मैं क्यों नहीं मैंने ठान लिया जो मन करेगा वही करूँगा चाहे कोई कुछ भी सोचे अगले दिन फिर हाय बोला और अपनी सीट पर बैठ गया लगा जैसे कुछ बोलना चाहती थी या मुझसे हाय के अलावा कुछ और भी सुनना चाहती थी ,शायद सोच रही होगी कि आज फिर चाय के लिए पूछूँगा पर तब तक मैं बैठ चुका था दिन में एक दो बार मेरी तरफ देखी भी पर मेरी नज़रें अपने आप हट जातीं मैं लाख चाह कर भी उससे नज़र नहीं मिला पा रहा था
रोज़ ऐसा ही होता मैं दिन पर दिन और भी परेशान रहने लगा आखिर क्यों मैं ऐसा कर रहा था मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था मैं खुद को जैसे अपराधी समझने लगा था कुछ दिनों के बाद हाय कहना भी बंद कर दिया रात रात भर नींद नहीं आती
अपनी कायरता पर ,शार्मिलेंपन पर बड़ा क्रोध आता जब आपके छमता या अज्ञानता पर कोई चोट करता है तो क्रोध तो अवश्य आता है यहाँ चोट करने वाला और चोट खाने वाला दोनों मैं हीं था रात रात भर सोचता कल सुबह जाकर उससे ऐसे बात करूंगा वैसे बर्ताव करूंगा पर सुबह जाकर फिर वही पुरानी गलतियाँ करता
जितना मैं उसके बारे में सोचता उतना हीं मेरा बर्ताव बेरुखी भरा होने लगा था कभी कभी जब नज़रें गलती से टकरा जातीं उसकी आँखों में सवाल ही सवाल नज़र आते जैस पूछ रहीं हो क्यों कर रहे हो ऐसा ? अगर ऐसा हीं करना था उस दिन मुझे हाय क्यों बोला ? चाय पिने के लिए क्यों कहा ?
मैं अगर बात नहीं कर पा रहा था इसका मतलब ये तो नहीं कि कोई और भी उससे बात ना करे उसकी कई लड़को से दोस्ती हो गयी थी कोई भी लड़का उससे बात करता ,हंसी मज़ाक करता या साथ बैठ कर खाना खाता तो मेरा खून खौलने लगता आग सी लपटें सिने को जलाने लगतीं दिल ये चाहता था कि बस मेरे से बात करे , प्यार करे जबकि मैं उससे नज़र मिलाने तक को तैयार नहीं क्यों नहीं वो किसी और से बात करे ? क्या अधिकार है मेरा उस पर ? दिल को इन बातों से कोई मतलब नहीं मेरी चाहत आकर्षण की सीमा को लाँघ कर प्यार के तरफ बढ़ चली थी और जहाँ दिल या प्यार की बात हो वहां तर्क नहीं चलता
मेरी बैचनी दिन पर दिन बढती चली जा रही थी कुछ भी करने को जी नहीं करता दिन रात बस उसी के बारे में सोचता रहता ,खुद को कोसता रहता आखिर कब तक चलता ऐसे मैंने अपने दोस्त नितिन को फोन किया और सारा हाल सुनाया वह बोला "तुम्हारा हाल ठीक उस किसान के जैसा है जिसने किसी साहूकार से कर्ज ले रक्खा हो और दिन पर दिन सुध बढ़ने से वो और भी परेशान होता चला जाता हो तुमने दुसरे दिन गलती की पर अगले दिन सुधारा नहीं सो गलती और भी बढ़ गयी और ऐसे करते करते सुध इतना ज्यादा हो चूका है कि तुम्हें कर्ज उतारना नामुमकिन लग रहा है तुमने उस लड़की को इतना महत्व दे दिया है कि तुम्हारा खुद का कद कम हो गया है हम जितना ज्यादा किसी समस्या के बारे में सोचते है वो उतनी हीं बड़ी मालूम पड़ती है और उसे सुलझाना उतना ही कठिन मालूम पड़ता है लड़की है तो क्या हुवा वो हमारी तुम्हारी तरह हीं इंसान है उसके बारे इतना सोचना बंद करो देखना सब अपने आप ही ठीक हो जाएगा
