रफ़्तार पकड़ रही है जिंदगी उसकी आँखों में विनय था या अभिनय क्या पता मासूम मुखड़ा देख कालेजा फटता, हृदय टूटता रहा सारी ख़ुशी, धन-वैभव, देह-अंग जैसे दूर हुआ याद नहीं पहले कब इतना मजबूर हुआ खुद को संभाल लू, इस पल कोई कोई रोक ले रफ़्तार पकड़ रही है जिंदगी !! याद नहीं सोया था खोया था हाँ उस रात मगर मैं बहुत रोया था मिन्नतें मजबूरियों में जंग थी छिड़ी हुई एक झलक बस दिखला जाते आस पास यहीं कहीं दूर जाके मिलने का तुमसे वक्त कहाँ रफ़्तार पकड़ रही है जिंदगी !! खुद को याद करूँ या तुमको भूलूँ रोज़ ही अपना मन टटोलूं दूर जाके तू जितना पास है पास होके भी उतना पास नहीं और कुछ लिख सकूं, इतना समय मेरे पास नहीं रफ़्तार पकड़ रही है जिंदगी !! Nishikant Tiwari Hindi Poem