न्याय का बना बैठा रक्षक वही है जो ख़ुद सर उठाने के काबिल नही है तेरा सर उठता भी है तो भर के आँखों में आंसू तू मर्द कहलाने के काबिल नही है | बारूद का कालिख पोत गया कोई मुंह में फ़िर भी खून तुम्हारा खौलता नही है ये न सोंचो की बच जाओगे ओढ़ कर कायरता की चादर कीडे मकोडों की मौत ,अरे मिलनी तुमको भी वही है | राज जानते हो फ़िर भी खोये हो किस सोंच ,भंवर में कुछ तो ऐसा करो की उठ सको अपनी नज़र में हाँ,हर तरफ़ जंगल है और आग सी लगी है कब तक रोते रहोगे हाथ मलते बैठे घर में | कितना जोर का तमाचा मार गया कोई गाल पर अब तो तरस खाओ अपने हाल पर अभी भी पशुता न छोड़ी तो दिन दूर नही जब बांधे जाओगे खूंटे से रस्सी डाल कर | बस एक बार कदम उठा कर तो देखो ख़ुद को जलाना इतना भी मुश्किल नही है मर भी गए परवाने तो कोई गम नहीं शहीदों की मौत होती सबको हासिल नहीं है | Nishikant Tiwari