नितिन की बातों से बड़ा बल मिला मैंने वैसा हीं किया जैसा कि उसने बताया था सच में कमाल हो गया शुरू शुरू में थोडी मुस्किल हुई पर समय के साथ सब कुछ सहज हो गया अब थोड़ी बहुत बात होने लगी थी नज़रों के टकरा जाने पर थोड़ा मुस्कुरा देता अब उससे बात करने केलिए ज्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ती वक्त के साथ हमारी दोस्ती गहरी हो गयी अब हम शनिवार या रविवार को रेस्टुरेंट या सनेमा चले जाया करते थे मैं खुश था उसे बेहद प्यार करने लगा था शायद वो भी मुझे उतना ही प्यार करने लगी थी उसके साथ रह कर मैं भी स्टाइलिश बनता जा रहा था कितनी अच्छी थी वो उसे बाकी लड़कियों जैसा नखरा करना नहीं आता था हमेशा उसकी कोशिश रहती कि मैं जितना खर्च करुँ उससे वो ज्यादा करे मेरे पुरे व्यक्तित्व में बदलाव आ चुका था उसकी खुशबु मेरी साँसों ,मेरी बातों , मेरे रोम रोम में समां गयी थी अब पहले से धीरे और मीठा बोलने लगा था पहले कोई भी कपड़ा पहन कर निकल जाता पर अब घर से निकलते वक्त खुद को एक दो बार आईने में जरुर देख लेता हूँ कि कपडे मैचिंग तो है ,बाल ठीक से झाड़े तो है ,दाढ़ी बनायीं है या नहीं अच्छा दिखना जैसे मेरी एक नैतिक जिम्मेदारी बन गयी थी
उसका नाम लेकर दोस्त चुटकियाँ लेने लगे थे दुसरे देख देख हमें जलते कही भी उसके साथ जाता तो गर्व महसूस होता पर जब लोग उसे ललचाई नज़रों से घूरते तो बुरा भी लगता उसकी तारीफ़ मुझे अपनी तारीफ़ लगती उसके बारे में एक शब्द भी बुरा सुनते हीं मेरा खून खौल उठता हालाकिं मैंने भी बहुतों के बारे क्या नहीं कहा था पर अब वही बातें अच्छी नहीं लगती
एक दिन मैं अपने दोस्त प्रकाश को परीक्षा दिलाने गया वहीँ सेंटर पर एक लड़का अपनी बहन को परीक्षा दिलाने आया था उसे सिगरेट की बड़ी तलब जग रही थी उसके पास सिगरेट तो थी पर माचिस नहीं थी मैंने अपनी माचिस निकाल कर दे दी
फिर ध्यान आया कि यहाँ पीना ठीक नहीं सो हम थोड़ी दूर एक पेड़ के नीचे चले गए बांतो हीं बांतो में पता चला कि उसका नाम राहुल है अभी परीक्षा शुरू होने में काफी समय था इधर हम एक दुसरे को जानने की कोशिश कर रहे थे उधर प्रकाश और राहुल कि बहन बतियाने में मशगुल थे शायद परीक्षा में आने वाले सवालों के बारे में बातें कर रहे थे मैंने पूछा " राहुल तुम इतना परेशान क्यों लग रहे हो ?" वह कुछ छुपाते हुवे बोला कुछ नहीं बोला दोस्त "क्या तुम अपना मोबाइल दे सकते हो ,मैं अपना लाना भूल गया ,एक जरुरी कॉल करना है " मैं बोला "हाँ हाँ क्यों नहीं ये लो " जैसे हीं उसने एक नंबर मिलाया मोबाइल पर नाम लिख कर आ गया "मृदुला राजपूत "
