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Sunday, June 8, 2008

कुछ चार पक्तियाँ

1. गुजारिशें जानीं कितनी की थी,
पर ना हटाती थी झुल्फ़ें ना दिखाती थी चेहरा,
आज जो दिखाई है चेहरा तो कोई और बाँधे बैठा है शेहरा,
है उसके शादी की रात और घना कोहरा ।

2. वह हमेशा कहती थी कि मैं उसके दिल के पास हूँ,
मैं हमेशा सोंचता था कि दिल के पास क्यों दिल में क्यों नहीं,

जरुर इसमें कुछ ऐब है,जब सर झुका कर देखा जो दिल को ,
अरे दिल के पास तो जेब है ।

3. दिल नहीं सराय कि आज ठहरे कल चल दिए,
प्यार नहीं फ़ूल कि कभी बालों में लगाया कभी कुचल दिए,
जा बेवफ़ा नहीं करना कोई शिकवा गिले,
पर तू जहाँ भी जाए तुझको तेरा उस्ताद मेले ।

Nishikant Tiwari

1 comment:

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