Bewafai Hindi Poem - ना कोई प्यार , न कोई छलावा
पहले आँखों के टकराने से लेकर
देह के टकराने तक
और फिर विचारों के टकराने से लेकर
पसंद के टकराने तक |
उठना बैठना, खाना पीना, जागना सोना
हर बात पे टोकना , प्यार हो भी सकता है
पर वो प्यार जो उसे कभी था हीं नहीं
सबको साबित करना चाहती है
और इसी चक्कर में
मज़ाक बन गईं है, प्यार की मीठी - मीठी बातें
और तमाशा बन गया है हमारा रिश्ता
जिसमें वो मदारी और मैं बन्दर बन नाच रहा !
उसने मुझे समझा, पढ़ा
पर उपन्यास के पहले और आखरी पन्ने की तरह
जो हमेशा खाली रहता है
मैंने उसे चाहा पर उस मुट्ठी में बंद रेत की तरह
जो धीरे धीरे कब मेरे हाथ से निकल गया
पता हीं नहीं चला,मैं इसी गुमान में रहा कि
वो मुझे खुद से भी ज्यादा प्रेम करती है
प्रेम एक से नहीं सभी से करना चाहिए
ऐसा उसने कहा था मुझे एक बार
और उसके इस विचार से गर्वान्वित भी हुआ था
कि कितनी सह्रदयी लड़की है
पर अब वो प्रणय जिसे मैं
परिणय की तरफ ले जाना चाहता था
लोगों का परिहास, मेरा पागलपन
और उसका पाखंड बन के रह गया है
नियत और नियति में फर्क होता है
पर इस समय दोनों मेरे साथ नहीं थे
साथ थे तो बस वो झींगुर
जो रात रात भर जागकर कोलाहल से
मेरा अकेलापन दूर कर रहे थे
पहले वो ऑफिस में कुछ काम भी करती थी
पर आज कल बस मुझे बदनाम करती है
ना ऑफिस जाने को कदम उठते है
न घर जाने का दिल करता है
मेरी तो सारी जिंदगी सड़क पे आ गई
अब तो सड़क के कंकड़ भी मुझपे तरस खाने लगे है
उनकी टीस अब उतनी नहीं चुभती मुझे
जिस दिल को प्यार के तीर ने घायल किया हो
उसे बदनामियों के छोटे छोटे कांटे क्या घाव देंगे
मैंने बाल बिखेरे , शर्ट बाहर किया और नंगे पैर ऑफिस चला
जब तमाशा बनाना है तो सरे आम बने
हां मैं पागल हूँ सबको पता तो चले
उसकी ख़ुशी देख , खुद ख़ुशी करने मन करता था
मैं माचिस जलाई और दिल को आग दिया
फिर उसी जले दिल के राख से
मुँह में कालिख पोती
और चल पड़ा, ऐसी डगर की ओर
जहाँ नहीं था कोई मेरे अलावा
ना कोई प्यार , न कोई छलावा !!
Heart touching senti poem by - Nishikant Tiwari
GYAN KI NAGRI
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