उसने चौंक कर पूछा ? तुम इसे कैसे जानते हो ? मैं बोला अगर यही प्रश्न मैं तुमसे करूं तो? राहुल बोला " वो मेरी दोस्त है मै एक कदम आगे बढ़ कर बोला मेरी भी दोस्त है और मुझसे प्यार भी करती है " " अच्छा वो तुम हो जिसके कारण वह अब मुझे समय नहीं देती ४ -५ बार बुलाओ तब कहीं जाकर आती है एक समय हुवा करता था जब उसके होंठो पर दिन रात मेरा नाम रहता था जब भी बुलाओ दौरी चली आती थी साथ कितनी मस्ती की थी हमने और अब .... वह आगे कुछ बोल ना सका इधर मेरा दिल टूट रहा था उधर प्रकाश और राहुल की बहन के दिल जुड रहे थे उनके चेहरे पर वही मुस्कान थी जो मेरे और मृदुला के चहरे पर थी जब हम पहली बार साथ चाय पिए थे
मैं वहां ठहर ना सका प्रकाश को बिना बताये घर आ गया मन दुःख के सागर में डूब सा गया था रह रह के स्वतः ही आँखों में आंसू आ जाते थे लगता था मेरे साथ धोखा हुवा है उसे बताना चाहिए था कि उसका कोई और भी दोस्त है ये जरुरी नहीं की वह जिस जिस से मिले या जहाँ भी जाए सब बताये पर कहाँ ना प्यार में तर्क नहीं चलता अब मैं उससे बात नहीं करता दिल तो बहुत करता है कि उससे बात करुँ पर खुद को रोक लेता हूँ एक रिश्ते का अंत दुसरे रिश्ते को जन्म देता है इधर मै , मृदुला और राहुल तीनों दुखी थे उधर प्रकाश और राहुल की बहन के बीच प्यार के नए फुल पुलकित हो रहे थे प्रकाश दिन भर उससे फोन पर चिपका रहता
मैं मृदुला को दोष भी नहीं दे सकता उसने कभी ये तो नहीं कहा था कि वो मुझसे प्यार करती है पर मेरा अहम् उसे हीं दोषी ठहरता है ,हमेशा मिलने से रोकता रहता है मै फिर अंतर्द्वंद में उलझ गया हूँ जो हुआ सो सही हुआ या गलत मैं नहीं जनता बस मै इतना हीं कहूँगा कि
"हां मैं ये जानता हूँ कि वो बेवफा तो नहीं
मै शायद इश्क को पहचानता नहीं "
Hindi Love Stories - main shayad ishq ko pehchnata nahi by Nishikant Tiwari
बीच बीच में उठते बैठते नज़रें टकरा जातीं हैं वो भी कभी कभी मेरी तरफ देख लेती है जब वो मेरी तरफ देख रही होती है मैं अपनी नज़र कंप्यूटर के स्क्रीन पर टिका लेता हूं ताकि उसे ये ना मालूम पड़े कि मै उसे देख रहा हूँ एक सप्ताह बीत गए मैंने उसे हाय तक नहीं कहा मन में बड़ी ग्लानी हो रही थी सो सोमवार को जाते ही उसे हाय बोला , वह भी मुस्कुरा कर हेलो बोली आपका नाम क्या है बोली "मृदुला राजपूत" आपको कितने साल का एक्सपेरिएंस है ?"मैं फ्रेशेर हूँ "
