ख्यालों का कुछ ऐसा समां बंध गया है ,
कि दर्द हीं दिल का दवा बन गया है ,
सपने बिखर रहे बन के रेत हाथों से ,
जो बचा था , कुछ धुंवा कुछ हवा बन गया है |
मंजीलें थीं मेरी तेरे आस पास ,
पर जिस पे साथ चलते थे वो रासता किधर गया ,
जो ना डरता था ज़माने में किसी से,
आज ख़ुद क्यों अपने आप से डर गया |
क्यों ये जानना ज़रूरी था की कौन सही , कौन ग़लत है,
अब दूर होकर क्यों पास आने की तलब है,
फ़िर से पुरानीं गलतियों को दोहराने को जी चाहता है ,
बदले की आरजू है या प्यार की कशीश है |
तुम हीं रुक जाओ की वक्त तो रुकता नहीं ,
क्यों ये पर्वत तो कभी झुकता नहीं ,
मेघ बनके बरस जाओ तुम मुझ पर ,
की ओस की बूंदों से प्यास बुझता नहीं |
तूफ़ान है तूझमें मुझे टूटने बीखर जाने दो ,
इससे अच्छा और क्या मिल सकता सिला है ,
ख्यालों का कुछ ऐसा समां बंध गया है ,
की दर्द हीं दिल का दवा बन गया है |
Nishikant Tiwari
Ads 468x60px
Thursday, October 16, 2008
Subscribe to:
Posts (Atom)
Aab mai kaya kahu ? हो जज़्बात जितने हैं दिल में, मेरे ही जैसे हैं वो बेज़ुबान जो तुमसे मैं कहना न पाई, कहती हैं वो मेरी ख़ामोशियाँ सुन स...
-
नभ को काले बादलों ने घेर लिया था | दिन भर की गर्मी के बाद मौसम थोड़ा ठंडा हो गया था | मैं हमेशा की तरह अपने छत पर संध्या भ्रमण कर रहा था ...
-
कॉलेज से निकलते हीं मुझे एक सॉफ्टवेर कंपनी में नौकरी मिल गयी |कॉलेज में बहुत सुन रखा था कि कंपनियों में एक से बढ़कर एक सुन्दर लड़कियां ...
-
रमेश भाई को जब तक हुए बाल बच्चे, उन्के सर के एक भी बाल नही बचे, कुछ बच्चे उन्हे टकला टकला कह कर चिढाते, तो कुछ सर पे मार के भाग जाते । सारे ...