ख्यालों का कुछ ऐसा समां बंध गया है ,
कि दर्द हीं दिल का दवा बन गया है ,
सपने बिखर रहे बन के रेत हाथों से ,
जो बचा था , कुछ धुंवा कुछ हवा बन गया है |
मंजीलें थीं मेरी तेरे आस पास ,
पर जिस पे साथ चलते थे वो रासता किधर गया ,
जो ना डरता था ज़माने में किसी से,
आज ख़ुद क्यों अपने आप से डर गया |
क्यों ये जानना ज़रूरी था की कौन सही , कौन ग़लत है,
अब दूर होकर क्यों पास आने की तलब है,
फ़िर से पुरानीं गलतियों को दोहराने को जी चाहता है ,
बदले की आरजू है या प्यार की कशीश है |
तुम हीं रुक जाओ की वक्त तो रुकता नहीं ,
क्यों ये पर्वत तो कभी झुकता नहीं ,
मेघ बनके बरस जाओ तुम मुझ पर ,
की ओस की बूंदों से प्यास बुझता नहीं |
तूफ़ान है तूझमें मुझे टूटने बीखर जाने दो ,
इससे अच्छा और क्या मिल सकता सिला है ,
ख्यालों का कुछ ऐसा समां बंध गया है ,
की दर्द हीं दिल का दवा बन गया है |
Nishikant Tiwari
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nice poem
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