मैं वेद हूँ जावा में काम करता हूँ आपको कितना एक्सपेरिएंस है ? "दो साल " क्या आप मेरे साथ चाय पीना पसंद करेंगी ? मेरे मुंह से अचानक निकल गया इससे पहले मैंने कभी किसी लड़की को चाय के लिए नहीं बोला था पर आज ना जाने क्यों पहली मुलाकात में हीं यह बात निकल गयी वह एक आधुनिक लड़की थी उसके लिए लड़को के साथ चाय पीना कोई नयी या विशेष बात नहीं थी वो बेहिचक बोली "हाँ चाय पी सकते हैं
ऑफिस के केंटिन में हम दोनों बैठे चाय की चुस्की लेते हुवे बातें करने लगे सुबह का समय था सो नास्ता करने वालों का ताँता लगा हुवा था सभी का ध्यान हमारी हीं तरफ था कुछ लोग तो बिलकुल बेशर्म हो चुके थे
एक टक टक - टकी लगाए हुवे थे मुझे बड़ा अजीब लग रहा था पश्चात्ताप भी हो रहा था कि बेकार में इसे चाय पीने को कहा वह काफी समझदार थी झट से मेरे मनोदशा को भांपते हुवे बोली "हम लोग कुछ गलत थोड़े हीं ना कर रहे हैं फिर आप बेकार में परेशान क्यों हो रहे हैं " उसके इस बात से थोडी राहत मिली फिर भी मन में हलचल मची रही अब घर आकर बस उसी का ख्याल है उसकी वो केंटिन वाली बात बार बार मन में आ रही थी कि हम कुछ गलत थोड़े ना कर रहे है जब वो एक लड़की होकर इतना साहस दिखा सकती है तो मैं क्यों नहीं मैंने ठान लिया जो मन करेगा वही करूँगा चाहे कोई कुछ भी सोचे अगले दिन फिर हाय बोला और अपनी सीट पर बैठ गया लगा जैसे कुछ बोलना चाहती थी या मुझसे हाय के अलावा कुछ और भी सुनना चाहती थी ,शायद सोच रही होगी कि आज फिर चाय के लिए पूछूँगा पर तब तक मैं बैठ चुका था दिन में एक दो बार मेरी तरफ देखी भी पर मेरी नज़रें अपने आप हट जातीं मैं लाख चाह कर भी उससे नज़र नहीं मिला पा रहा था
रोज़ ऐसा ही होता मैं दिन पर दिन और भी परेशान रहने लगा आखिर क्यों मैं ऐसा कर रहा था मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था मैं खुद को जैसे अपराधी समझने लगा था कुछ दिनों के बाद हाय कहना भी बंद कर दिया रात रात भर नींद नहीं आती
अपनी कायरता पर ,शार्मिलेंपन पर बड़ा क्रोध आता जब आपके छमता या अज्ञानता पर कोई चोट करता है तो क्रोध तो अवश्य आता है यहाँ चोट करने वाला और चोट खाने वाला दोनों मैं हीं था रात रात भर सोचता कल सुबह जाकर उससे ऐसे बात करूंगा वैसे बर्ताव करूंगा पर सुबह जाकर फिर वही पुरानी गलतियाँ करता
जितना मैं उसके बारे में सोचता उतना हीं मेरा बर्ताव बेरुखी भरा होने लगा था कभी कभी जब नज़रें गलती से टकरा जातीं उसकी आँखों में सवाल ही सवाल नज़र आते जैस पूछ रहीं हो क्यों कर रहे हो ऐसा ? अगर ऐसा हीं करना था उस दिन मुझे हाय क्यों बोला ? चाय पिने के लिए क्यों कहा ?
