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रफ़्तार पकड़ रही है जिंदगी

रफ़्तार पकड़ रही है जिंदगी  उसकी आँखों में विनय था या अभिनय क्या पता  मासूम मुखड़ा देख कालेजा फटता, हृदय टूटता रहा  सारी ख़ुशी, धन-वैभव, देह-अंग जैसे दूर हुआ  याद नहीं पहले कब इतना मजबूर हुआ  खुद को संभाल लू, इस पल कोई कोई रोक ले   रफ़्तार पकड़ रही है जिंदगी !! याद नहीं सोया था खोया था  हाँ उस रात मगर मैं बहुत रोया था  मिन्नतें मजबूरियों में जंग थी छिड़ी हुई  एक झलक बस दिखला जाते आस पास यहीं कहीं  दूर जाके मिलने का तुमसे वक्त कहाँ  रफ़्तार पकड़ रही है जिंदगी !! खुद को याद करूँ या तुमको भूलूँ रोज़ ही अपना मन टटोलूं  दूर जाके तू जितना पास है  पास होके भी उतना पास नहीं  और कुछ लिख सकूं, इतना समय मेरे पास नहीं  रफ़्तार पकड़ रही है जिंदगी !! Nishikant Tiwari Hindi Poem

अरमान जगाएं

इतना सोच समझ के कब तक चलेंगे खुद से बच के क्यों न फिर बेपरवाह हो जाएँ एक दूजे में फिर से खो जाएंं । थोड़ा इठला के शर्मा के थोड़ा मुस्कुरा गुनगुना के शिकायतों को तमाशा दिखाएँ मीठी यांदो को दावत पे बुलाएँ । बिखरी बांतो को समेट के बांधो गठरी जरा कास के  सफर बहुत है लम्बा कहीं गाँठ खुल न जाए । देखता है कौन छुप छुप के आज जाने ना पाये बच के उसे छेड़े गुदगुदाए , सताए उस अजनबी से नयन लड़ाए । ना समझ की बांते, ना आज कोई टोके शोर मचाएं तोड़ टांग सुरों के जलती रहीं मशाले, बुझ गए अरमान आज मशालों को बुझा के फिर से अरमान जगाएं । Nishikant Tiwari Hindi Love poem