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Showing posts from October, 2008

कि दर्द हीं दिल का दवा बन गया है

ख्यालों का कुछ ऐसा समां बंध गया है , कि दर्द हीं दिल का दवा बन गया है , सपने बिखर रहे बन के रेत हाथों से , जो बचा था , कुछ धुंवा कुछ हवा बन गया है | मंजीलें थीं मेरी तेरे आस पास , पर जिस पे साथ चलते थे वो रासता किधर गया , जो ना डरता था ज़माने में किसी से , आज ख़ुद क्यों अपने आप से डर गया | क्यों ये जानना ज़रूरी था की कौन सही , कौन ग़लत है , अब दूर होकर क्यों पास आने की तलब है , फ़िर से पुरानीं गलतियों को दोहराने को जी चाहता है , बदले की आरजू है या प्यार की कशीश है | तुम हीं रुक जाओ की वक्त तो रुकता नहीं , क्यों ये पर्वत तो कभी झुकता नहीं , मेघ बनके बरस जाओ तुम मुझ पर , की ओस की बूंदों से प्यास बुझता नहीं | तूफ़ान है तूझमें मुझे टूटने बीखर जाने दो , इससे अच्छा और क्या मिल सकता सिला है , ख्यालों का कुछ ऐसा समां बंध गया है , की दर्द हीं दिल का दवा बन गया है | Nishikant Tiwari