मैं अगर बात नहीं कर पा रहा था इसका मतलब ये तो नहीं कि कोई और भी उससे बात ना करे उसकी कई लड़को से दोस्ती हो गयी थी कोई भी लड़का उससे बात करता ,हंसी मज़ाक करता या साथ बैठ कर खाना खाता तो मेरा खून खौलने लगता आग सी लपटें सिने को जलाने लगतीं दिल ये चाहता था कि बस मेरे से बात करे , प्यार करे जबकि मैं उससे नज़र मिलाने तक को तैयार नहीं क्यों नहीं वो किसी और से बात करे ? क्या अधिकार है मेरा उस पर ? दिल को इन बातों से कोई मतलब नहीं मेरी चाहत आकर्षण की सीमा को लाँघ कर प्यार के तरफ बढ़ चली थी और जहाँ दिल या प्यार की बात हो वहां तर्क नहीं चलता
मेरी बैचनी दिन पर दिन बढती चली जा रही थी कुछ भी करने को जी नहीं करता दिन रात बस उसी के बारे में सोचता रहता ,खुद को कोसता रहता आखिर कब तक चलता ऐसे मैंने अपने दोस्त नितिन को फोन किया और सारा हाल सुनाया वह बोला "तुम्हारा हाल ठीक उस किसान के जैसा है जिसने किसी साहूकार से कर्ज ले रक्खा हो और दिन पर दिन सुध बढ़ने से वो और भी परेशान होता चला जाता हो तुमने दुसरे दिन गलती की पर अगले दिन सुधारा नहीं सो गलती और भी बढ़ गयी और ऐसे करते करते सुध इतना ज्यादा हो चूका है कि तुम्हें कर्ज उतारना नामुमकिन लग रहा है तुमने उस लड़की को इतना महत्व दे दिया है कि तुम्हारा खुद का कद कम हो गया है हम जितना ज्यादा किसी समस्या के बारे में सोचते है वो उतनी हीं बड़ी मालूम पड़ती है और उसे सुलझाना उतना ही कठिन मालूम पड़ता है लड़की है तो क्या हुवा वो हमारी तुम्हारी तरह हीं इंसान है उसके बारे इतना सोचना बंद करो देखना सब अपने आप ही ठीक हो जाएगा
नितिन की बातों से बड़ा बल मिला मैंने वैसा हीं किया जैसा कि उसने बताया था सच में कमाल हो गया शुरू शुरू में थोडी मुस्किल हुई पर समय के साथ सब कुछ सहज हो गया अब थोड़ी बहुत बात होने लगी थी नज़रों के टकरा जाने पर थोड़ा मुस्कुरा देता अब उससे बात करने केलिए ज्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ती वक्त के साथ हमारी दोस्ती गहरी हो गयी अब हम शनिवार या रविवार को रेस्टुरेंट या सनेमा चले जाया करते थे मैं खुश था उसे बेहद प्यार करने लगा था शायद वो भी मुझे उतना ही प्यार करने लगी थी उसके साथ रह कर मैं भी स्टाइलिश बनता जा रहा था कितनी अच्छी थी वो उसे बाकी लड़कियों जैसा नखरा करना नहीं आता था हमेशा उसकी कोशिश रहती कि मैं जितना खर्च करुँ उससे वो ज्यादा करे मेरे पुरे व्यक्तित्व में बदलाव आ चुका था उसकी खुशबु मेरी साँसों ,मेरी बातों , मेरे रोम रोम में समां गयी थी अब पहले से धीरे और मीठा बोलने लगा था पहले कोई भी कपड़ा पहन कर निकल जाता पर अब घर से निकलते वक्त खुद को एक दो बार आईने में जरुर देख लेता हूँ कि कपडे मैचिंग तो है ,बाल ठीक से झाड़े तो है ,दाढ़ी बनायीं है या नहीं अच्छा दिखना जैसे मेरी एक नैतिक जिम्मेदारी बन गयी थी
उसका नाम लेकर दोस्त चुटकियाँ लेने लगे थे दुसरे देख देख हमें जलते कही भी उसके साथ जाता तो गर्व महसूस होता पर जब लोग उसे ललचाई नज़रों से घूरते तो बुरा भी लगता उसकी तारीफ़ मुझे अपनी तारीफ़ लगती उसके बारे में एक शब्द भी बुरा सुनते हीं मेरा खून खौल उठता हालाकिं मैंने भी बहुतों के बारे क्या नहीं कहा था पर अब वही बातें अच्छी नहीं लगती
