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एक ठोकर लगाने आ जाते




एक इशारा तो किया होता ,कब मैं तुमसे दूर थी
तुमने हाथ तभी माँगा जब हो चुकी मजबूर थी
वर्षों किया इंतजार मैंने पर तू पल भर भी न ठहर सका
पूरा किया वो काम जो न कर कभी जहर सका
सब कुछ भुला दिया इस कदर की ना मेरा नाम याद रखा
मैं बेवफा हूँ ये इल्जाम याद रखा
कभी तो लौट के आओगे जाने क्यों ये भरोसा था
प्यार का तूफ़ान समझा जिसे वो तो बस एक चाहत का झोकां था
प्यार नहीं एहसान सही ,थोड़ी दया दिखाने आ जाते
अभी भी छुपे हैं दिल में अरमान कई ,एक ठोकर लगाने आ जाते

Nishikant Tiwari

Comments

  1. bhai kavitain lajawab hain apkee.
    Prabhat Sardwal

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  2. its really soooo gud ..i must say very touching & emotional...

    ReplyDelete
  3. आपकी भावनाओं का पूरा पोस्ट.मज़ा करने के लिए है और इसे पढ़ने के लिए अच्छा लगता है ..

    ReplyDelete
  4. रोज़ तारों को नुमाइश में खलल पड़ता है
    चाँद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
    मैं समंदर हूँ कुल्हाड़ी से नही काट सकता
    कोई फव्वारा नही हूँ जो उबल पड़ता है
    कल वहाँ चाँद उगा करते थे हर आहट पर
    अपने रास्ते में जो वीरान महल पड़ता है
    ना त-आरूफ़ ना त-अल्लुक है मगर दिल अक्सर
    नाम सुनता है तुम्हारा तो उछल पड़ता है
    उसकी याद आई है साँसों ज़रा धीरे चलो
    धड़कनो से भी इबादत में खलल पड़ता है!

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