Ads 468x60px

Monday, December 1, 2008

शहीदों की मौत होती सबको हासिल नहीं है

न्याय का बना बैठा रक्षक वही है जो
ख़ुद सर उठाने के काबिल नही है
तेरा सर उठता भी है तो भर के आँखों में आंसू
तू मर्द कहलाने के काबिल नही है |

बारूद का कालिख पोत गया कोई मुंह में
फ़िर भी खून तुम्हारा खौलता नही है
ये न सोंचो की बच जाओगे ओढ़ कर कायरता की चादर
कीडे मकोडों की मौत ,अरे मिलनी तुमको भी वही है |

राज जानते हो फ़िर भी खोये हो किस सोंच ,भंवर में
कुछ तो ऐसा करो की उठ सको अपनी नज़र में
हाँ,हर तरफ़ जंगल है और आग सी लगी है
कब तक रोते रहोगे हाथ मलते बैठे घर में |

कितना जोर का तमाचा मार गया कोई गाल पर
अब तो तरस खाओ अपने हाल पर
अभी भी पशुता न छोड़ी तो दिन दूर नही
जब बांधे जाओगे खूंटे से रस्सी डाल कर |

बस एक बार कदम उठा कर तो देखो
ख़ुद को जलाना इतना भी मुश्किल नही है
मर भी गए परवाने तो कोई गम नहीं
शहीदों की मौत होती सबको हासिल नहीं है |


Nishikant Tiwari

Aab mai kaya kahu ?  हो जज़्बात जितने हैं दिल में, मेरे ही जैसे हैं वो बेज़ुबान जो तुमसे मैं कहना न पाई, कहती हैं वो मेरी ख़ामोशियाँ सुन स...