एक दिन मैं अपने दोस्त प्रकाश को परीक्षा दिलाने गया वहीँ सेंटर पर एक लड़का अपनी बहन को परीक्षा दिलाने आया था उसे सिगरेट की बड़ी तलब जग रही थी उसके पास सिगरेट तो थी पर माचिस नहीं थी मैंने अपनी माचिस निकाल कर दे दी
फिर ध्यान आया कि यहाँ पीना ठीक नहीं सो हम थोड़ी दूर एक पेड़ के नीचे चले गए बांतो हीं बांतो में पता चला कि उसका नाम राहुल है अभी परीक्षा शुरू होने में काफी समय था इधर हम एक दुसरे को जानने की कोशिश कर रहे थे उधर प्रकाश और राहुल कि बहन बतियाने में मशगुल थे शायद परीक्षा में आने वाले सवालों के बारे में बातें कर रहे थे मैंने पूछा " राहुल तुम इतना परेशान क्यों लग रहे हो ?" वह कुछ छुपाते हुवे बोला कुछ नहीं बोला दोस्त "क्या तुम अपना मोबाइल दे सकते हो ,मैं अपना लाना भूल गया ,एक जरुरी कॉल करना है " मैं बोला "हाँ हाँ क्यों नहीं ये लो " जैसे हीं उसने एक नंबर मिलाया मोबाइल पर नाम लिख कर आ गया "मृदुला राजपूत "
उसने चौंक कर पूछा ? तुम इसे कैसे जानते हो ? मैं बोला अगर यही प्रश्न मैं तुमसे करूं तो? राहुल बोला " वो मेरी दोस्त है मै एक कदम आगे बढ़ कर बोला मेरी भी दोस्त है और मुझसे प्यार भी करती है " " अच्छा वो तुम हो जिसके कारण वह अब मुझे समय नहीं देती ४ -५ बार बुलाओ तब कहीं जाकर आती है एक समय हुवा करता था जब उसके होंठो पर दिन रात मेरा नाम रहता था जब भी बुलाओ दौरी चली आती थी साथ कितनी मस्ती की थी हमने और अब .... वह आगे कुछ बोल ना सका इधर मेरा दिल टूट रहा था उधर प्रकाश और राहुल की बहन के दिल जुड रहे थे उनके चेहरे पर वही मुस्कान थी जो मेरे और मृदुला के चहरे पर थी जब हम पहली बार साथ चाय पिए थे
मैं वहां ठहर ना सका प्रकाश को बिना बताये घर आ गया मन दुःख के सागर में डूब सा गया था रह रह के स्वतः ही आँखों में आंसू आ जाते थे लगता था मेरे साथ धोखा हुवा है उसे बताना चाहिए था कि उसका कोई और भी दोस्त है ये जरुरी नहीं की वह जिस जिस से मिले या जहाँ भी जाए सब बताये पर कहाँ ना प्यार में तर्क नहीं चलता अब मैं उससे बात नहीं करता दिल तो बहुत करता है कि उससे बात करुँ पर खुद को रोक लेता हूँ एक रिश्ते का अंत दुसरे रिश्ते को जन्म देता है इधर मै , मृदुला और राहुल तीनों दुखी थे उधर प्रकाश और राहुल की बहन के बीच प्यार के नए फुल पुलकित हो रहे थे प्रकाश दिन भर उससे फोन पर चिपका रहता
मैं मृदुला को दोष भी नहीं दे सकता उसने कभी ये तो नहीं कहा था कि वो मुझसे प्यार करती है पर मेरा अहम् उसे हीं दोषी ठहरता है ,हमेशा मिलने से रोकता रहता है मै फिर अंतर्द्वंद में उलझ गया हूँ जो हुआ सो सही हुआ या गलत मैं नहीं जनता बस मै इतना हीं कहूँगा कि
"हां मैं ये जानता हूँ कि वो बेवफा तो नहीं
मै शायद इश्क को पहचानता नहीं "
Hindi Love Stories - main shayad ishq ko pehchnata nahi by Nishikant Tiwari
Thursday, May 14, 2009
Here I m again to collect some more pain for my treasure
The most adventurous part of this amazement is that she is committed
And I m like a obscurity to this commitment
Playing with myself a foul game of legacy about an intimacy
Driving imperial part of me enjoy most of this conspiracy .
Mesmerized by herself when she looks with such a galore
A infamous geek in me battles with my intellect to make me look foolish for sure
And all what results is like a game of boxing
With me on loosing side with more wounds to explore.
But purest of my dreams inspires me to notice her
To understand myself more by knowing her better
Flaming a path that leads me no where
Here I m again to collect some more pain for my treasure.
Nishikant Tiwari
And I m like a obscurity to this commitment
Playing with myself a foul game of legacy about an intimacy
Driving imperial part of me enjoy most of this conspiracy .
Mesmerized by herself when she looks with such a galore
A infamous geek in me battles with my intellect to make me look foolish for sure
And all what results is like a game of boxing
With me on loosing side with more wounds to explore.
But purest of my dreams inspires me to notice her
To understand myself more by knowing her better
Flaming a path that leads me no where
Here I m again to collect some more pain for my treasure.
Nishikant Tiwari
Saturday, January 10, 2009
हर रोज़ मेरे भीतर
मर के जीने की कोशिश कर रहा जो जी के न जी सका कभी
फ़िर भी स्वार्थ की नई कीमत खोजता एक खोज मेरे भीतर
ये समय की जिद थी या जिंदगी की जरुरत
मुझको हीं पैसे से तौलता वो हर रोज़ मेरे भीतर |
जिसके हसीं की लहरों से बना था मेरे प्यार का समुंदर
देखा उसे तो बस नफ़रत से,क्यों इतना संकोच मेरे भीतर
आकाश सी उदासी वो आखों में समेटे
यही प्रश्न पूछने चली आती हर रोज़ मेरे भीतर |
कांटो की बेल से छुपाये सारे घावों को
हर खुशी में चीखता एक बोझ मेरे भीतर
भागता रहा सारी उम्र जिस ठहराव से
आ जाता है लड़ने वो हर रोज़ मेरे भीतर |
पत्थर की करके पूजा पत्थर हीं बन गया हूँ
फर्क नहीं पड़ता लग जाए जितना खरोंच मेरे भीतर
झुकती नहीं हैं नज़रें गिर जाऊं चाहे जितना
तालियाँ बजाता सन्नाटा हर रोज़ मेरे भीतर |
सोचता हूँ मन के सूखे ताल को नीर से भर दूँ
होगा कभी तो पुलकित सरोज मेरे भीतर
जिसकी थपकियों से टूटे अंहकार की सीमायें
मिल जाए वो मुझको हर रोज़ मेरे भीतर |
Nishikant Tiwari
फ़िर भी स्वार्थ की नई कीमत खोजता एक खोज मेरे भीतर
ये समय की जिद थी या जिंदगी की जरुरत
मुझको हीं पैसे से तौलता वो हर रोज़ मेरे भीतर |
जिसके हसीं की लहरों से बना था मेरे प्यार का समुंदर
देखा उसे तो बस नफ़रत से,क्यों इतना संकोच मेरे भीतर
आकाश सी उदासी वो आखों में समेटे
यही प्रश्न पूछने चली आती हर रोज़ मेरे भीतर |
कांटो की बेल से छुपाये सारे घावों को
हर खुशी में चीखता एक बोझ मेरे भीतर
भागता रहा सारी उम्र जिस ठहराव से
आ जाता है लड़ने वो हर रोज़ मेरे भीतर |
पत्थर की करके पूजा पत्थर हीं बन गया हूँ
फर्क नहीं पड़ता लग जाए जितना खरोंच मेरे भीतर
झुकती नहीं हैं नज़रें गिर जाऊं चाहे जितना
तालियाँ बजाता सन्नाटा हर रोज़ मेरे भीतर |
सोचता हूँ मन के सूखे ताल को नीर से भर दूँ
होगा कभी तो पुलकित सरोज मेरे भीतर
जिसकी थपकियों से टूटे अंहकार की सीमायें
मिल जाए वो मुझको हर रोज़ मेरे भीतर |
Nishikant Tiwari
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